9 नवंबर 2025 को गुजरात एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS) ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें तेलंगाना के डॉ. अहमद मोहियुद्दीन सैयद का नाम भी शामिल था। वह राइसिन नाम के जहर को बनाने पर काम कर रहा था।

असल में राइसिन इतना ज्यादा खतरनाक है कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित किया गया है। ये लोग ISIS से जुड़े संगठन ‘इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP)’ से संपर्क में थे।

ATS के अनुसार, 35 वर्षीय डॉ. सैयद ने चीन से मेडिकल की पढ़ाई की है। वह अफगानिस्तान निवासी अबू खदीजा के कहने पर काम कर रहा था। खदीजा ISKP से जुड़ा हुआ है। वह पाकिस्तान के कई लोगों से भी संपर्क में था।

पूछताछ के दौरान, डॉ. सैयद ने कबूल किया कि वह राइसिन (जिसे ‘रायजिन’ (Ryzin) भी कहा जाता है) नाम के अत्यधिक जहरीला पदार्थ बनाने की तैयारी कर रहा था। इसे अरंडी के बीजों से तैयार किया जाता है। इसके लिए उसने शोध से जुड़े सामान, केमिकल और जरूरी कच्चा माल भी जुटा लिया था।

एसपी के सिद्धार्थ के नेतृत्व वाली ATS टीम को खुफिया जानकारी मिलने के बाद अहमदाबाद-महेसाना रोड पर अदलाज टोल प्लाजा के पास छापेमारी में सैयद को गिरफ्तार किया। वह सिल्वर रंग की फोर्ड फिगो कार चला रहा था।

कार में अधिकारियों को दो ग्लॉक पिस्टल, एक बेरेटा पिस्टल, 30 जिंदा कारतूस और लगभग 4 लीटर अरंडी का तेल प्लास्टिक के कंटेनर में बरामद हुआ। अरंडी का तेल राइसिन नामक ज़हर बनाने के लिए मुख्य सामग्री होता है।

सैयद के पास से मिले डिवाइसेज की फॉरेंसिक जाँच के बाद पुलिस को दो और लोगों तक पहुँची। इनमें से एक उत्तर प्रदेश के शामली में दर्जी आजाद सुलेमान शेख है और दूसरा उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी का छात्र मोहम्मद सुहैल मोहम्मद सलीम खान था। इन लोगों ने सैयद को हथियार दिलाने में मदद की थी और गुजरात के बनासकांठा से उसके साथ काम कर रहे थे।

ATS के अनुसार, ये दोनों इस्लामिक कट्टरपंथी विचारधारा के हैं। ये लोग लखनऊ, दिल्ली और अहमदाबाद जैसी जगहों पर हमले करने के लिए रेकी कर चुके थे।

इस पूरे मामले में पाकिस्तान का कनेक्शन भी सामने आया है। अधिकारियों ने बताया कि आरोपितों से बरामद किए हथियार राजस्थान के हनुमानगढ़ से मिले थे। इन हथियारों को उनका हैंडलर पाकिस्तान सीमा के पार ड्रोन से भेजता था। ATS ने इस ऑपरेशन में तीन पिस्टल, 30 जिंदा कारतूस और राइसिन से जुड़ी सामान भी जब्त किए।

राइसिन, बायोटेरर और जिहादी संगठन का काफिरों को जहर से मारने का जुनून

राइसिन एक बहुत जहरीला प्रोटीन है जो अरंडी के पौधे या रिसिनस कम्यूनिस से मिलता है। राइसिन न तो वायरस है और न ही बैक्टीरिया बल्कि यह एक लेक्टिन टॉक्सिन है। ये शरीर की कोशिकाओं में प्रोटीन बनने की प्रक्रिया को रोक देता है। इसे खाने, सांस के जरिए या इंजेक्शन से लेने पर इंसान के अंग जल्दी फेल होने लग जाते हैं और मौत हो सकती है।

राइसिन निकालने के लिए सबसे पहले अरंडी के बीजों को अच्छे से पीसकर उनका पेस्ट बनाया जाता है। फिर उससे तेल निकाल दिया जाता है। इसके बाद जो बचा हुआ गूदा होता है उसे केमिकल से प्रोसेस किया जाता है और राइसिन वाला हिस्सा अलग किया जाता है।

हालाँकि यह एक तकनीकी काम है फिर भी इसके लिए सिर्फ सामान्य लैब उपकरण, दस्ताने और एसीटोन से ही ये काम किया जा सकता है।

राइसिन के खतरे को महज इस बात से समझा जा सकता है कि सिर्फ नमक के एक दाने से भी कम 500 माइक्रोग्राम भर खा लेने या हवा के जरिए सांस में ले लेने या इंजेक्शन के जरिए शरीर में पहुँचाने पर यह किसी भी हट्टे-कट्टे इंसान को मार सकता है। सबसे बुरी बात यह है कि इसका कोई इलाज या एंटीडोट भी अब तक नहीं है।

राइसिनजिस तरीके से शरीर के संपर्क में आता है, उसी के हिसाब से ही उसके लक्षण भी बदलते हैं। अगर राइसिन को निगल लिया जाए तो उल्टी, दस्त, पेट में खून निकलना और शॉक हो सकता है।

राइसिन को इंजेक्शन से लेने पर शरीर के अंदरूनी हिस्सों में खून निकलना, टिश्यू का मरना और अंगों का काम बंद हो जाना होता है। साँस से रिजिन के अंदर जाने पर फेफड़ों में जलन, कमजोरी, बुखार, फेफड़ों में घाव, सूजन और अधिक नुकसान होता है।

किसी भी तरीके से राइसिन के शरीर में अंदर जाने पर हर हालत में बेहद दर्दनाक तरीके से 5-6 दिनों के अंदर मौत होना लगभग तय है।

अमेरिका के CDC (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) ने राइसिन को ‘कैटेगरी B बायोटेररिज्म एजेंट’ की सूची में रखा है। यह केमिकल वेपन्स कन्वेंशन (CWC) में ‘शेड्यूल-1’ टॉक्सिक केमिकल के तौर पर दर्ज है।

CDC के अनुसार राइसिन एक ‘प्राकृतिक जहर है जो कई तरीकों से शरीर को नुकसान पहुँचा सकता है।’ अगर इसे धुँए, पाउडर या खाने-पीने की चीजों में मिला दिया जाए तो बहुत बड़े पैमाने पर लोगों को नुकसान पहुँचाया जा सकता है।

राइसिन का इस्तेमाल 1970 के दशक से हत्या और आतंकवादी साजिशों के लिए किया जा रहा है। पहली बार 1978 में राइसिन का उपयोग एक बुल्गारियाई पत्रकार जॉर्जी मार्कोव की हत्या में किया गया था।

बुल्गारियाई खुफिया एजेंसी के एक एजेंट ने लंदन के वाटरलू ब्रिज पर एक छतरी से राइसिन की गोली मार्कोव की टांग में मार दी थी। इसके बाद वह कुछ ही दिनों में मर गए।

इस्लामिक आतंकवादी संगठनों ने राइसिन को खास तौर पर अपना लक्ष्य बनाया है, क्योंकि यह ‘गरीब आदमी का परमाणु बम’ माना जाता है। यह सस्ता है लेकिन बहुत खतरनाक है और इसका इस्तेमाल कई तरीकों से जिहाद के लिए किया जा सकता है।

राइसिन को बनाने के लिए सन् 2000 में तैयार की थी प्रयोगशाला

सन् 2000 के शुरूआती वर्षों में अल-कायदा ने राइसिन को अपने जिहादी मकसद पूरे करने के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया। 2003 में अल-कायदा के एक गिरोह ने ब्रिटेन (UK) की सड़कों पर राइसिन और अन्य जहरों से हमले करने के लिए एक लैब बनाई की थी।

ब्रिटिश सुरक्षा एजेंसियों ने ऑपरेशन के जरिए लंदन में एक पते से 22 अरंडी के बीज, लैब उपकरण और राइसिन बनाने की जानकारी बरामद की। इस मामले में छह अल्जीरियाई लोगों को गिरफ्तार किया गया।

बाद में एक अल्जीरियाई नागरिक कैमल बोरगास को ‘जहर या विस्फोटकों के जरिए डर, दहशत या नुकसान पहुँचाने की साजिश’ के आरोप में 17 साल जेल की सजा सुनाई गई।

5 फरवरी, 2003 को संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण में अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री कॉलिन पॉवेल ने इस घटना को आतंकवादी अबू मुसाब अल-जरकावी के नेटवर्क से जोड़ा था।

2004 तक जरकावी के ‘अल-कायदा इन इराक (AQI)’ ने फालुजाह की लैब में राइसिन पर प्रयोग करना शुरू किया। इनमें सायनाइड जैसे दूसरे जहर का भी परीक्षण शामिल था।

2003 में ऐसा दो बार हुआ जब अक्टूबर और नवंबर के बीच राइसिन लगे हुए दो पत्र मिले। इनमें से एक पत्र व्हाइट हाउस को भेजा गया था, लेकिन उसे समय रहते प्रोसेसिंग फैसिलिटी पर ही पकड़ लिया गया।

उसी साल उत्तरपूर्वी इराक के खुर्मुल में अमेरिकी सेना (US coalition forces) ने एक रासायनिक हथियार फैक्ट्री पर कब्जा किया। उन्हें वहाँ राइसिन और अन्य जहर के निशान मिले।

सन् 2000 के शुरुआती वर्षों में अमेरिकी गठबंधन सेना ने इराक और सीरिया में ISIS और अन्य आतंकी कट्टरपंथियों की ओर से चलाए जा रहे कई केमिकल लैब को पकड़ा।

माना जाता है कि ISIS ने सद्दाम की सत्ता में जहरीले केमिकल का जखीरा जब्त किया और कैदियों पर राइसिन समेत तरह-तरह के जहर का परीक्षण किया। इनका प्रयोग आतंकी हमलों और सजा-ए-मौत में किया जाता था।

ISIS की सत्ता में हुए राइसिन समेत कई खतरनाक केमिकल के हुए टेस्ट

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ISIL/ISIS ने 8 अलग-अलग केमिकल एजेंट बनाए। इन केमिकल्स को इंसानों और जानवरों पर आजमाया और अपने 4 साल के शासनकाल में कम से कम 13 हमले किए।

इन एजेंट्स में एल्युमिनियम फॉस्फाइड, बोटुलिनम टॉक्सिन, क्लोरीन, सायनाइड आयन, निकोटिन, राइसिन, थैलियम सल्फेट और सल्फर मस्टर्ड (मस्टर्ड गैस) शामिल थीं।

ISIS ने इन खतरनाक कैमिकल्स इस्तेमाल मोर्टार, रॉकेट और आईईडी में किया। हालाँकि इन केमिकल्स को केमिकल वेपन्स कन्वेंशन (CWC) ने बैन कर रखा है। उस समय खुद ISIS प्रमुख अबू बकर अल-बगदादी ने इन केमिकल हथियारों के प्रयोग की मंजूरी दी थी।

ISIS के रासायनिक हथियारों के प्रयोग को तीन चरणों में समझा जा सकता है। पहले चरण में, जून 2014 से जून 2015 के बीच जिहादियों ने पुराने तरीके और आसानी से मिलने वाले इंडस्ट्रियल कैमिकल्स जैसे क्लोरीन और फॉस्फीन का इस्तेमाल किया। उनका मकसद कच्चे आईईडी को तैयार करना था।

ISIS की प्रोपेगेंडा मैगजीन ‘दाबिक’ और ‘रुमियाह’ में लगातार ‘जहर जिहाद’ का प्रचार किया जाता था और अकेले जिहादियों को आसानी से मिलने वाली चीजों से लोगों को मारने के लिए उकसाया जाता था। ISIS ने पारंपरिक तरीके छोड़कर कैमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर (CBRN) वाले सामानों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना शुरू किया।

दूसरे चरण में जून 2015 से जनवरी 2017 के बीच ISIS जिहादियों ने सल्फर मस्टर्ड एजेंट बनाने और उसे मोर्टार बम तथा रॉकेटों के जरिए गिराने की क्षमता की तकनीक तैयार की।

इस चरण में कैमिकल हमले सीरिया के अलेप्पो प्रांत से लेकर इराक के किर्कुक तक पूरे ‘खलीफाई इलाकों’ में किए गए। अप्रैल 2016 में ऐसे 8 हमले दर्ज हुए। कुल मिलाकर ISIS ने सीरिया और इराक में 37 से ज्यादा कैमिकल हमले किए, जिनमें से कम-से-कम 20 बार क्लोरीन का इस्तेमाल किया गया था।

तीसरे चरण में, आखिरी रिकॉर्डेड कैमिकल हमला 8 जनवरी 2017 को सीरिया में हुआ। मोसुल के जुलाई 2017 में ISIS के हाथ से जाने के बाद उनका कैमिकल हथियार बनाना लगभग बंद हो गया और कैमिकल हमलों का सिलसिला भी थम गया।

फरवरी 2015 में, ब्रिटेन के लिवरपूल से 31 वर्षीय सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर मोहम्मद अली डार्कनेट से राइसिन खरीदने की कोशिश कर रहा था। ऐसा करते हुए पकड़े जाने पर उसे 8 साल की जेल की सजा सुनाई गई।

अली ने ऑनलाइन अपना नाम ‘Weirdos 0000’ रखा था। डार्कनेट पर ‘साइकोकेम’ (Psychochem) नाम के सप्लायर से उसने 500 मिलीग्राम राइसिन के लिए कीमत पर बातचीत की। यह मात्रा 700 से 1400 लोगों को मारने के लिए काफी थी। लेकिन असल में यह सप्लायर FBI एजेंट था जिसने ब्रिटिश पुलिस को सूचना दी।

अली ने दावा किया कि वह सिर्फ कौतूहल के तहत डार्कनेट की सीमाएँ जानना चाहता था। मामला आतंकवादी हमला योजना का साबित नहीं हो सका, लेकिन जहरीले पदार्थ के खरीद के मामले में उसे सजा दी गई थी। अली ने कहा कि उसने टीवी शो ‘Breaking Bad’ देखने के बाद राइसिन के बारे में जाना था और इसे जानवरों पर टेस्ट करना चाहता था।

इसके अलावा ISIS ने जिहादियों को ट्रक या अन्य वाहनों का इस्तेमाल करके घातक हमले किए। 2016 में फ्रांस में हुआ नाइस हमला, जिसमें 86 से अधिक लोग मरे। 2016 में ही बर्लिन में ट्यूनीशियाई नागरिक अनिस अमरी ने हमला किया, जिसमें 12 लोग हताहत हुए।

2017 में लंदन ब्रिज पर एक इस्लामिक आतंकवादी हमला हुआ, जिसमें पाकिस्तानी-ब्रिटिश नागरिक खुर्रम बट, मोरक्को के राशिद रेदौआने और इटली के यूसुफ जघबा ने 8 लोगों की जान ले ली। 2017 में न्यूयॉर्क में उजबेकिस्तान के सयफुल्लो सैपोव ने हमला किया जिसमें 8 लोगों की मौत हुई।

इसी तरह के हमले कर जिहादियों ने बॉयो और टॉक्सिक हथियारों से हमलों को बढ़ावा दिया।

2018 के कोलोन प्लॉट में, एक ट्यूनीशियाई जिहादी सईफ अल्लाह एच ने जर्मनी के कोलोन में अपार्टमेंट में 84 मिलीग्राम राइसिन बनाया था। वह इसे डोर हैंडल पर फैलाने या सिरिंज के जरिए इंजेक्शन लगाने की योजना बना रहा था। वह 2017 में सीरिया जाने की कोशिश कर चुका था लेकिन तुर्की में रोक दिया गया।

वह जर्मन काउंटरटेरेरिज्म एजेंसियों की नजर में तब आया जब सईफ का ट्यूनीशियाई पासपोर्ट गायब हो गया। 2018 में ब्रिटिश खुफिया एजेंसी ने जर्मनी को एक ट्यूनीशियाई निवासी के संदिग्ध ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में सूचित किया। सईफ की पत्नी यास्मीन को भी उसके जिहादी रुझानों का पता था।

जून 2018 में सईफ अल्लाह एच को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन तब तक उसने अपने अपार्टमेंट में 84.03 मिलीग्राम राइसिन बना लिया था और 3,150 अरंडी के बीज जमा कर लिए थे।

अक्टूबर 2024 में, 18 वर्षीय आरोपित एक्सेल रुदाकुबाना पर इंग्लैंड के साउथपोर्ट में टेलर स्विफ्ट-थीम वाली डांस क्लास में चाकू से हमले के बाद 3 हत्याओं और 10 हत्या के प्रयास के आरोप लगाए गए।

यूके पुलिस ने रुदाकुबाना के घर की तलाशी ली और वहाँ एक PDF फाइल बरामद की। इसका शीर्षक था ‘Military Studies in the Jihad Against the Tyrants: The Al-Qaeda Training Manual’. इस दस्तावेज़ के मिलने के बाद उस पर आतंकवाद का आरोप भी लगाया गया।

अधिकारी यह भी दावा करते हैं कि रुदाकुबाना ने घातक टॉक्सिन वाला राइसिन जहर बनाया, जिसके कारण उस पर बॉयोवेपन बनाने का आरोप भी लगा है। ISIS पर भारत की कार्रवाई 2014 से जारी: पारंपरिक हथियार और जिहादी पुराने हैं, राइसिन जैव-आतंकी साजिश ने लाई नई परत

2016 में केरल मॉड्यूल का भंडाफोड़ से लेकर 2019 के श्रीलंका ईस्टर बम धमाकों में भारत के लिंक की जाँच, 2022 बिहार टेरर मॉड्यूल, 2023 पुणे आईएसआईएस टेरर मॉड्यूल, 2025 में पुणे, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली में आतंकी हमलों की साजिश रचने वाले जिहादियों को पकड़ने के लिए बहु-राज्य अभियानों से लेकर, 2024 में बेंगलुरु में लश्कर-ए-तैयबा टेरर मॉड्यूल तथा 2025 में दिल्ली में आईएसआईएस से जुड़े टेरर मॉड्यूल तक राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) और प्रत्येक राज्य की एंटी-टेररिज्म स्क्वाड (ATS) आईएसआईएस और अन्य इस्लामी आतंकी संगठनों से जुड़े जिहादियों को गिरफ्तार कर इन मॉड्यूल्स का पर्दाफाश करती आ रही हैं। भारतीय एजेंसियाँ देश में अपनी जड़ें गहरी करने की कोशिश कर रहे विभिन्न इस्लामी आतंकी संगठनों के भर्ती और फाइनेंशियल नेटवर्क को तोड़ रही हैं।

हालाँकि गुजरात एटीएस की ओर से बताए गए जैविक युद्ध (बायो वार) या जैव-आतंकवाद (बायोटेररिज्म) का यह षड्यंत्र काफी चिंताजनक है। आईईडी, गोलीबारी, बम धमाके और इस्लामी कट्टरपंथ के बाद अब भारत को ‘विषैले खतरे’ का सामना करना पड़ रहा है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, गिरफ्तार किए गए आईएसआईएस से जुड़े जिहादियों ने राइसिन (Ricin) का उपयोग करके लोगों को मारने की साजिश रची थी। इसके लिए आतंकवादी गुजरात और अन्य राज्यों में भीड़भाड़ वाले फूड मार्केट और सप्लाई चेन को अपने लक्ष्य के तौर पर देख रहे थे। जिहादियों का मकसद था कि लोगों की खाद्य आपूर्ति में जहर मिलाकर बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या करने की योजना बनाई थी।

हालाँकि सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं और राइसिन जैव-आतंकी साजिश की जाँच जारी है, लेकिन ऐसे मामलों को ‘भटके हुए नौजवानों’ की मूर्खता या शरारत कहकर अनदेखा नहीं किया जा सकता। बल्कि, इस बायोटेररिज्म साजिश का खुलासा देश के लिए आँखें खोलने वाला है ताकि वह समझ सके कि इस्लामी आतंकवादियों से उसे कितने अलग और घातक खतरे मिल रहे हैं।

ये जिहादी कट्टरपंथी, ‘हूर’ पाने की चाह रखने वाले आतंकवादी हैं, जो एन्क्रिप्टेड नेटवर्क के माध्यम से प्रशिक्षित हैं, विज्ञान और तकनीक का उपयोग निर्दोषों की हत्या के लिए हथियार बनाने में कर रहे हैं और सुनियोजित जिहादी इकोसिस्टम इनकी रीढ़ बने हुए हैं।

हालाँकि पारंपरिक विस्फोटक या हथियार जिहादियों के लिए पुरानी रणनीति बने रहेंगे, लेकिन अलग-अलग युद्धों के इस युग में कैमिकल हथियार आसानी से घातक आतंक फैलाने की क्षमता रखते हैं।

राइसिन या सारिन जैसे रासायनिक पदार्थ सामान्य औद्योगिक रसायनों या अरंडी के बीजों से साधारण प्रयोगशालाओं में तैयार किए जा सकते हैं, जिससे यह अकेले या छोटे आतंकी समूहों के लिए सुविधाजनक विकल्प बन जाता है।

कम लागत, बड़े ढाँचे की कम जरूरत और पकड़े जाने की कम संभावना के कारण ये आतंकवादियों की पहली पसंद बनते हैं। इस तरह के हथियार बॉयोवॉर की आशंका बढ़ा देता है। इससे राइसिन जैसे अन्य जैविक हथियार आधारित साजिशें न केवल शांत बल्कि बड़े स्तर पर लोगों को मारने के लिए अनुकूल बन जाते हैं।

ये खबर मूल रूप से श्रद्धा पांडेय ने लिखी है। अंग्रेजी में इसे पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ।

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