गुजरात की दो विधानसभा सीटों विसावदर और कादी पर हुए उपचुनाव के नतीजे सामने आ गए हैं। विसावदर सीट से आम आदमी पार्टी (AAP) के उम्मीदवार गोपाल इटालिया ने 17,554 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की, जबकि कादी सीट से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राजेंद्र चावड़ा ने 39,452 वोटों की बड़ी बढ़त के साथ जीत हासिल की।
इन दोनों ही सीटों पर कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा। हर सीट की स्थिति अलग थी, जिससे नतीजों में भी अंतर नजर आया। इन नतीजों से यह साफ होता है कि गुजरात में बीजेपी की पकड़ अब भी मजबूत है, लेकिन आम आदमी पार्टी ने कॉन्ग्रेस के समर्थन के साथ खुद को एक विकल्प के रूप में पेश करने में कुछ हद तक सफलता हासिल की है।
हालाँकि, कॉन्ग्रेस को लेकर यह धारणा भी बन रही है कि वह आप की ‘बी टीम’ बनती जा रही है, जिससे उसकी राजनीतिक साख को नुकसान हो रहा है। कुल मिलाकर यह उपचुनाव गुजरात की राजनीति में जारी बदलाव और सत्ता संतुलन की दिशा में एक संकेत माना जा सकता है।
विसावदर विधानसभा परिणाम
विसावदर विधानसभा सीट आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व विधायक भूपत भयानी के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी। इस सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी, कॉन्ग्रेस और आप तीनों पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे।
हालाँकि चुनाव के नतीजों से यह साफ हो गया कि कॉन्ग्रेस की मौजूदगी इस बार बेहद कमजोर रही। कॉन्ग्रेस के उम्मीदवार नितिन रणपारिया को सिर्फ 5,501 वोट मिले, जो यह दिखाता है कि पार्टी अपना पुराना गढ़ बचाने में पूरी तरह नाकाम रही। इस चुनाव में कॉन्ग्रेस की निष्क्रियता साफ नजर आई।
न तो प्रचार अभियान ज़ोरदार था और न ही स्थानीय स्तर पर कोई मजबूत नेतृत्व दिखाई दिया। जनता ने भी अब कॉन्ग्रेस के बजाय दूसरी पार्टियों को विकल्प के रूप में देखना शुरू कर दिया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के नाते यह उम्मीद की जाती है कि कॉन्ग्रेस का क्षेत्रीय स्तर पर पकड़ मजबूत होगी, लेकिन विसावदर के नतीजों ने इस धारणा को पूरी तरह उलट कर रख दिया।

विसावदर उपचुनाव में कॉन्ग्रेस की हालत इतनी खराब रही कि उसका उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सका। कभी यह विधानसभा सीट कॉन्ग्रेस का मजबूत गढ़ मानी जाती थी, लेकिन अब पार्टी की पकड़ पूरी तरह ढीली पड़ गई है।
सिर्फ विसावदर ही नहीं, बल्कि पूरे गुजरात में कॉन्ग्रेस का प्रभाव लगातार कम होता जा रहा है। हालात इतने खराब हो गए हैं कि गुजरात कॉन्ग्रेस अध्यक्ष शक्तिसिंह गोहिल ने चुनावी हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
आज के राजनीतिक माहौल में जब आम आदमी पार्टी जैसी नई पार्टी मजबूती से चुनाव लड़ रही है, तब कॉन्ग्रेस को अपनी रणनीति और नेतृत्व पर गंभीर सवाल उठाने चाहिए। अगर पार्टी के पास साफ विज़न और योजना नहीं है, तो हार की जिम्मेदारी उसी पर आती है।
विसावदर में कॉन्ग्रेस का रवैया ऐसा दिखा जैसे वह आप को जानबूझकर मजबूत करने के लिए मैदान में लाई हो, मानो आप उसकी ‘बी टीम’ हो। आम आदमी पार्टी के प्रति कॉन्ग्रेस का यह उदासीन और कमजोर रवैया भी नतीजों को प्रभावित करने वाला एक बड़ा कारण बना।
विसावदर उपचुनाव में कॉन्ग्रेस ने न तो मजबूत प्रचार किया और न ही स्थानीय मुद्दों पर ध्यान दिया। यही वजह रही कि पार्टी पाटीदार वोटरों को जोड़ने में नाकाम रही, जो बड़ी संख्या में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गोपाल इटालिया के पक्ष में चले गए।
इससे साफ दिखता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी ने एक नई पार्टी के सामने हार मान ली है। कॉन्ग्रेस की कमजोरी का एक और बड़ा कारण उसके कार्यकर्ताओं की कमी थी। उम्मीदवार के साथ सिर्फ 5-7 लोग दिखाई दिए, बाकी कोई स्थानीय संगठन या समर्थन नजर नहीं आया।
इस तरह की लापरवाही किसी भी पार्टी के लिए राजनीतिक आत्महत्या के बराबर होती है और इससे यह सवाल खड़ा होता है कि गुजरात में कॉन्ग्रेस का भविष्य क्या होगा। दिलचस्प बात यह है कि कॉन्ग्रेस और आम आदमी पार्टी एक-दूसरे पर अक्सर बीजेपी की ‘बी टीम’ होने का आरोप लगाती रही हैं।
गोपाल इटालिया ने भी चुनाव प्रचार के दौरान कॉन्ग्रेस को भाजपा की ‘बी टीम’ कहा था। लेकिन इन चुनाव नतीजों को देखते हुए यह तस्वीर बन रही है कि कॉन्ग्रेस ही अब आप की ‘बी टीम’ बनकर रह गई है।
आंतरिक कलह और उम्मीदवार विवाद के कारण भाजपा को हार का सामना करना पड़ा
विसावदर में भाजपा की हार अब गुजरात की राजनीति में चर्चा का बड़ा विषय बन गई है। हालाँकि यह सीट परंपरागत रूप से बीजेपी की मजबूत सीट नहीं रही है, लेकिन फिर भी यह पार्टी के लिए आगे बढ़ने का एक अच्छा मौका था।
2012 से विपक्ष इस सीट पर लगातार मजबूत रहा है और आम आदमी पार्टी की पिछली जीत ने उसके स्थानीय संगठन को और मज़बूत कर दिया। इस बार भी भाजपा की हार के पीछे कई वजहें रहीं, जिनमें सबसे अहम रही पार्टी के अंदर की खींचतान और गलत उम्मीदवार का चयन।
भाजपा ने किरीट पटेल को उम्मीदवार बनाया, जिनका चुनाव स्थानीय स्तर पर भारी विरोध हुआ। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराज़गी फैली, जो प्रचार अभियान में साफ नजर आई। दिलचस्प बात यह है कि किरीट पटेल पहले भी दो बार भाजपा को चुनाव में हरा चुके हैं।
साथ ही इस क्षेत्र में पाटीदार समुदाय के वोटर बड़ी संख्या में आम आदमी पार्टी के गोपाल इटालिया की ओर झुके। इसके अलावा, भाजपा नेता जवाहर चावड़ा का असर भी भाजपा की हार में अहम रहा। उन्हें दरकिनार करने की कोशिशें पार्टी को भारी पड़ीं, क्योंकि उनका क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव है।
हालाँकि हार के बावजूद भाजपा ने परिपक्वता दिखाई और ईवीएम या चुनाव आयोग पर सवाल उठाने से बची। पार्टी नेता ऋषिकेश पटेल ने कहा कि वे हार की आंतरिक समीक्षा करेंगे और भविष्य में सुधार के लिए काम करेंगे। यही बात भाजपा को अन्य पार्टियों से अलग बनाती है, जो अक्सर हार के बाद सरकार या चुनाव प्रणाली पर आरोप लगाने लगती हैं।
वहीं, गोपाल इटालिया की जीत ने आम आदमी पार्टी में नई ऊर्जा भर दी है। लेकिन यह भी सच है कि उनकी जीत का एक बड़ा कारण भाजपा की आंतरिक समस्याएँ और कॉन्ग्रेस की कमजोरी रही। इसलिए ये नतीजे न सिर्फ एक सीट की जीत या हार हैं, बल्कि गुजरात की राजनीति में बदलाव के संकेत भी हैं।
गुजरात में भाजपा का दबदबा कायम, कादी में भाजपा की जीत
विधानसभा सीट पर भाजपा के राजेंद्र कुमार चावड़ा ने 39,452 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की, जिससे राज्य में पार्टी की मजबूत स्थिति और ज्यादा पक्की हो गई है। इस जीत से साफ हो गया कि गुजरात में भाजपा का प्रभाव अभी भी मजबूत है और उसका संगठनात्मक ढाँचा पूरी तरह सक्रिय है।
जनसंघ के जमाने से पार्टी से जुड़े हुए वरिष्ठ नेता चावड़ा के उम्मीदवार बनने से पार्टी को अपने पारंपरिक वोटरों का समर्थन मजबूत करने में मदद मिली। इस चुनाव में 57.51% की अच्छी वोटिंग दर रही, जो दिखाता है कि भाजपा का चुनाव अभियान लोगों को जोड़ने और मतदान के लिए प्रेरित करने में कामयाब रहा। कुल मिलाकर, कड़ी की यह जीत भाजपा के लिए एक बड़ा मनोबल बढ़ाने वाला संकेत है।

कादी विधानसभा सीट पर भाजपा की जीत ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि पार्टी की लोकप्रियता और संगठनात्मक ताकत अभी भी मजबूत बनी हुई है।
इस सीट पर भाजपा ने विकास, औद्योगिकीकरण और किसानों के मुद्दों को लेकर प्रचार किया, जो शहरी और ग्रामीण दोनों ही मतदाताओं को काफी पसंद आया। भाजपा नेता ऋषिकेश पटेल ने इस जीत को ‘लोगों की जीत’ कहा, जिससे यह साफ है कि पार्टी इसे जनता के समर्थन और अपनी नीतियों की पुष्टि के रूप में देख रही है।
वहीं, आम आदमी पार्टी और कॉन्ग्रेस इस सीट पर भाजपा को कोई बड़ी चुनौती नहीं दे पाए। आप के उम्मीदवार जगदीशभाई गणपतभाई चावड़ा को सिर्फ 3,090 वोट ही मिल सके, जो विपक्ष की कमजोर उपस्थिति को दिखाता है।
हालाँकि विसावदर में मिली हार भाजपा के लिए एक चेतावनी भी है। यह हार दिखाती है कि पार्टी को अपनी रणनीतियों पर फिर से विचार करना होगा और स्थानीय स्तर पर मौजूद आंतरिक संघर्षों और नेताओं की नाराजगी को गंभीरता से लेना होगा।
भाजपा को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि हर क्षेत्र में उसका संगठन और नेतृत्व एकजुट और मजबूत रहे। कुल मिलाकर, जहाँ कादी की बड़ी जीत भाजपा को आत्मविश्वास देती है, वहीं विसावदर की हार उसे आत्ममंथन करने का मौका भी देती है, ताकि भविष्य में और मजबूत होकर सामने आ सके।
2022 के मुकाबले अब भाजपा बेहतर स्थिति में
अगर पूरे गुजरात की बात करें तो विसावदर उपचुनाव में मिली हार से भाजपा को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है। दरअसल, आज की तारीख में भाजपा 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटों के साथ और भी मजबूत स्थिति में है।
जहाँ तक विसावदर की बात है, यह सीट पहले से ही भाजपा के पास नहीं थी, इसलिए यहाँ मिली हार को पार्टी के लिए झटका नहीं माना जा सकता। इस नजरिए से देखें तो भाजपा की स्थिति पहले से बेहतर है और एक सीट पर हार उसकी बड़ी सफलता की तस्वीर को धुँधला नहीं करती।
अब अगर 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को मौजूदा हालात से जोड़कर देखा जाए, तो साफ होता है कि भाजपा का जनाधार बना हुआ है और पार्टी राज्य में पहले से कहीं ज्यादा मजबूत बनी हुई है।

विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 2022 में बड़ी ऐतिहासिक जीत हासिल की। कुल 182 में से भाजपा ने 156 सीटें जीतकर एक नया रिकॉर्ड बनाया और सरकार बनाई। वहीं, कॉन्ग्रेस को सिर्फ 17 सीटें मिलीं और आम आदमी पार्टी को 5 सीटों पर जीत मिली। इसके अलावा समाजवादी पार्टी को 1 सीट और 3 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में भाजपा की शानदार सफलता ने साफ कर दिया कि गुजरात में उसका जनाधार बहुत मजबूत है।

अगर मौजूदा हालातों पर नजर डालें तो गुजरात विधानसभा में इस समय भाजपा के पास 162 सीटें हैं, जबकि कॉन्ग्रेस सिर्फ 12 सीटों पर सिमट गई है। आम आदमी पार्टी ने विसावदर में जीत दर्ज करके अपनी पिछली स्थिति को बरकरार रखा है।
अगर तुलना करें तो 2022 में भाजपा के पास 156 सीटें थीं, जो अब बढ़कर 162 हो गई हैं। यानी पार्टी ने पिछले तीन सालों में 6 और सीटें अपने नाम की हैं। यह दिखाता है कि राज्य में भाजपा की पकड़ और प्रभाव लगातार बढ़ रहा है।
विसावदर उपचुनाव में मिली हार भी भाजपा के लिए कोई बड़ा झटका नहीं है, क्योंकि यह सीट पहले से ही उसके पास नहीं थी। इस लिहाज से देखें तो भाजपा की स्थिति पहले से और मज़बूत हुई है और उसकी विधानसभा में संख्या में बढ़ोतरी ने यह साफ कर दिया है कि वह अब भी राज्य की सबसे ताकतवर पार्टी बनी हुई है।
मूल रूप से यह रिपोर्ट गुजराती भाषा में राजगुरु भार्गव ने लिखी है, इस लिंक पर क्लिक कर विस्तार से पढ़ सकते है।