असम हिमंता बिस्वा सरमा

भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने एक बड़ी घोषणा की है। इसके तहत गुवाहाटी में बन रहा सबसे लंबा फ्लाईओवर (दीघलीपुखुरी से नूनमाटी तक) अब महाराजा पृथु के नाम पर रखा जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह फैसला असम की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और आने वाली पीढ़ियों को हमारे वीरतापूर्ण इतिहास से प्रेरित करने के उद्देश्य से लिया गया है।

मुस्लिम आक्रांता मोहम्मद बिन खिलजी को हराने वाले महाराजा पृथु

महाराजा पृथु को राजा पृथु या विश्वसुंदर देव के नाम से भी जाना जाता है। वे 12वीं और 13वीं सदी में प्राचीन कामरूप (वर्तमान असम) के शासक थे। राजा पृथु ने 1206 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत के सिपहसालार मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी को हराया था।

बख्तियार खिलजी वही आक्रांता था, जिसने नालंदा और विक्रमशिला जैसे शिक्षा के बड़े केंद्रों को नष्ट कर दिया था और 10,000 से ज्यादा बौद्ध भिक्षुओं की हत्या की थी। बिना किसी खास प्रतिरोध के पूर्व की ओर बढ़ने के बाद, जब खिलजी की फौज ने कामरूप में प्रवेश करने का प्रयास किया, तो उसे भयंकर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।

मिनहाज सिराज-अल-दीन द्वारा लिखित फ़ारसी इतिहास ‘तबाकत-ए-नासिरी’ सहित ऐतिहासिक स्रोतों और कनाई बसासी और कन्हाई बोरोक्सी बुआ जिल जैसे स्थलों के शिलालेखों में उल्लेख है कि आक्रमणकारी फौज का पूरी तरह से सफाया कर दिया गया था और असम की संप्रभुता सुरक्षित रही। कई फौजी पीछे हटने से पहले ही दुर्गम इलाकों में मारे गए थे।

उसने बिना किसी युद्ध के बंगाल पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद उसने 1206 ईस्वी में तिब्बत पर आक्रमण करने की योजना बनाई, ताकि बौद्ध मठों के खजाने को लूट सके। वह दक्षिण पूर्व एशिया के साथ कामरूप और सिक्किम से होकर जाने वाले पारंपरिक व्यापार मार्ग पर भी कब्जा करना चाहता था।

खिलजी ने राजा पृथु और उनकी सेना की वीरता के बारे में सुना था और जानता था कि उनके राज्य से होकर गुजरना असंभव होगा। अतः उसने कामरूप के विरुद्ध लड़ने के बजाय, तिब्बत पर आक्रमण करने के लिए राजा पृथु के पास हाथ मिलाने का पैगाम भेजा।

कामरूप राजा ने खिलजी के साथ सहमति जताते हुए कहा कि वह भी रेशम मार्ग पर नियंत्रण के लिए दक्षिणी तिब्बत पर भी आक्रमण करना चाहते हैं। इसके बाद खिलजी और राजा पृथु संयुक्त आक्रमण के लिए सहमत हो गए, लेकिन राजा पृथु ने सलाह दी कि मॉनसून के मौसम में पहाड़ों से होकर जाना खतरनाक होगा, इसलिए कुछ समय इंतजार करना चाहिए।

जब तक खिलजी के आदमी राजा पृथु का संदेश लेकर लौटे, तब तक वह काफी आगे बढ़ चुका था और वर्तमान सिलीगुड़ी के पास डेरा डाले हुए था। खिलजी ने उनकी सलाह को नजरअंदाज कर दिया और एक स्थानीय गाइड ‘मेच’ के जरिए भूटान के रास्ते से तिब्बत जाने की कोशिश की। यात्रा शुरू होने से पहले खिलजी ने मेच का धर्मांतरण करा दिया था।

रास्ते में तिब्बती गुरिल्ला सेनाओं ने उसकी फौज पर हमला कर दिया। भारी बारिश और बीमारियों के चलते उसकी फौज कमजोर हो गई। कई फौजी बीमारी से मर गए। हालात इतने खराब थे कि बख्तियार खिलजी की फौज ने घोड़ों को खाने के लिए मार डाला। उसी रास्ते से वापस लौटने में असमर्थ, खिलजी ने कामरूप के रास्ते लौटने का फैसला किया।

राजा पृथु की युद्धनीति

राजा पृथु को इस घटनाक्रम की जानकारी थी क्योंकि उनके जासूस नियमित रूप से जानकारी दे रहे थे। वह अपनी सलाह की अनदेखी करने के लिए खिलजी से पहले से ही क्रोधित थे और उन्हें अंदेशा था कि आक्रमणकारी उनके राज्य को लूटकर अपनी आपूर्ति बढ़ाएँगे। 

जब खिलजी लौटने के लिए कामरूप की ओर बढ़ा, तो राजा पृथु ने पहले ही सारी तैयारी कर रखी थी। उन्होंने स्कॉर्च्ड अर्थ रणनीति अपनाई और यानी रास्ते में सभी संसाधनों को नष्ट कर दिया, ताकि दुश्मन को कोई मदद न मिल सके। पुलों को तोड़ दिया गया और राशन समेत रास्तों को जला दिया गया।

युद्ध में लगभग 12,000 घुड़सवार और 20,000 पैदल पौजी मारे गए। खिलजी किसी तरह जान बचाकर कुछ सौ फौजियों के साथ भाग निकला। इसके बाद खिलजी ने नए क्षेत्रों पर विजय पाने का उत्साह खो दिया और फिर कभी किसी युद्ध में नहीं गया। अंत में खिलजी अपने ही एक सिपहसालार अली मर्दान खिलजी के हाथों मारा गया।

राजा पृथु ने असम की भूमि को बाहरी आक्रमणों से बचाया। हालाँकि 1228 में दिल्ली सल्तनत के शासक इल्तुतमिश के बेटे नासिरुद्दीन महमूद से युद्ध में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हार स्वीकारने के बजाय उन्होंने अपने किले के एक जलकुंड में कूदकर स्वाभिमानपूर्वक जीवन त्याग दिया।

आज भी 27 मार्च को असम में ‘महाविजय दिवस’ मनाया जाता है। यह वही दिन है जब पृथु ने बख्तियार खिलजी की फौज को हराया था। महाविजय दिवस मध्यकालीन भारत के सबसे आक्रामक सैन्य अभियानों में से एक के विरुद्ध राज्य के प्रतिरोध और उत्तरजीविता का स्मरणोत्सव है।

सीएम ने कहा- राजा पृथु ने असम को दिल्ली सल्तनत का हिस्सा होने से बचाया

मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा कि राजा पृथु का योगदान बहुत कम जाना जाता है, जबकि उन्होंने असम को दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनने से बचाया। उन्होंने कहा कि जैसे अहोम साम्राज्य के सेनापति लाचित बरफुकन को मुगलों के खिलाफ जीत के लिए जाना जाता है, वैसे ही पृथु को भी उनके साहस और रणनीति के लिए याद किया जाना चाहिए।

नए फ्लाईओवर का नाम महाराजा पृथु के नाम पर रखने से पहले हेमंत बिस्वा शर्मा सरकार द्वारा गुवाहाटी में एक नए फ्लाईओवर का नाम महाभारत कालीन राजा भगदत्त के नाम पर रखने का निर्णय लिया गया था। भगदत्त असुर राजा नरकासुर के पुत्र थे और कुरुक्षेत्र महायुद्ध में कौरवों की ओर से भाग लिया था। उन्होंने हाथियों के एक बड़े दल सहित एक अक्षौहिणी सेना का योगदान दिया था।

अब दिघलीपुखुरी–नूनमाटी फ्लाईओवर को महाराजा पृथु फ्लाईओवर नाम देकर सरकार उनके अदम्य साहस को सम्मान दे रही है, साथ ही नई पीढ़ी को उनके बारे में जागरूक करने का प्रयास कर रही है।

(यह रिपोर्ट मूल रुप से अंग्रेजी में राजू दास ने लिखी है। इसे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। इसका अनुवाद सौम्या सिंह ने किया है। )



Source link

Search

Categories

Recent Posts

Tags

Gallery