भारत ने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान में कई आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था। इनमें आतंकी मसूद अजहर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकाने भी शामिल थे। अब मसूद अजहर ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के साथ मिलकर फिर से आतंकी ठिकाने को खड़ा करने का प्लान बनाया है। इसके लिए 3.9 बिलियन (390 करोड़) पाकिस्तानी रुपए इकट्ठा करने का योजना नहीं है।
इस बार इन आतंकियों और उनके आकाओं ने अतंरराष्ट्रीय एजेंसियों की पकड़ में आने से बचने के लिए पैसे इकट्ठा करने का नया तरीका ईजाद किया है। आतंकी इस बार किसी बैंक खाते में नहीं बल्कि डिजिटल वॉलेट में पैसा जुटा रहे हैं।
FATF जैसी संस्थाओं से बचने के लिए जैश की चाल
पाकिस्तान आतंकियों की फंडिंग के लिए दुनिया भर में कुख्यात है। इसके चलते वह लंबे समय तक फाइनेंशियल एक्शन टाक्स फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में था। इससे बचने के लिए पाकिस्तान ने जो योजना पेश की उसमें जैश-ए-मोहम्मद पर लगाम लगाना शामिल था। पाकिस्तान ने दावा किया कि वह आतंकियों को पैसे नहीं देता है और इसके लिए उसने मसूद अजहर, उसके भाई रऊफ असगर और उसके सबसे छोटे भाई तल्हा अल सैफ के बैंक खातों पर निगरानी रखने की बात कही थी।
पाकिस्तान को इन चालों के जरिए 2022 में FATF की ग्रे लिस्ट से निकलने में तो सफलता मिली लेकिन उसकी चालें कम-से-कम भारत से छिपी नहीं थीं। जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन पाकिस्तान में खूब फलते फूलते रहे और आतंक का कारोबार बिल्कुल धीमा नहीं हुआ। आतंकियों को अपना खर्च चलाने के लिए पैसे की जरूरत थी और बैंक खातों की निगरानी के चलते यह काम मुश्किल होता जा रहा था। इसके लिए अब EasyPaisa और SadaPay जैसे पाकिस्तानी डिजिटल वॉलेट्स का सहारा लिया गया है।
भारत के डर से 313 नए कैंप बनाएगा जैश
ISI और जैश अब मस्जिदों और मरकजों के निर्माण के नाम पर 3.9 बिलियन पाकिस्तानी रुपए इकट्ठा करने की कोशिश में जुटे हैं। ऐसे ही मरकजों का इस्तेमाल आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा किया करता था। भारत की एजेंसियों का मानना है कि इस पैसे के बड़े हिस्से का इस्तेमाल आतंकियों के पालन-पोषण और आतंक के लिए हथियार खरीदने में किया जाता है।
जैश का लक्ष्य है कि वह इस पैसे के जरिए 313 नए कैंप खोल दे। सैकड़ों की तादाद में नए कैंप खोलने का मकसद भारत का डर भी है। जिस तरह ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने जैश के ठिकानों को उड़ाया है, ऐसे में वो भारत को कन्फ्यूज करने के लिए बड़ी संख्या में नए कैंप खोल रहा है।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) में किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में जैश के हेड क्वॉर्टर मरकज सुभानअल्लाह को भी उड़ा दिया गया था। साथ ही, जैश के 4 अन्य ट्रेनिंग कैप मरकज बिलाल, मरकज अब्बास, महमोना जोया और सरगल भी नष्ट कर दिए गए थे। भारत के इस ऑपरेशन में 100 से अधिक आंतकी मारे गए थे।
जैश के 5 डिजिटल वॉलेट मिले
यह पैसा आतंकी के मसूद अजहर के परिवार के सदस्यों के नाम पर बने डिजिटल वॉलेट के जरिए इकट्ठा किया जा रहा था। बैंकों के जरिए लेन-देन ना होने पर पाकिस्तान यह कहकर अपनी जान छुड़ा सकता था कि जैश को मिलने वाले धन में कटौती हो गई है जबकि असल में भारी संख्या में पैसा आतंकियों के पास पहुँच रहा है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, 5 ऐसे वॉलेट मिले हैं जिनका जैश से सीधा संबंध है। आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, एक SadaPay खाता मसूद अजहर के भाई तल्हा अल सैफ (तल्हा गुलजार) के नाम पर था, जो पाकिस्तानी मोबाइल नंबर +92 3025xxxx56 से जुड़ा था। यह नंबर जैश के हरिपुर जिला कमांडर अफताब अहमद के नाम पर रजिस्टर्ड था।
मसूद अजहर के बेटे अब्दुल्ला अजहर के मोबाइल नंबर +92 33xxxx4937 से भी एक EasyPaisa वॉलेट जुड़ा हआ था। वहीं, गाजा में मदद के नाम पर भी एक वॉलेट चलाया जा रहा था। यह वॉलेट +92xxxx195206 नंबर से चलाया जा रहा था और खालिद अहमद के नाम पर थाष हालाँकि, मसूद अजहर का बेटा हम्माद अजहर इसे संचालित कर रहा था।
मस्जिदों में चल रहा डोनेशन का अभियान
ऑनलाइन पैसा लेने के अलावा जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी जुमे की नमाज के दौरान भी मस्जिदों से पैसा इकट्ठा कर रहे हैं। इन्हें इस तरह दिखाया जाता है कि इस पैसे का इस्तेमाल गाजा में मदद के लिए किया जाएगा लेकिन असल में इस पैसे को जैश अपने आतंकी इरादों को पूरा करने के लिए ही जुटा रहा था। जैश के कमांडर वसीम चौहान (उर्फ वसीम खान) का एक वीडियो भी सामने आया था जिसमें वह एक जुमे की नमाज के बाद इकट्ठा हुए पैसे को गिन रहा था।
मसूद अजहर और उसके करीबियों द्वारा चलाया जाने वाला एक ट्रस्ट ‘अल-रहमत’ भी आतंकी फंडिग के इस अभियान में एक अहम कड़ी बन गया है। यह ट्रस्ट गुलाम मुर्तजा के नाम से संचालित नेशनल बैंक ऑफ पाकिस्तान के एक खाते (खाता नंबर 105XX9) के जरिए धन इकट्ठा कर रहा था। यह ट्रस्ट हर साल जैश के फंड में करीब 100 करोड़ पाकिस्तान रुपए का योगदान देता है।
सोशल मीडिया से विदेश तक पैसों की माँग कर रहा जैश
खुफिया एजेंसियों को मिली ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक, जैश ने अपने सक्रिय गुर्गों और प्रॉक्सी नेटवर्क को पूरी तरह से एक्टिव कर दिया है और अब फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स के जरिए भी धन उगाही की योजना बनाई गई है।
जानकारी के अनुसार, इन प्लेटफॉर्म्स पर जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े प्रॉक्सी अकाउंट्स और सीधे इसके कमांडरों द्वारा संचालित अकाउंट्स से लगातार पोस्टर, उकसाने वाले वीडियो और यहां तक कि मसूद अजहर द्वारा लिखी गई चिट्ठी भी शेयर की जा रही है।
इन पोस्ट्स में यह दावा किया जा रहा है कि जैश-ए-मोहम्मद 313 मरकज का निर्माण कर रहा है। ऐसे हर मरकज के लिए 12.5 मिलियन पाकिस्तानी रुपए की जरूरत बताई है। यह फंड रेजिंग केवल पाकिस्तान तक सीमित नहीं है। जैश-ए-मोहम्मद ने विदेशों में बसे पाकिस्तानी नागरिकों से भी पैसे देने की माँग की है। जाहिर है कि इस रकम का इस्तेमाल आतंकियों की ट्रेनिंग, हथियारों की सप्लाई और नेटवर्क फैलाने पर ही खर्च किया जाएगा।
डिजिटल वॉलेट्स के जाल का कैसे फायदा उठा रहा जैश?
इकोनॉमिक टाइम्स रिपोर्ट के मुताबिक, जैश जिन EasyPaisa और SadaPay जैसे डिजिटल वॉलेट्स का इस्तेमाल कर रहा है, ये वॉलेट्स परंपरागत बैंकिंग से अलग वॉलेट-टू-वॉलेट व वॉलेट-टू-कैश ट्रांसफर की सुविधा देते हैं। इसी कारण FATF जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के लिए इन पर नजर रखना मुश्किल होता है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मसूद अजहर का परिवार एक समय में 7 से 8 वॉलेट्स ऑपरेट करता है और हर 4 महीने बाद उन्हें बदल देता है। जब किसी वॉलेट में बड़ी रकम इकट्ठी हो जाती है तो उसे छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटकर नकद निकाल लिया जाता है। बताया जा रहा है कि हर महीने करीब 30 नए वॉलेट्स खोले जाते हैं।
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ अमित दूबे का कहना है कि ये डिजिटल वॉलेट्स ‘डिजिटल हवाला‘ की तरह काम करते हैं, जो बिना बैंकिंग नेटवर्क के पैसों का लेनदेन संभव बनाते हैं। यही कारण है कि जैश का यह नेटवर्क जांच एजेंसियों और अंतरराष्ट्रीय निगरानी संस्थाओं की पकड़ से बच निकलता है।
रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि मौजूदा वक्त में जैश के वित्तीय लेनदेन इन वॉलेट्स के जरिए किए जानते हैं जो करीब 80-90 करोड़ पाकिस्तानी रुपए है। इस पैसे का इस्तेमाल हथियार खरीदने, ट्रेनिंग कैंप चलाने, अजहर के परिवार की मदद के लिए और लग्जरी कारों के लिए होता है। बताया जाता है कि इस पैसे का एक बड़ा हिस्सा अरब देशों से आता है।












