बिहार में चुनाव आयोग की ओर से चलाए गए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) अभियान का पहला चरण पूरा हो चुका है। 24 जून से 25 जुलाई 2025 तक चले इस अभियान के दौरान राज्य के कुल 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने अपने फॉर्म जमा किए, जो कुल का 91.69% है।
लेकिन इस प्रक्रिया में करीब 65 लाख मतदाताओं के नामों पर सवाल उठे हैं, जिनमें से 36 लाख का कोई अता-पता नहीं है, 22 लाख की मौत हो चुकी है और 7 लाख नामों में दोहराव पाया गया है। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि ये आँकड़े अंतिम नहीं हैं, क्योंकि 1 अगस्त से 1 सितंबर तक दावे और आपत्तियाँ स्वीकार की जाएँगी।
इसी बीच, आईआईएम के दो प्रोफेसरों की हालिया स्टडी ने दावा किया है कि बिहार की वोटर लिस्ट में असली फर्जीवाड़ा 77 लाख तक हो सकता है, जो SIR के नतीजों से भी ज्यादा है। इससे सवाल उठता है कि क्या चुनाव आयोग ने अब तक कोई कड़ा कदम उठाया है?
चुनाव आयोग की प्रेस नोट के मुताबिक, SIR का मुख्य उद्देश्य सभी योग्य मतदाताओं को शामिल करना और कोई भी पात्र व्यक्ति को छूटने न देना था। राज्य में 38 जिलों, 243 विधानसभा क्षेत्रों और 77,855 पोलिंग बूथों पर यह अभियान चलाया गया।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) बिहार, जिला निर्वाचन अधिकारी (DEO), इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO), असिस्टेंट इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (AERO) और बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) की टीम ने घर-घर जाकर फॉर्म बांटे और कम से कम तीन बार विजिट की। इसके अलावा 12 प्रमुख राजनीतिक दलों के 1.60 लाख बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। BLA की संख्या SIR के दौरान 18% बढ़ गई, जो दलों की भागीदारी को दर्शाता है।
आयोग ने विशेष रूप से प्रवासी, शहरी और युवा मतदाताओं पर फोकस किया। प्रवासियों के लिए हिंदी में पूरे देश के 246 अखबारों में विज्ञापन दिए गए, जिनकी कुल सर्कुलेशन 2.60 करोड़ थी। साथ ही, CEO बिहार ने अन्य राज्यों के CEO को पत्र लिखकर बिहार के प्रवासियों तक पहुँचने का अनुरोध किया। प्रवासियों ने ऑनलाइन पोर्टल voters.eci.gov.in या ECI ऐप के जरिए 16 लाख फॉर्म भरे, जबकि 13 लाख ने फॉर्म डाउनलोड किए।
हरी इलाकों में विशेष कैंप लगाए गए और युवाओं (18-19 साल) को शामिल करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए गए। कुल 5.7 करोड़ मोबाइल नंबरों पर SMS भेजे गए और राजनीतिक दलों के साथ कई मीटिंग्स हुईं। BLO ने BLA के साथ बूथ लेवल मीटिंग्स कीं और BLA को प्रति दिन 50 फॉर्म जमा करने की अनुमति दी गई।
आईआईएम के 2 प्रोफेसरों के रिसर्च पेपर में आँकड़े अलग
लेकिन SIR के इन नतीजों से ठीक पहले जुलाई 2025 में आईआईएम कलकत्ता के पूर्व छात्र और वर्तमान प्रोफेसर डॉ. विदु शेखर (एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च) और डॉ. मिलन कुमार (आईआईएम विशाखापत्तनम) की स्टडी ने बड़ा खुलासा किया। “Estimating Legitimate Voter Numbers in Bihar (2025): A Demographic and Migration-Based Reconstruction” नाम की इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बिहार में असली योग्य मतदाताओं की संख्या सिर्फ 7.12 करोड़ हो सकती है, जबकि आधिकारिक रोल में 7.89 करोड़ हैं। यानी 77 लाख (9.7%) का अंतर है।
यह स्टडी डेमोग्राफिक और माइग्रेशन डेटा पर आधारित है, जिसमें 2003 के वोटर लिस्ट से सर्वाइवर्स, 1985-2007 में जन्मे नए वोटर्स और 2003-2025 के बीच पर्मानेंट आउटमाइग्रेशन को कैलकुलेट किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2003 में 4.6 करोड़ वोटर्स थे, जिनमें से 2025 तक सिर्फ 4.1 करोड़ जिंदा बचे हैं (मोर्टैलिटी रेट को ध्यान में रखकर)। 1985-2007 में जन्मे नए वोटर्स 4.83 करोड़ हैं। लेकिन पर्मानेंट आउटमाइग्रेशन (अन्य राज्यों में स्थाई रूप से बस जाना) 1.12 करोड़ है, जो मुख्य रूप से रोजगार, शादी और फैमिली मूवमेंट के कारण है।

स्टडी ने 2011 की जनगणना, जीवित बचे लोगों की अनुमानित संख्या और अन्य सरकारी विभागों के डेटा का इस्तेमाल किया। रिपोर्ट कहती है कि वोटर लिस्ट में इन्फ्लेशन की वजहें हैं- माइग्रेंट्स का नाम नहीं हटना, डुप्लिकेट एंट्रीज और अनडॉक्यूमेंटेड रजिस्ट्रेशन। स्टडी ने कंजर्वेटिव एस्टिमेट्स इस्तेमाल किए, जैसे माइग्रेशन रेट को 2011 के बाद नहीं बढ़ाया, ताकि आँकड़ा ज्यादा न लगे।
SIR के 65 लाख संदिग्ध नामों और आईआईएम स्टडी के 77 लाख के अंतर को जोड़कर देखें, तो साफ है कि समस्या गहरी है। SIR में 36 लाख लापता, 22 लाख मृत और 7 लाख डुप्लिकेट पाए गए, लेकिन स्टडी कहती है कि ये संख्या और बड़ी हो सकती है, क्योंकि माइग्रेशन को पूरी तरह अकाउंट नहीं किया गया।
उदाहरण के लिए, बिहार से हर साल लाखों लोग दिल्ली, मुंबई, गुजरात जैसे राज्यों में जाते हैं, लेकिन उनका नाम लिस्ट से नहीं हटता। इससे डबल रजिस्ट्रेशन होता है और चुनाव में फ्रॉड का खतरा बढ़ता है।

बिना आदेश के नहीं हटाए जाएँगे नाम
बता दें कि चुनाव आयोग ने SIR के 10 उद्देश्यों का जिक्र किया है, जिनमें सभी मतदाताओं की भागीदारी, कोई पात्र न छूटे, प्रवासियों और युवाओं को शामिल करना शामिल है। आयोग ने दावा किया कि हर शिकायत का व्यक्तिगत समाधान किया गया, चाहे वो प्रिंट, टीवी या सोशल मीडिया से आई हो। अब 1 अगस्त को ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल जारी होगा, जो सभी दलों को प्रिंट और डिजिटल फॉर्म में दिया जाएगा। CEO की वेबसाइट पर भी यह उपलब्ध होगा।
1 अगस्त से 1 सितंबर तक कोई भी व्यक्ति या दल फॉर्म भरकर नाम जोड़ने या हटाने की अपील कर सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई नाम ड्राफ्ट रोल से बिना नोटिस और ERO/AERO के स्पष्ट आदेश के नहीं हटाया जा सकता। अगर कोई असंतुष्ट होता है, तो वो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट या CEO के पास अपील कर सकता है। अपील के लिए स्टैंडर्ड फॉर्म तैयार किया जा रहा है और वॉलंटियर्स को ट्रेनिंग दी जाएगी।
चुनाव आयोग ने SIR को एक बड़ा कदम बताया है, लेकिन अब तक कोई हार्ड स्टेप नहीं दिख रहा। जैसे, मृतकों और लापता वोटर्स को तुरंत हटाने के लिए कोई सख्त डेडलाइन नहीं है।
रिसर्च में सुझाव दिया गया है कि डेमोग्राफिक मॉडलिंग को इलेक्टोरल प्रशासन में शामिल किया जाए। राजनीतिक दलों ने भी SIR की सराहना की, लेकिन कुछ ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में BLO की पहुँच कम थी। विपक्षी दलों ने माँग की है कि ड्राफ्ट रोल में पारदर्शिता बरती जाए।
कुल मिलाकर SIR एक सकारात्मक कदम है, लेकिन आईआईएम स्टडी से साफ है कि बिहार की वोटर लिस्ट में सुधार की जरूरत और गहरी है। अगर 77 लाख फर्जी नाम रह गए, तो चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठेंगे। आयोग को अब माइग्रेशन डेटा को लिंक करने और Aadhaar जैसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ाना चाहिए। 1 अगस्त का ड्राफ्ट रोल देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि ये तय करेगा कि बिहार के लोकतंत्र में कितने ‘भूत’ वोटर्स बचे हैं।