CJI, SC

सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला लेते हुए अपने ही एक आदेश को वापस ले लिया। ये आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार के खिलाफ था। पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जस्टिस प्रशांत कुमार को रिटायरमेंट तक आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटा दिया जाए और उन्हें किसी सीनियर जज के साथ बैठकर काम करना होगा। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर दिया है।

पूरा मामला क्या था?

ये बात शुरू होती है मेसर्स शिखर केमिकल्स नाम की कंपनी से, जिसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। कंपनी का कहना था कि उनका एक आर्थिक विवाद है, जो दीवानी (सिविल) मामला है, लेकिन इसके बावजूद उनके खिलाफ आपराधिक केस चल रहा है। कंपनी चाहती थी कि ये आपराधिक केस रद्द हो।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार ने 5 मई 2025 को इस याचिका को खारिज कर दिया। उनका तर्क था कि अगर कोई दीवानी रास्ता (सिविल केस) उपलब्ध है, तो भी आपराधिक केस चल सकता है, क्योंकि सिविल केस में समय लगता है और शिकायतकर्ता को तुरंत राहत चाहिए।

इस फैसले से कंपनी खुश नहीं थी। उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 4 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को गलत बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जस्टिस प्रशांत का फैसला ‘विकृत’ और ‘गैरकानूनी’ है।

यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस प्रशांत के खिलाफ सख्त टिप्पणी की और आदेश दिया कि उन्हें आपराधिक मामलों से हटाकर किसी सीनियर जज के साथ डिवीजन बेंच में काम करना होगा।

फिर क्या हुआ?

सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश जैसे ही आया, इलाहाबाद हाईकोर्ट में हंगामा मच गया। हाईकोर्ट के 13 जजों ने इस आदेश के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भंसाली को पत्र लिखकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश गलत है और इसे लागू नहीं करना चाहिए।

जजों का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने बिना जस्टिस प्रशांत को नोटिस दिए या उनका पक्ष सुने ये टिप्पणियाँ की, जो ठीक नहीं है। इन जजों ने फुल कोर्ट मीटिंग बुलाने की माँग की, ताकि इस आदेश के खिलाफ प्रस्ताव पास किया जाए। ये पत्र सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गया, हालाँकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई।

उधर, भारत के चीफ जस्टिस (CJI) बी.आर. गवई ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की बेंच को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि जस्टिस प्रशांत के खिलाफ दिए गए आदेश पर दोबारा विचार किया जाए। CJI के इस अनुरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को फिर से सुनवाई के लिए लिस्ट किया।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश क्यों वापस लिया?

8 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने नया फैसला सुनाया। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि उनका मकसद जस्टिस प्रशांत को शर्मिंदा करना या उनकी बेइज्जती करना नहीं था। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का काम न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखना है। अगर कोई फैसला गलत है और वो जनता के भरोसे को कम करता है, तो सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ता है।

लेकिन इस बार CJI के पत्र और हाईकोर्ट जजों की आपत्ति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने 4 अगस्त के आदेश के दो पैराग्राफ (25 और 26) हटा दिए। इन पैराग्राफ में जस्टिस प्रशांत को आपराधिक मामलों से हटाने और सीनियर जज के साथ बैठने का आदेश था।

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ही तय करते हैं कि कौन सा जज कौन से केस सुनेगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के हवाले कर दिया कि वो जस्टिस प्रशांत के केस की सुनवाई को लेकर फैसला लें। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये माना कि हाईकोर्ट का 5 मई का फैसला गलत था, लेकिन अब वो इसकी नई सुनवाई के लिए हाईकोर्ट को भेज रहे हैं।

इस मामले से क्या समझ आता है?

ये पूरा मामला दिखाता है कि न्यायपालिका में एक-दूसरे की गरिमा और स्वायत्तता कितनी जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले जस्टिस प्रशांत के फैसले को गलत माना और सख्त टिप्पणी की, लेकिन जब हाईकोर्ट के जजों और CJI ने इस पर सवाल उठाए, तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश को वापस ले लिया।

ये पूरा मामला दिखाता है कि सुप्रीम कोर्ट भी अपनी गलतियों को सुधारने के लिए तैयार है। साथ ही ये भी साफ हुआ कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को अपने कोर्ट में जजों के कामकाज का पूरा अधिकार होता है और सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल नहीं देना चाहता।

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने ये जरूर कहा कि जस्टिस प्रशांत का फैसला गलत था, क्योंकि दीवानी मामले को आपराधिक केस में बदलना ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि ऐसे फैसले जनता का भरोसा कम कर सकते हैं। इसीलिए उन्होंने मामले को दोबारा सुनवाई के लिए हाईकोर्ट भेजा।

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