कर्नाटक में एक बार फिर नाबालिग लड़की से शादी और गर्भवती करने का गंभीर मामला सामने आया है। आरोपित कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि एक ग्राम पंचायत अध्यक्ष है। इससे पहले बुधवार (27 अगस्त 2025) को भी एक 9वी कक्षा की 17 वर्षीय छात्रा ने शौचालय में एक बच्चे को जन्म दिया था। इस घटना ने राज्य में लगातार बढ़ रही नाबालिग गर्भावस्था की समस्या को फिर उजागर कर दिया है।

आँकड़े बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में 80,000 से अधिक किशोरियाँ गर्भवती हुई हैं। बावजूद इसके कॉन्ग्रेस सरकार के पास केवल बहाने हैं, न कोई ठोस कार्रवाई, न कोई असरदार नीति। वहीं, महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी हेब्बालकर ने बेतुका बयान देते हुए कहा कि इसका कारण ‘सोशल मीडिया’ और ‘लव अफेयर्स’ है।

बेलगावी में पंचायत अध्यक्ष की करतूत

बेलगावी जिले में एक नाबालिग लड़की की डिलीवरी के बाद जो सच्चाई सामने आई, वह किसी को भी चौंका सकती है। जिस लड़की को अस्पताल में भर्ती किया गया, उसकी उम्र महज 15 साल थी। वह पिछले साल ग्राम पंचायत अध्यक्ष से शादी कर चुकी थी। यह बाल विवाह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि एक जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा किया गया जघन्य अपराध है।

जब मामला सामने आया, तब जिला बाल संरक्षण इकाई ने शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद पुलिस ने पॉक्सो एक्ट, बाल विवाह निषेध कानून और भारतीय न्याय संहिता के तहत मामला दर्ज किया। यह घटना कोई पहली नहीं है। यह इस हफ्ते की दूसरी घटना है। इससे साफ है कि बाल विवाह और नाबालिग लड़कियों का शोषण अब आम होता जा रहा है और कॉन्ग्रेस सरकार इस पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रही है।

सरकार के आँकड़े खुद बना रहे चार्जशीट

कर्नाटक सरकार के अपने आँकड़े ही सरकार के खिलाफ चार्जशीट की तरह हैं। पिछले तीन वर्षों में राज्य में 80,813 किशोर गर्भावस्था के मामले सामने आए हैं। इनमें से 3,459 लड़कियाँ 14 से 17 साल की उम्र की थीं। अकेले बेंगलुरु शहरी जिले में 8,891 मामले दर्ज हुए। इसके बाद विजयपुरा जिले में 7,143 मामले आए।

सरकार ने खुद स्वीकार किया है कि किशोर गर्भावस्था के मामलों में 54% की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन इसके बावजूद सरकार की ओर से कोई ठोस नीति, कड़ी कार्रवाई या जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया नजर नहीं आती।

मंत्री का गैरज़िम्मेदाराना बयान– जमीनी सच्चाई से मुँह मोड़ती सरकार

राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी हेब्बालकर ने इस संकट की वजह ‘सोशल मीडिया’ और ‘लव अफेयर्स’ को बताया। उन्होंने इसे ‘डरावनी और खतरनाक स्थिति’ कहा, लेकिन इसके समाधान के नाम पर कोई गंभीर पहल नहीं की।

जब एक मंत्री खुद यह स्वीकार करती हैं कि लड़कियाँ सोशल मीडिया और रिश्तों के जाल में फँस रही हैं, तो सवाल उठता है कि फिर सरकार क्या कर रही है? सोशल मीडिया पर निगरानी कहाँ है? स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता अभियान कहाँ चल रहे हैं? ऐसे बयानों से साफ है कि कॉन्ग्रेस सरकार केवल जिम्मेदारी टालने में लगी है। असली अपराधियों के खिलाफ सख्ती करने के बजाय, सरकार समस्या को ही सामान्य बताने में जुटी है।

‘अक्का फोर्स’– प्रचार ज्यादा, असर कम

सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए एक नई योजना ‘अक्का फोर्स’ की घोषणा की। इसके तहत महिला पुलिस अधिकारी और एनसीसी कैडेट कॉलेजों, बाजारों और सार्वजनिक स्थानों पर निगरानी रखेंगे। यह योजना 15 अगस्त 2025 से शुरू हो चुकी है।

लेकिन यह पहल केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित है। गाँवों में, जहाँ इंटरनेट और मोबाइल का दुरुपयोग सबसे ज्यादा हो रहा है, वहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। जिस बेलगावी जिले में पंचायत अध्यक्ष ने नाबालिग से शादी की, वहीं की लड़कियाँ सरकार की नजरों से कैसे बच रहीं हैं? इससे साफ है कि यह योजना केवल एक दिखावा है, जो जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं लाएगी।

ब्लैकमेलिंग, पोर्न और इंटरनेट का आतंक– जड़ में गहरी बीमारी

विशेषज्ञ बताते हैं कि अब नाबालिग लड़कियों को अश्लील फोटो भेजने को मजबूर किया जाता है। उन्हें ब्लैकमेल कर यौन शोषण किया जाता है। यह समस्या अब सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं रही, गाँवों में भी इंटरनेट का गलत इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है।

पिछले दो दशकों में अश्लीलता का स्तर बहुत बढ़ गया है। पहले जहाँ टीवी और सिनेमा को दोष दिया जाता था। वहीं, अब सोशल मीडिया, रील्स और ऑनलाइन पोर्न ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। बच्चियाँ कम उम्र में ही यौन संबंधों की ओर आकर्षित की जा रही हैं। सरकार ने इस दिशा में न तो कोई शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया, न कोई साइबर निगरानी तंत्र मजबूत किया। ये लापरवाही कई मासूम जिंदगियों को तबाह कर रही है।

बिल तो आया, लेकिन कानून से ज्यादा जरूरत है नीयत की

कॉन्ग्रेस सरकार ने हाल ही में बाल विवाह निषेध (कर्नाटक संशोधन) विधेयक 2025 विधानसभा में पेश किया है। इस बिल के तहत बाल विवाह की योजना या तैयारी को भी अपराध माना जाएगा। दोषियों को दो साल की सजा या ₹1 लाख जुर्माना हो सकता है।

यह कानून दिखने में सख्त जरूर है, लेकिन इसके असर तब तक नहीं होंगे जब तक जमीनी अमल सख्त न हो। आज भी बाल विवाह अक्सर त्योहारों या सामूहिक विवाह आयोजनों में हो जाते हैं। इनमें से कई घटनाएँ कभी सामने ही नहीं आतीं।

अगर पंचायत अध्यक्ष जैसे लोग खुलेआम बाल विवाह कर सकते हैं, तो कानून केवल किताबों में रह जाएगा। जरूरत है कि गाँव से लेकर शहर तक निगरानी तंत्र मजबूत हो और अपराधियों को सार्वजनिक रूप से सजा दी जाए।

कॉन्ग्रेस सरकार की ढुलमुल नीति से बिगड़ रहे हालात

कर्नाटक में नाबालिग गर्भावस्था और बाल विवाह की घटनाएँ अब अपवाद नहीं, बल्कि एक भयावह नियमितता बन चुकी हैं। कॉन्ग्रेस सरकार के बयान, योजनाएँ और आँकड़े एक-दूसरे से मेल नहीं खाते। जहाँ एक ओर मंत्री सोशल मीडिया को दोष देती हैं, वहीं सरकार इंटरनेट के दुरुपयोग पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती। जहाँ एक तरफ कानून लाया जा रहा है, वहीं पंचायत अध्यक्ष जैसे जनप्रतिनिधि खुद कानून तोड़ते हैं।

यह सब दिखाता है कि कॉन्ग्रेस सरकार इस समस्या को लेकर न तो ईमानदार है, न गंभीर। जब तक सरकार सख्ती से कार्रवाई नहीं करती और जमीनी स्तर पर जवाबदेही तय नहीं होती, तब तक मासूम बेटियाँ इसी तरह शिकार बनती रहेंगी। यह सिर्फ सामाजिक नहीं, राजनीतिक अपराध है और इसका जिम्मेदार सत्ता में बैठा हर व्यक्ति है।

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