प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो साभार: AI Grok)

मद्रास हाई कोर्ट ने फिर साफ कर दिया कि बिना सरकार की इजाजत कोई भी घर प्रार्थना सभा का अड्डा नहीं बन सकता। कोर्ट ने कहा कि आप की प्रार्थना सभा से शोर हो या ना हो, किसी को कोई समस्या हो ना हो लेकिन बिना अनुमति लिए किसी भी घर को प्रार्थना सभा नहीं बनाया जा सकता है। तिरुवर जिले के पादरी एल जोसेफ विल्सन के मामले में कोर्ट ने ये फैसला सुनाया।

क्या है नया मामला

तिरुवर जिले के कोडावसल के पादरी एल जोसेफ विल्सन के घर को उनके क्षेत्र के जिला कलेक्टर ने साल 2024 में सील करने और वहाँ प्रार्थना सभाएँ आयोजित ना करने का आदेश दिया था। जिसके बाद विल्सन ने मद्रास हाई कोर्ट का सहारा लिया और कोर्ट से इस आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया था।

विल्सन ने अपनी याचिका में कहा था कि वह ‘वर्ड ऑफ गॉड मिनिस्ट्रीज ट्रस्ट’ के नाम से एक ट्रस्ट चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि 2023 में एक संपत्ति खरीदी थी तब से नियमित तौर पर उसमें प्रार्थना सभाएँ आयोजित की जाती हैं। हालाँकि विल्सन ने घर में चर्च के निर्माण के लिए परमिशन और प्लान अप्रूवल के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था, लेकिन जिला कलेक्टर ने इसे खारिज कर दिया था।

कुछ दिनों बाद तहसीलदार ने एक नोटिस जारी कर विल्सन को 10 दिनों में प्रार्थना कक्ष बंद करने को कहा। जब विल्सन ने इसे रद्द करने की अपील की तो कलेक्टर ने कोर्ट में दलील दी कि विल्सन बिना अनुमति के प्रार्थना कक्ष नहीं चला सकते हैं। उन्होंने कहा कि उनके प्रार्थना सभा के समय होने वाले शोर और लोगों के जमा होने से आस-पास के लोगों को परेशानी हो रही है।

मामले में मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने कहा, “याचिकाकर्ता की ओर से जारी हलफनामे में उसने भरोसा दिया है कि वह लाउडस्पीकर और माइक्रोफोन का उपयोग किए बिना शांतिपूर्ण तरीके से घर में प्रार्थना करेगा। लेकिन लाउडस्पीकर और माइक्रोफोन का उपयोग न करने से समस्या का समाधान नहीं होगा। मुद्दे की जड़ यह है कि याचिकाकर्ता प्रार्थना सभा आयोजित करने के लिए घर को प्रार्थना कक्ष में नहीं बदल सकता।”

कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए स्पष्ट रुप से कहा है कि किसी हॉल में प्रार्थना सभा आयोजित करने के लिए संबंधित नियमों के तहत संबंधित प्राधिकरण से अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है। इसलिए, याचिकाकर्ता अधिकार के तौर पर बिना अनुमति के प्रार्थना सभा आयोजित करने के लिए प्रार्थना हॉल नहीं रख सकता।

पुराने मामले में कन्याकुमारी के जिला कलेक्टर ने टी विल्सन नाम के एक शख्स के खिलाफ एक याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि वह बिना किसी अनुमति के लोगों की भीड़ जमाकर प्रार्थना सभा कर रहें हैं। उनका कहना था कि विल्सन के घर में नियमित तौर पर सुबह के 9 बजे से दोपहर के 12 बजे तक क्रिश्चियन रिलीजियस ट्रस्ट की ओर से प्रार्थना सभा का आयोजन होता था। इस दौरान स्पीकर और माइक्रोफोन का भी इस्तेमाल होता था। इससे आस-पास के लोगों को भी दिक्कत होती है।

इस पर टी विल्सन ने भी खुद को बचाते हुए एक याचिका दायर की थी और कहा था कि सांप्रदायिक सद्भावना को ठेस पहुँचाते हुए उनकी निजी प्रार्थना को लेकर झूठी शिकायत की गई है। हालाँकि जिला कलेक्टर ने अदालत के सामने फोटोग्राफ्स और अन्य सबूत पेश किए, जिसमें इकट्ठा हुई भीड़ देखी जा सकती थी और स्पीकर भी चलता दिख रहा था।

इसके बाद मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच के जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने 29 अप्रैल 2021 को टी विल्सन की याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने कहा था कि इस तरह की सार्वजनिक प्रार्थना के लिए याचिकाकर्ता को तमिलनाडु पंचायत भवन नियमावली, 1997 के नियम 4 (3) के तहत जिला कलेक्टर से अनुमति लेनी चाहिए थी।

देखा जाए तो किसी को भी इस तरह घर को प्रार्थना सभा बनाने की अनुमति होनी भी नही चाहिए। हाल के ही दिनों में कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं, जहाँ घर के अंदर ईसाइयों की प्रार्थना सभा होती है। इतना ही नहीं, कई मामले ऐसे भी रहें हैं, जिसके तहत प्रार्थना सभा के नाम पर ईसाइयों के अलावा हिंदू धर्म के लोगों को आमंत्रित किया जाता है और फिर उनका धर्म परिवर्तन करा दिया जाता है। ऐसे में यह फैसला आवश्यक भी था ताकि कम से कम यह सरकार के संज्ञान में हो कि कौन से ऐसे घर हैं, जो बाहर से तो सामान्य घर ही लगते हैं, लेकिन अंदर का माहौल एक चर्च का है।

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