अगस्त 2019 में जब लद्दाख को UT का दर्जा मिला तो सोनम वांगचुक, प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी का ‘हाथ जोड़कर’ धन्यवाद कर रहे थे। अब वही वांगचुक ‘हाथ में पत्थर लेने’ के लिए लोगों को उकसा रहे हैं। शांति के लिए मशहूर लद्दाख, हिंसा की चपेट में है, लोग मारे गए हैं और सुनियोजित डिजाइन के तहत हिंसा को उकसाने वाला अपने गाँव भाग गया है। कॉन्ग्रेस पार्षद के खुद हाथों में हथियार लिए लोगों को भड़काने के वीडियो-फोटो सामने आए हैं।
जिस लद्दाख में 5 अगस्त 2019 को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने की माँग पूरी होने का जश्न मनाया जा रहा थी, वहीं बीते बुधवार को पथराव और आगजनी की गई। लद्दाख में बुधवार (24 सितंबर 2025) को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने समेत कई माँगों को लेकर हिंसक प्रदर्शन हुए।
इन हिंसक प्रदर्शनों में 4 लोग मारे गए हैं और दर्जनों लोग घायल हैं। बीजेपी के दफ्तर और सुरक्षाबल के वाहनों को प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दी और कई जगहों पर पथराव किए जाने की भी खबरें हैं।
लद्दाख को UT बनाए जाने का जश्न मना रहे थे सोनम वांगचुक
इस हिंसा में केंद्रीय किरदार हैं सोनम वांगुचक, उनकी भूख हड़ताल के बीच ही यह हिंसा हुई है। वांगचुक ही अपने समर्थकों के साथ लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की माँग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। मौजूदा वक्त में इस हिंसा के लिए लोगों को उकसाने में उनका नाम आ रहा है लेकिन कभी वो लद्दाख को UT बनाए जाने का जश्न मना रहे थे।
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँट दिया था। एक बना जम्मू-कश्मीर और दूसरा लद्दाख। सोनम वांगचुक ने उसी दिन केंद्र सरकार को धन्यवाद भी दिया था।
वांगचुक ने 5 अगस्त 2019 को X पर एक पोस्ट में लिखा, “धन्यवाद प्रधानमंत्री जी, लद्दाख के लंबे समय से चले आ रहे सपने को पूरा करने के लिए लद्दाख नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देता है। ठीक 30 साल पहले अगस्त 1989 में लद्दाखी नेताओं ने केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा पाने के लिए आंदोलन शुरू किया था। इस लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में मदद करने वाले सभी लोगों का धन्यवाद! ”
THANK YOU PRIME MINISTER
Ladakh thanks @narendramodi @PMOIndia
for fulfilling Ladakh's longstanding dream.
It was exactly 30 years ago in August 1989 that Ladakhi leaders launched a movement for UT status. Thank you all who helped in this democratic decentralization!pic.twitter.com/X7pmJ5zZin
— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) August 5, 2019
लद्दाख को UT के दर्ज पर जश्न मनाने वालों में केवल वांगचुक ही शामिल नहीं थे, इसमें अंजुमन मोइन-उल-इस्लाम जैसे संगठन भी शामिल थे। इस संगठन ने 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और केंद्र सरकार को धन्यवाद देते हुए एक पत्र जारी किया था। खुद सोनम वांगचुक ने यह पत्र अपने X अकाउंट पर शेयर किया था।
जो लेह आज हिंसा की चपेट है, जल रहा है उसी लेह में 5 अगस्त 2019 के बाद लोग लद्दाख को UT का दर्जा दिए जाने पर नाच-गा कर जश्न मना रहे थे।
#Ladakh to become Union territory without legislature; people celebrate in Leh Main Bazaar pic.twitter.com/dTWxYtHcDB
— DD News (@DDNewslive) August 6, 2019
लंबा है लद्दाख के लिए UT की माँग का इतिहास
लद्दाख के लोग जो अगस्त 2019 में जश्न मनाने के लिए सड़कों पर निकले थे वो यूँ ही नहीं था। दरअसल, मोदी सरकार ने उनकी दशकों से चली आ रही माँग को पूरा कर दिया था। लद्दाख को UT का दर्जा दिए जाने से पहले जून 2019 में बीजेपी के तत्कालीन सांसद जमयांग सेरिंग नामग्याल ने कहा था, “लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग किए जाने की माँग आज की नहीं है, बल्कि 1948 से ही लद्दाख के लोग अपनी अलग पहचान चाहते थे।”
नामग्याल का यह दावा सही भी है, 1949 में लद्दाख बुद्धिस्ट असोसिएशन (LBA) की विषय समिति के अध्यक्ष चीवांग रिग्जिन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ज्ञापन देकर लद्दाखियों के लिए ‘स्वशासन’ की माँग की थी।
लद्दाख के लिए UT की माँग को लेकर 1964 में एक बड़ा आंदोलन भी हुआ। यह आंदोलन बौद्ध संत और लद्दाख के तत्कालीन प्रमुख लामा कुशोक बकुला रिनपोछे के नेतृत्व में हुआ था। हालाँकि, इस प्रदर्शन में UT का दर्जा दिए जाने की माँग नहीं मानी गई।
1989 में एक बार फिर UT की माँग को लेकर प्रदर्शन शुरू हुआ। LBA ने भारत सरकार को एक ज्ञापन सौंपकर फिर से लद्दाख के लिए ‘स्वायत्तता’ की माँग की। LBA ने इसके लिए एक बड़ी रैली भी निकाली। 1995 में इसी माँग को लेकर LAHDC (Ladakh Autonomous Hill Development Council) की भी स्थापना की गई।

इसके बाद कई वर्षों तक UT की माँग को लेकर प्रदर्शन होते रहे। तब केंद्र सरकार का मानना था कि प्रदर्शनकारियों की माँगों को पूरा करने के लिए उन्हें अनुच्छेद 370 में बदलाव करना पड़ेगा जिसके लिए कॉन्ग्रेस सरकार तैयार नहीं थी।
2016 में भी UT की माँग कर रही सर्व धार्मिक संयुक्त कार्रवाई समिति (ARJAC) ने प्रस्ताव पारित कर लद्दाख के लिए अलग UT की माँग थी। लद्दाखियों की इस माँग को अंतत: 2019 में मोदी सरकार ने ही पूरा किया।
कैसे पूर्ण राज्य के दर्जे तक पहुँची माँग
लद्दाख को UT का दर्जा मिल गया और वहाँ केंद्र सरकार ने विकास पहुँचाना भी शुरू कर दिया। मोदी सरकार में लद्दाख को एक विश्वविद्यालय, होटल प्रबंधन संस्थान और पेशेवर कॉलेज की अनुमति दी गई। करोड़ों का विशेष पैकेज दिया गया। सड़कों, पुलों का निर्माण किया गया। यह शांति और विकास कुछ ‘आंदोलनजीवियों’ से पचाया नहीं जा सका।
लोगों के बीच यह धारणा फैलानी शुरू कर दी गई कि यहाँ कंपनियाँ आकर सारी जमीन हड़प लेंगी। यहाँ बाहर के लोग आकर बस जाएँगे, जैसी बातें लोगों के बीच फैलानी शुरू कर दी गईं। 2023 की शुरुआत में सोनम वांगचुक ने ‘लद्दाख के संवैधानिक सुरक्षा उपायों’ की माँग को लेकर खुले आसमान के नीचे सोकर प्रदर्शन शुरू किया। धीरे-धीरे यह प्रदर्शन आगे बढ़ता रहा।
Leh Apex Body (LAB) और कारगिल डेमोक्रैटिक अलायंस (KAD) भी उनके समर्थन में आ गए। मार्च 2024 में सोमन वांगचुक और LAB-KDA से जुड़े लोगों ने लेह में फिर हड़ताल शुरू कर दी। सितंबर 2024 में LAB ने ‘दिल्ली चलो पदयात्रा’ की भी शुरुआत की थी।
छठी अनुसूची-पूर्ण राज्य के लिए जारी बातचीत?
लद्दाख के नेताओं ने 4 माँगों के साथ गृह मंत्रालय से संपर्क किया था, जिसमें लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा, संविधान की छठी अनुसूची में शामिल कराने की माँग, एक अलग लोक सेवा आयोग की स्थापना और दो संसदीय सीटों की माँग शामिल थी। इनमें से आखिरी दो पर गृह मंत्रालय ने सैद्धांतिक सहमति भी दे दी थी।
लद्दाख में प्रदर्शनकारियों इसे संविधान की छठी अनुसूची में भी शामिल करने की माँग कर रहे हैं। मोटे तौर पर इसे समझें तो संविधान की छठी अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों को विशेष स्वायत्तता प्रदान करने का प्रावधान जिसका मकसद आदिवासी समुदायों की संस्कृति, जमीन और संसाधनों की रक्षा करना है।
यह माँग खुद बीजेपी ने भी अपने घोषणा पत्र में रखी है, तो जाहिर है कि इसे माँग को आगे ले जाने पर पार्टी ने विचार भी किया होगा। प्रदर्शनकारियों की माँगों के लिए केंद्र सरकार से लगातार बातचीत चल रही है।
मार्च 2024 में वांगुचक के प्रदर्शन से पहले लद्दाख के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बातचीत की थी। इस बातचीत को लेकर गृह मंत्रालय ने कहा, “अमित शाह ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को आवश्यक संवैधानिक सुरक्षा उपाय प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।
यह कोई इकलौती बैठक नहीं थी। गृह मंत्रालय ने 24 सितंबर 2025 को प्रेस नोट में बताया, “भारत सरकार इन्हीं मुद्दों पर Apex Body Leh और Kargil Democratic Alliance के साथ सक्रिय रूप से बातचीत कर रही है। उच्चाधिकार प्राप्त समिति और उप-समितियों के औपचारिक माध्यम से और नेताओं के साथ कई अनौपचारिक बैठकों के माध्यम से उनके साथ कई बैठकें हुईं।”
केंद्र सरकार ने कहा कि लद्दाख के नेताओं के साथ 25 और 26 सितंबर को भी बैठकें आयोजित करने की योजना है। आगामी 6 अक्टूबर को भी उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक होनी है लेकिन उससे पहले ही लद्दाख को दंगों की आग में झोंकने की कोशिश की गई है।
वांगचुक ने हिंसा भड़काने के लिए की थी प्लानिंग?
लेह में आगजनी और पत्थरबाजी तो बुधवार को हुई लेकिन इसके बीज पहले से ही बोये जा रहे थे। सोनम वांगचुक ने सितंबर 2024 में एक प्रेस कॉन्फ्रेस में ही स्थिति विस्फोटक होने की धमकी दी थी। उन्होंने कहा था, “सरकार ने उन्हें (लद्दाख के लोगों) लोकतंत्र न देकर उनके पंख काट दिए हैं और दूसरी ओर, उन्हें रोज़गार न देकर उनके हाथ काट दिए हैं। पाकिस्तान और चीन की सीमा से लगे लद्दाख में स्थिति विस्फोटक हो सकती है।”
अपनी विदेशी फंडिंग को लेकर सवालों में रहने वाले सोनम वांगचुक ने इन प्रदर्शनों में GenZ का रेफ्रेंस दिया। यह शब्द हाल ही में नेपाल में हुए GenZ प्रदर्शनों से चर्चा में आया है जहाँ आगजनी-लूटपाट-पथराव की घटनाएँ हुई। नेपाल में दर्जनों लोग मारे गए, मंत्रियों तक को मारा पीटा गया और सरकार बदल दी गई।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या अपने प्रदर्शनों को नेपाल के प्रदर्शन से जोड़कर वांगचुक क्या हिंसा को सही ठहराने और सरकार का तख्ता पल्टने की प्रक्रिया को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं? सिर्फ सोनम ही नहीं कॉन्ग्रेस के एक पार्षद की भी इस हिंसा को भड़काने में भूमिका होने के आरोप लगाए गए हैं। बीजेपी ने पार्षद स्टैनजिंग त्सेपांग की हिंसा भड़काते हुए तस्वीरें और वीडियो शेयर किए हैं।
गृह मंत्रालय ने भी कहा है, “कई नेताओं द्वारा भूख हड़ताल समाप्त करने का आग्रह करने के बावजूद, उन्होंने (वांगचुक) भूख हड़ताल जारी रखी और अरब स्प्रिंग शैली के विरोध प्रदर्शनों और नेपाल में Gen Z के विरोध प्रदर्शनों का भड़काऊ उल्लेख करके लोगों को गुमराह किया।”
जब इस हिंसा को रोकने के लिए प्रयास करने की जरूरत थी तब वांगचुक कहाँ थे? गृह मंत्रालय बताता है, “सोनम वांगचुक ने अपने भड़काऊ बयानों के माध्यम से भीड़ को उकसाया था। संयोगवश, इस हिंसक घटनाक्रम के बीच, उन्होंने अपना उपवास तोड़ दिया और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कोई गंभीर प्रयास किए बिना एम्बुलेंस से अपने गाँव चले गए।”
जाहिर है कि जिस विषय पर सरकार बातचीत कर रही थी, जिन माँगों को लेकर बैठकें हुई थीं और आगे भी होनी थीं, उसमें इस तरह की हिंसा होना सुनियोजित ही हो सकता है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बातचीत ही रास्ता है और उसी से इसका हल निकला चाहिए था लेकिन जिस तरह अराजकता भड़काने की कोशिश की गई, उससे साफ है कि कुछ लोगों को भारत की शांति नहीं पच रही है। वो कभी GenZ, तो कभी बांग्लादेश-श्रीलंका जैसे उदाहरणों के जरिए देश में अराजकता का माहौल पैदा करना चाहते हैं।