भारत ने पिछले कुछ वर्षों में रूस से कच्चा तेल खरीदना काफी बढ़ा दिया है और इसका सीधा फायदा भारतीय रिफाइनरियों और देश की तेल खरीद पर पड़ा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 से लेकर अब तक भारत ने रूसी तेल से कम से कम 12.6 बिलियन डॉलर (1.046 लाख करोड़ रुपए) की बचत की है।

यह बचत केवल रूसी तेल की कीमतों में मिलने वाली छूट से ही नहीं, बल्कि इस बात से भी जुड़ी है कि अगर भारत ने रूस से तेल नहीं खरीदा होता, तो वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें और अधिक बढ़ जातीं और देश का तेल आयात बिल और भारी हो जाता।

शुरू में रूसी तेल पर मिलने वाली छूट काफी अधिक थी, जो 2022-23 में लगभग 13.6 प्रतिशत थी और इसने भारत को 4.87 अरब डॉलर (40,421 करोड़ रुपए) की बचत करने में मदद की। हालाँकि समय के साथ यह छूट कम हुई और वित्त वर्ष 2024-25 में यह केवल 2.8 प्रतिशत रह गई। इसके बावजूद यह भारत के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई।

रूसी तेल से भारत को हुआ काफी फायदा

रूसी तेल की खरीद का भारत में सबसे बड़ा फायदा रिफाइनरी कंपनियों को हुआ, जिसे सस्ते कच्चे तेल मिले। 2023-24 में रूस से तेल की मात्रा 373 मिलियन बैरल (59.3 बिलियन लीटर) से बढ़कर 609 मिलियन बैरल (96.83 बिलियन लीटर) हो गई, जिससे बचत भी बढ़ी और कुल 5.41 अरब डॉलर (44,903 करोड़ रुपए) की बचत दर्ज हुई।

इस दौरान रूसी तेल की औसत पहुँच मूल्य 76.39 डॉलर (6,340 रुपए) प्रति बैरल रही, जबकि अन्य आपूर्तिकर्ताओं से तेल की औसत पहुँच मूल्य 8.89 डॉलर (738 रुपए) अधिक थी। 2024-25 में छूट घटने के बावजूद, भारत की रिफाइनरियों ने रूसी तेल खरीदना जारी रखा, क्योंकि यह आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद था।

रिपोर्ट्स के अनुसार, वास्तविक लाभ केवल कीमत में छूट तक सीमित नहीं है, भारत की तेजी से बढ़ती माँग ने वैश्विक तेल की कीमतों को नियंत्रण में रखने में मदद की, जिससे तेल पर देश का कुल खर्च कम हुआ।

इस पूरे मुद्दे में अमेरिकी दबाव भी एक अहम पहलू है। डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने रूस से तेल आयात पर भारत को दबाव में लाने के लिए अतिरिक्त टैरिफ लगाए। अगस्त में ट्रम्प ने भारतीय आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ की घोषणा की, जिससे कुल टैरिफ 50 प्रतिशत तक पहुँच गया। यह कदम अमेरिकी नीति का हिस्सा था, ताकि भारत रूस से तेल खरीदना कम करे और मास्को को यूक्रेन युद्ध में दबाव में लाया जा सके।

भारत ने इस दबाव के आगे झुकने का कोई संकेत नहीं दिया। भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि देश अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखेगा और अमेरिका यह तय नहीं करेगा कि भारत किस देश से व्यापार करे। भारतीय रिफाइनरी कंपनियों ने कहा कि वे रूसी तेल खरीदना जारी रखेंगे।

रूस के लिए भारत का महत्व भी लगातार बढ़ा है। फरवरी 2022 में, जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से भी कम थी। पश्चिमी देशों ने रूसी तेल से दूरी बनानी शुरू की और रूस ने इच्छुक खरीदारों को छूट देना शुरू कर दी।

भारतीय रिफाइनरियों ने इस मौके का तुरंत लाभ उठाया और रूस कुछ ही महीनों में भारत के लिए कच्चे तेल का सबसे बड़ा स्रोत बन गया। पारंपरिक पश्चिम एशियाई आपूर्तिकर्ताओं भी इस दौर में पीछे छूट गए।

अब भारत के कुल तेल आयात में रूस का हिस्सा एक तिहाई से अधिक है और यह दुनिया में रूस का दूसरा सबसे बड़ा ग्राहक बन गया है। इसके अलावा, रूसी तेल मास्को के लिए राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है और भारत की लगातार बढ़ती खरीद ने क्रेमलिन को वित्तीय मदद भी दी।

वैश्विक आपूर्ति को स्थिर रखने में मिली मदद

रूसी तेल खरीद में समय के साथ छूट घटने के पीछे कई कारण हैं। इसमें मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में सामान्य गिरावट और माल ढुलाई और बीमा लागत में वृद्धि शामिल है। पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूसी तेल की ढुलाई और बीमा महंगा हुआ है, जिससे वास्तविक लैंडेड कीमत पर छूट कम हो गई है।

भारत के लिए लैंडेड मूल्य ही मायने रखता है, क्योंकि यही वह राशि है जो रिफाइनिंग कंपनियाँ वास्तव में चुकाती हैं। व्यापारियों के अनुसार, रूस से तेल की बढ़ती खरीद ने न केवल भारतीय रिफाइनरियों को सस्ता तेल उपलब्ध कराया, बल्कि वैश्विक आपूर्ति को स्थिर रखने में भी मदद की, जिससे भारत को अन्य स्रोतों से महंगा तेल खरीदने की जरूरत नहीं पड़ी।

सप्लाई की स्थिति और भविष्य की संभावनाओं की बात करें, तो सितंबर में भारत की रूसी तेल की खरीद अगस्त से 10-20 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है, यानी प्रतिदिन लगभग 1.5 लाख से 3 लाख बैरल तक। रूस ने यूरोप और अमेरिका की खरीद सीमित होने के कारण अपनी आपूर्ति बढ़ाई है।

हाल ही में यूक्रेन ने रूसी रिफाइनरियों पर हमला किया, जिससे देश की रिफाइनिंग क्षमता का 17 प्रतिशत हिस्सा बंद हो गया है। इसके बावजूद रूस के पास अगले महीने निर्यात करने के लिए पर्याप्त तेल हैं।

भारत की दो सबसे बड़ी रिफाइनरियाँ, रिलायंस और नायरा एनर्जी ने संकेत दिया है कि वे तेल खरीदना जारी रखेंगी। ये कंपनियाँ मुख्य रूप से रूसी तेल पर निर्भर हैं।

वैश्विक बाजार पर प्रभाव

वैश्विक बाजार पर इसका असर भी महत्वपूर्ण है। अगर भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया होता, तो वैश्विक आपूर्ति में लगभग दस लाख बैरल प्रतिदिन की कमी होती और कीमतें अल्पकालिक रूप से लगभग 100 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती थीं।

इसके अलावा, भारत रूस का सबसे बड़ा खरीदार बनकर वैश्विक तेल बाजार में संतुलन बनाए रखने में भी योगदान दे रहा है। अमेरिका और यूरोप के प्रतिबंधों के बावजूद भारत की माँग रूस को अपनी आपूर्ति बनाए रखने में मदद कर रही है।

हाल के वर्षों में भारत द्वारा रूसी तेल की बढ़ती खरीद ने देश को सस्ते कच्चे तेल का लाभ दिया है। 2024 में OPEC का हिस्सा बढ़ा और पेट्रोलियम निर्यातक देशों से महंगी आपूर्ति के कारण भारत की रणनीति और महत्वपूर्ण हो गई।

सितंबर में रूस ने यूराल क्रूड को ब्रेंट के मुकाबले 2-3 डॉलर प्रति बैरल की छूट पर बेचा, जो अगस्त के 1.50 डॉलर से सस्ता था। इसका मतलब है कि भारत आर्थिक रूप से लाभ उठा रहा है और अमेरिकी टैरिफ के बावजूद अपने तेल मिश्रण में रूसी तेल को प्रमुख बनाए रखेगा।

अगले कुछ महीनों में भारत का रूसी तेल आयात बढ़ते रह सकता है, क्योंकि न केवल यह सस्ता है, बल्कि वैश्विक तेल बाजार में स्थिरता बनाए रखने में भी मदद करता है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि तेल पर प्रतिबंध नहीं होने तक वह जहां से सबसे अच्छा सौदा मिलेगा, वहाँ से तेल खरीदेगा।

अमेरिकी टैरिफ और दबाव के बावजूद, देश ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखी है और रूसी तेल की खरीद को प्राथमिकता दी है। इस वजह से भारतीय रिफाइनरियों को आर्थिक लाभ मिला है और वैश्विक तेल बाजार में भारत का प्रभाव भी मजबूत हुआ है।

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