केरल हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में एक से ज़्यादा निकाह की इजाजत है, लेकिन एक शर्त है। मियाँ को अपनी हर बीवी के साथ न्याय करना होगा। उसे अपनी सभी पत्नियों का ख्याल रखना होगा। कोर्ट ने यह टिप्पणी एक ऐसे व्यक्ति के मामले में की जो भीख माँगकर गुजारा करता है। वह तीसरा निकाह करने की तैयारी में था। कोर्ट ने सामाजिक कल्याण विभाग को निर्देश दिया कि उस व्यक्ति की काउंसलिंग की जाए ताकि उसे तीसरी निकाह करने से रोका जा सके।
क्या था पूरा मामला?
रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला तब सामने आया जब एक व्यक्ति की दूसरी बीवी ने फैमिली कोर्ट से गुज़ारा भत्ता माँगा था। मियाँ भीख माँगता है और बीवी का दावा था कि वह शुक्रवार (19 सितंबर 2025) को मस्जिदों के बाहर भीख माँगकर लगभग 25,000 रुपए महीने कमाता है।
हालाँकि, फैमिली कोर्ट ने बीवी की गुज़ारा भत्ता की माँग यह कहकर खारिज कर दी थी कि एक भिखारी को यह देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
हाई कोर्ट की टिप्पणी
बीवी ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की और बताया कि उसका मियाँ उसे तलाक की धमकी दे रहा है और तीसरी शादी करने वाला है। केरल हाई कोर्ट के जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने फैमिली कोर्ट के फैसले को तो सही ठहराया, लेकिन तीसरी शादी के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया। जस्टिस ने कहा कि जो व्यक्ति अपनी बीवियों का खर्चा नहीं उठा सकता, उसे एक और निकाह करने का कोई हक नहीं है।
कुरान का हवाला और पॉलिगामी की शर्तें
कोर्ट ने कुरान की आयतों का हवाला देते हुए समझाया कि पॉलिगामी यानि बहुविवाह की इजाजत इस शर्त पर दी गई है कि पुरुष अपनी सभी बीवियों के साथ न्याय कर सके। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि एक ऐसा व्यक्ति जो अपनी दूसरी या तीसरी बीवी का भरण-पोषण नहीं कर सकता, उसे दोबारा निकाह करने का कोई अधिकार नहीं है।
कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ में पॉलिगामी (बहुविवाह) के अधिकार को स्पष्ट करता है, लेकिन इसे जिम्मेदारी और न्याय की कसौटी पर परखता है।