गणपति उत्सव में लीन हैं भक्त
हाथी के सिर वाले देवता भगवान गणेश को हर शुभ कार्य से पहले पूजा जाता है। उन्हें ‘विघ्नहर्ता’ यानी बाधाओं को दूर करने वाला कहा जाता है। उनका नाम दो अर्थों में बहुत खास है: ‘गणों के स्वामी’ और ‘जनता के प्रभु’।
गणेश जी ज्ञान, बल, और संकल्प के प्रतीक माने जाते हैं। हर साल पूरे देश में गणेश चतुर्थी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस साल यह उत्सव बुधवार (27 अगस्त 2025) से शुरू हुआ है और 6 सितंबर 2025 को गणपति विसर्जन के साथ इसका समापन होगा।
इन दिनों देशभर में सड़कों, मंदिरों और घरों में भक्तिमय माहौल है। हर तरफ बस गणपति की चर्चा है।
आधुनिक हाथियों के मिलता-जुलता था ‘गणेशा’
गणपति बप्पा के नाम पर ही इस प्राचीन विशाल जानवर का नाम स्टेगोडोन गणेशा (Stegodon Ganesa) रखा गया। यह एक ऐसा हाथी जैसा जीव था जो आज से करीब 25,000 साल पहले अस्तित्व में आया।
पहले इसे हाथियों का प्रत्यक्ष पूर्वज माना जाता था, लेकिन अब वैज्ञानिक इसे विलुप्त हो चुके प्रोबोसिडियन जीवों का ही रुप मानते हैं। बाद के शोध के आधार पर इस विशाल हाथी को स्टेगोडोन्टिडे परिवार में रखा गया, जो मैस्टोडॉन की तुलना में आधुनिक हाथियों (एलिफेंटिडे परिवार) से ज्यादा निकट है।
यह आज के हाथियों से भी बड़ा, लगभग 3 से 4 मीटर ऊँचा और 8 मीटर लंबा होता था। इसके बेहद लंबे और भारी दाँत (दाँतों की लंबाई 3.89 मीटर तक और वजन करीब 140 किलो तक) भी आज के हाथियों से कहीं ज्यादा बड़े थे।

इस विशाल जीव के अवशेष भारत के शिवालिक पहाड़ियों और हाल ही में 2025 में महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के वर्धा और पेनगंगा नदियों के किनारे भी मिले हैं। इससे पता चलता है कि यह जीव प्राचीन भारत में बड़ी संख्या में मौजूद था।
इतिहास में इसकी खास जगह तब बनी जब 1928 में डॉ डी एन वाडिया ने एक 3 मीटर लंबा दाँत खोजा। वह अब जम्मू विश्वविद्यालय में रखा गया है। इस जीव की इतनी अहमियत थी कि 1951 में भारत सरकार ने इसके ऊपर डाक टिकट भी जारी किया था। बाद में नेपाल ने 2015 में एक और डाक टिकट जारी किया।

पहले वैज्ञानिक मानते थे कि स्टेगोडोन हाथियों का पूर्वज था, लेकिन अब यह माना जाता है कि यह अलग है। यह Elephantidae (आधुनिक हाथियों) का करीबी माना जा सकता है पर सीधे पूर्वज नहीं। हैरानी की बात ये है कि कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, यह विशाल जीव आज से सिर्फ 4,100 साल पहले तक जिंदा था, यानी हो सकता है कि यह मानव सभ्यता के शुरुआती दौर में इंसानों के साथ भी रहा हो।
स्टेगोडोन की कई प्रजातियाँ भारत के अलावा चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया और जापान तक फैली थीं। आज जब हम गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा कर रहे हैं, तो यह जानना और भी रोचक है कि हमारे इतिहास में एक ऐसा असली जीव भी था जिसे हमारे प्रिय गणपति के नाम से जोड़ा गया। एक ओर आस्था की शक्ति है और दूसरी ओर धरती पर जीवन की अद्भुत कहानी, ये दोनों मिलकर इस त्योहार को और भी खास बना देते हैं।
यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में श्रीति सागर ने लिखी है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। इसका अनुवाद सौम्या सिंह ने किया है।