प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25-26 जुलाई 2025 को मालदीव जा रहे हैं। ये दौरा भारत और मालदीव के बीच दोस्ती को फिर से मज़बूत करने की एक बड़ी कोशिश है। ये उनकी मालदीव की तीसरी यात्रा होगी, लेकिन सबसे खास बात ये है कि मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के सत्ता में आने के बाद ये किसी बड़े विदेशी नेता की पहली आधिकारिक यात्रा होगी।
मोदी पहले 23-24 जुलाई 2025 को ब्रिटेन जाएँगे। वहाँ ब्रिटेन के पीएम कीर स्टार्मर से उनकी मुलाकात होगी। ये उनकी ब्रिटेन की चौथी यात्रा होगी। वहाँ वो स्टार्मर के साथ व्यापार, टेक्नोलॉजी, शिक्षा, रक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे तमाम मुद्दों पर बात करेंगे। वो किंग चार्ल्स तृतीय से भी मिलेंगे। लेकिन सबकी निगाहें उनकी मालदीव यात्रा पर टिकी हैं।
पीएम मोदी को मालदीव की 60वीं स्वतंत्रता दिवस समारोह में ‘मुख्य मेहमान’ बनाया गया है। ये दौरा सिर्फ एक औपचारिक यात्रा नहीं है, बल्कि इसका कूटनीतिक और रणनीतिक महत्व भी है। भारत और मालदीव के रिश्तों में पिछले एक साल से काफी उतार-चढ़ाव रहे हैं। नवंबर 2023 में जब मोहम्मद मुइज्जू राष्ट्रपति बने, तो उनके ‘इंडिया आउट’ कैंपेन ने दोनों देशों के बीच तनाव पैदा कर दिया। इस कैंपेन में भारतीय सैनिकों को मालदीव से हटाने की बात कही गई थी।
साल 2024 की शुरुआत में हालात और बिगड़ गए। मुइज्जू सरकार के दो मंत्रियों ने पीएम मोदी के खिलाफ सोशल मीडिया पर भद्दी टिप्पणियाँ कीं। ये टिप्पणियाँ तब आईं, जब मोदी ने लक्षद्वीप के टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए पोस्ट डाली थी। कई लोगों ने इसे मालदीव के टूरिज्म के खिलाफ देखा, क्योंकि लक्षद्वीप और मालदीव की खूबसूरती एक जैसी है।
जवाब में भारत में ‘बॉयकॉट मालदीव’ कैंपेन शुरू हो गया। भारतीय पर्यटक, जो मालदीव की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा हैं, वहाँ जाना कम कर दिए। 2024 के पहले चार महीनों में भारतीय पर्यटकों की संख्या 42% कम हो गई।
लेकिन दोनों देशों ने तनाव को कम करने की कोशिश की। भारत ने मालदीव में तैनात अपने सैन्य कर्मियों को मई 2023 तक हटाकर उनकी जगह सिविल इंजीनियर्स भेज दिए। भारत ने 2025 के बजट में मालदीव को 600 करोड़ रुपये की मदद दी, जो पिछले साल के 470 करोड़ से कहीं ज्यादा है। साथ ही भारत ने 400 मिलियन डॉलर और 30 बिलियन रुपये का करेंसी स्वैप समझौता भी किया, ताकि मालदीव की आर्थिक मुश्किलें कम हों।
मुइज्जू ने भी रिश्ते सुधारने की कोशिश की। सितंबर 2024 में उन दो मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया, जिन्होंने भारत और मोदी के खिलाफ टिप्पणियाँ की थीं। भले ही इसे ‘निजी कारण’ बताया गया, लेकिन सबको पता था कि ये कदम रिश्ते सुधारने के लिए था। 9 जून 2024 को मुइज्जू मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भारत आए और इस दौरे को ‘सफल’ बताया। उन्होंने भारत के साथ रिश्ते मज़बूत करने की इच्छा जताई और जल्द ही भारत आने की बात कही। अक्टूबर 2024 में मुइज्जू ने भारत का दौरा किया और दोनों देशों ने ‘कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक एंड मैरीटाइम सिक्योरिटी पार्टनरशिप’ पर सहमति जताई।
मुइज्जू के सत्ता में आने के बाद मालदीव का झुकाव चीन की तरफ दिखा। जनवरी 2024 में उनकी पहली विदेश यात्रा चीन की थी, जहाँ उन्होंने 20 बड़े समझौते किए, जिनमें सैन्य और आर्थिक सहयोग शामिल थे। मालदीव 2014 से चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है। उसने चीन से करीब 1.4 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया है, जो उसके कुल सरकारी कर्ज का 20% है।
चीन ने मालदीव में 200 मिलियन डॉलर का ‘चाइना-मालदीव फ्रेंडशिप ब्रिज’ जैसी बड़ी परियोजनाएँ बनाई हैं। मालदीव का लोकेशन इंडियन ओशियन में बहुत अहम है, क्योंकि वहाँ से चीन का 80% तेल आयात गुजरता है। विश्लेषकों का कहना है कि चीन मालदीव को अपने प्रभाव में रखना चाहता है, ताकि उसकी तेल सप्लाई सुरक्षित रहे।
लेकिन अब मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों में चीनी कर्ज से नाराज़गी बढ़ रही है। मालदीव की अर्थव्यवस्था और कर्ज संकट के बीच वो अब भारत के साथ फिर से दोस्ती बढ़ाना चाहता है। मालदीव ने सितंबर 2024 में भारत की 757 मिलियन डॉलर की मदद से डिफॉल्ट होने से बचा। भारत ने मालदीव में हनीमधू द्वीप पर इंटरनेशनल एयरपोर्ट, माले में हाउसिंग प्रोजेक्ट और ब्रिज जैसी परियोजनाओं में भी मदद की।
भारत और मालदीव का रिश्ता 1965 से है, जब मालदीव ब्रिटिश शासन से आज़ाद हुआ। भारत ने हमेशा मुसीबत में मालदीव की मदद की, चाहे वो 1988 का ऑपरेशन कैक्टस हो, 2004 की सुनामी हो या कोविड-19 महामारी। भारत ने मालदीव में सड़क, स्कूल और अस्पताल जैसे कई प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाया। 18 मई 2025 को दोनों देशों ने 100 करोड़ रुपये की ग्रांट के तहत 13 समझौते किए। मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला खलील ने कहा कि भारत की मदद हमेशा मालदीव की ज़रूरतों के हिसाब से होती है।
मालदीव भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ पॉलिसी और ‘विज़न महासागर’ का अहम हिस्सा है। ये पॉलिसी हिंद महासागर में शांति और कनेक्टिविटी बढ़ाने की बात करती है। मोदी का ये दौरा सिर्फ दो देशों की दोस्ती को फिर से मज़बूत करने का नहीं, बल्कि हिंद महासागर में भारत की ताकत दिखाने का भी मौका है। हाल के सालों में चीन ने मालदीव में अपनी पकड़ मज़बूत की थी, लेकिन अब मालदीव भारत की तरफ लौट रहा है।
मोदी का स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल होना सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है। ये दिखाता है कि भारत की नरम कूटनीति और पड़ोसी देशों से दोस्ती की रणनीति काम कर रही है। मालदीव की अर्थव्यवस्था टूरिज्म पर टिकी है, और चीनी कर्ज के बोझ तले वो अब भारत के साथ फिर से नज़दीकी चाहता है। मालदीव के लिए ये आर्थिक और कूटनीतिक सुरक्षा का रास्ता है। पहले मालदीव भारत से दूर जा रहा था, लेकिन अब मंत्रियों के इस्तीफे, भारत की बढ़ी हुई आर्थिक मदद और बड़े नेताओं की मुलाकातों से रिश्ते फिर से पटरी पर आ रहे हैं।
पीएम मोदी की मालदीव यात्रा सिर्फ एक कूटनीतिक दौरा नहीं है, बल्कि एक बड़ा स्टेटमेंट है। ये भारत-मालदीव की ऐतिहासिक दोस्ती, सांस्कृतिक नज़दीकी, आर्थिक निर्भरता और रणनीतिक महत्व को दिखाता है। मालदीव अब चीन के कर्ज और टूरिज्म की चुनौतियों के बीच एक संतुलित रास्ता चुन रहा है, जो भारत की तरफ जाता है।
मूल रूप से ये रिपोर्ट अंग्रेजी भाषा में ऋति सागर ने लिखी है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।