चीन के शहर तियानजिन में रविवार (31 अगस्त 2025) को हुए शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बढ़ती दोस्ती ने वैश्विक राजनीति में एक नया समीकरण खड़ा कर दिया है।

जहाँ एक ओर तीनों देशों के एक साथ आने से दुनिया नई संभावनाओं की ओर देख रही है तो वहीं, दूसरी तरफ ये साझेदारी अमेरिका के लिए कई स्तरों पर चुनौती के तौर पर सामने आ सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई नीतियों और रणनीतिक दृष्टिकोण को यह गठजोड़ असहज कर रहा है।

पीएम मोदी के साथ पुतिन और शी जिनपिंग की मुलाकात जियोपॉलिटिकल मसले के आधार पर कभी अहम मानी जा रही है। ट्रंप पहले से ही BRICS समूह के लिए खरी-खोटी सुना चुके हैं। अब SCO को लेकर भी उनकी बेचैनी साफ तौर पर देखा जा सकती है।

गौरतलब है कि ट्रंप ने अपनी धौंस और सत्ता की हनक दिखाने के लिए दुनियाभर में टैरिफ जंग छेड़ दी। अपनी मनमर्जी पर अलग-अलग देशों से अमेरिका में आयातित सामानों पर लगाए टैरिफ से हर देश किलस उठा। इसका नतीजा ये हुआ कि टैरिफ के कारण भारत, चीन और रूस के बीच नजदीकियाँ बढ़ गई। तीनों देश मिलकर अमेरिका की ‘टैरिफ धमकियों’ का जवाब देने की रणनीति बना रहे हैं।

भारत को घुटनों पर लाने की हर कोशिश रही नाकाम

ट्रंप ने पहले भारत-पाकिस्तान के बीच चले सैन्य संघर्ष में संघर्षविराम का श्रेय लेने की कोशिश की। इसे भारत की ओर से नकार दिया गया। उन्हें लगा था कि इसके जरिए वे नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामिक किए जा सकेंगे। लेकिन ये हुआ नहीं।

इसके बाद अमेरिका ने ट्रेड डील के तहत पहले भारत के कृषि और डेयरी समेत उन बाजारों में घुसने की कोशिश की जिसमें भारत का प्रभुत्व कहीं अधिक है। लेकिन भारत की ओर से इस पर मंजूरी नहीं मिल पाई और अमेरिका की खुद के मुनाफा कमाने की चाहत धरी की धरी रह गई।

इसके बाद ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत को उलाहना देना शुरू किया। इसके बाद ही भारत पर 25% टैरिफ लगाया और रूसी तेल की खरीद पर अपनी खीझ उतारने के लिए अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाकर इसे दोगुना कर दिया।

असल में तो भारत और चीन, दोनों ही रूस से बड़े पैमाने पर तेल खरीद रहे हैं। इसे अमेरिका यूक्रेन युद्ध को फंड करने के रूप में देखता है। हालाँकि इस पर अपना पक्ष भारत ने मजबूती से रखा है। साथ ही अमेरिका को भी रूस के साथ कर रहे व्यापार के लिए पलटवार किया।

SCO सम्मेलन में न केवल पीएम मोदी, जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन मिले हैं बल्कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस, ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियन, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी शामिल हैं। इस लिहाज से दुनिया को स्पष्ट संदेश मिला है कि चीन इस मंच को ग्लोबल साउथ की एकता के रूप में दिखाने की कोशिश में है।

BRICS असल में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका देशों का समूह है तो वहीं SCO शंघाई सहयोग संगठन है। हाल के वर्षों में ब्रिक्स एक बड़ा आर्थिक संगठन बनकर उभर रहा है, जिसकी अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन डॉलर (लगभग ₹1,763 लाख करोड़) से ज्यादा है।

अमेरिका को क्या है खतरा?

भारत, रूस और चीन जैसे बड़े राष्ट्र जब BRICS और SCO जैसे बड़े मंच पर साथ आते हैं तो यह अमेरिका की एकध्रुवीय ताकत को चुनौती देता है। असल में तीनों देशों का यह गठजोड़ एक नया पावर सेंटर बना सकता है जो पश्चिमी देशों पर अपना प्रभाव बढ़ा सकता है।

SCO जैसे मंचों पर इन देशों के बीच सैन्य अभ्यास और सुरक्षा सहयोग बढ़ रहा है, जिससे अमेरिका की एशिया में रणनीतिक पकड़ कमजोर हो सकती है।

दूसरी ओर देखा जाए तो BRICS देशों की ओर से एक वैकल्पिक वित्तीय ढाँचे को लेकर चर्चा की जा रही है। इसके तहत डॉलर के बजाय स्थानीय या साझा करेंसी का उपयोग हो सकता है। इससे अमेरिका की आर्थिक ताकत को सीधा झटका लग सकता है।

ट्रंप की क्यों बढ़ रही बेचैनी?

ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने भारत और चीन जैसे देशों को अमेरिका से दूर कर दिया है। साथ ही भारत और चीन के बीच की दूरियों को भी खत्म करने का में भूमिका निभाई है। अब जब ये देश रूस के साथ मिलकर एक मंच साझा कर रहे हैं तो यह अमेरिका के लिए कूटनीतिक सिरदर्द बन गया है।

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साफतौर पर कहा है कि उनके रिश्तों से ‘किसी तीसरे देश को टेंशन लेने की जरूरत नहीं’, ये ट्रंप के लिए एक सीधा और कड़ा संदेश था।

अमेरिका की कोशिश थी कि भारत को चीन के खिलाफ अपने खेमे में बनाए रखे, लेकिन अब भारत चीन और रूस के साथ सहयोग बढ़ाकर संतुलन की राजनीति अपना रहा है।

इस लिहाज से ये दोस्ती न केवल अमेरिका की विदेश नीति को चुनौती दे रही है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी एक नई परिभाषा देने की कोशिश कर रही है।

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