राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर कक्षा 6 से 12 तक के विद्यार्थियों के लिए दो अलग-अलग मॉड्यूल जारी किए हैं। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस हर वर्ष 14 अगस्त को मनाया जाता है।
NCERT एक स्वायत्त संस्था है जो शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है। यह राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा तैयार करती और किताबें प्रकाशित करती है। इन किताबों का उपयोग CBSE के कक्षा 1 से 12 तक के विद्यार्थियों द्वारा किया जाता है।
अब हाल ही में जारी किए गए NCERT के एक मॉड्यूल में यह बताया गया है कि भारत के बँटवारे के पीछे सबसे बड़ी ताकत राजनीतिक इस्लाम और उसकी विचारधारा थी। इसमें हिंदुओं पर हुए अत्याचार, मुस्लिम लीग की हिंसा, कॉन्ग्रेस पार्टी की जिम्मेदारी और यह बात भी शामिल की गई है कि पाकिस्तान के लिए वोट करने वाले ज्यादातर मुसलमान भारत में ही रह गए थे।
राजनीतिक इस्लाम और बंटवारा, पाक नहीं गए ज्यादातर मुस्लिम
मॉड्यूल में कहा गया कि मुस्लिमों के लिए अलग देश बनाया गया था फिर भी ज्यादातर मुस्लिम पाकिस्तान नहीं गए।
मॉड्यूल के पेज नंबर 4 पर लिखा गया है, “मुसलमानों के लिए एक पृथक देश बना दिया गया, फिर भी लगभग 3.5 करोड़ मुसलमान भारत में ही रह गए। पाकिस्तान की माँग और उस का निर्माण इसी आधार पर हुआ था कि यह समस्त भारतीय मुसलमानों का अलग देश होगा।”
मॉड्यूल में कहा गया है कि 1946 में हुए संविधान सभा के चुनावों में मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए आरक्षित 78 में से 73 सीटें जीत लीं। इस मुस्लिम लीग की मुख्य माँग पाकिस्तान थी।
मॉड्यूल में साफ तौर पर कहा गया है कि पाकिस्तान बनाने वाली संदेह, द्वेष और शत्रुता-भावना आज भी भारत में मौजूद है। इसमें बँटवारा और पाकिस्तान आंदोलन का मुख्य कारण राजनीतिक इस्लाम की विचारधारा को माना गया है।
इसमें पेज 6 पर लिखा है, “धर्म, संस्कृति, साहित्य, रीति-रिवाज, इतिहास, प्रेरणा-स्रोत और जीवन-दृष्टि के सभी आधारों पर मुस्लिम नेताओं ने अपने को हिन्दुओं से स्थाई रूप से भिन्न घोषित किया। इस की जड़ राजनीतिक इस्लाम की विचारधारा में थी, जो गैर-मुसलमानों के साथ किसी स्थायी या समान संबंध की संभावना को सिद्धांत रूप से ही नकारती है। यह सिद्धांत विश्व के विभिन्न हिस्सों में सदियों से लागू होता आया है, और आज भी अनेक देशों में देखा जा सकता है।”
इस मॉड्यूल में मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना के 22 मार्च 1940 के भाषण का भी जिक्र किया गया है। जिसमें जिन्ना ने मुस्लिमों के लिए अलग राष्ट्र की स्पष्ट माँग की थी।
जिन्ना ने कहा था, “हिंदू और मुसलमान दो भिन्न-भिन्न धार्मिक दर्शनों, सामाजिक रीति-रिवाजों, और साहित्य से जुड़े रहे हैं। वे न तो आपस में विवाह सम्बन्ध करते हैं, न ही साथ-साथ खाते-पीते हैं। वस्तुतः दोनों दो भिन्न सभ्यताओं से जुड़े हैं जिन के विचार और धारणाएं एक-दूसरे से विपरीत हैं।”
भारतीय नेताओं को विभाजन के भयावह परिणामों का अनुमान नहीं था। उन्होंने इस निर्णय के पहलुओं पर विचार नहीं किया था। इसमें विभाजन को जल्दबाजी में लिया गया फैसला बताया गया है।
मॉड्यूल में पेज 12 पर कहा गया है, “जिन कारणों से विभाजन स्वीकार किया गया था, वे आज भी बने हुए हैं। यह भी दिखाता है कि नेताओं ने उस मूल प्रश्न पर गंभीरता से विचार नहीं किया – मजहबी अलगाववाद की विचारधारा और किसी एक मजहब के लिए विशेष अधिकारों की माँग।”
NCERT ने बताया है कि भारतीय नेताओं ने हिंदू-मुस्लिम संबंधों की सच्चाइयों को नजरअंदाज कर सांप्रदायिकता का दोष भी ब्रिटिश शासकों पर डाल दिया।
इसमें पेज 11-12 पर लिखा है, “भारतीय नेताओं ने…अपने विमर्श को मुख्यतः ‘देशी बनाम विदेशी’ के रूप में सीमित रखा। भारत का वास्तविक इतिहास उपेक्षित किया गया। 1919 से, खलीफत-असहयोग आंदोलन से शुरू करके, राष्ट्रीय नेताओं ने हिन्दू-मुस्लिम संबंधों की ऐतिहासिक सच्चाइयों को लगातार नजरअंदाज किया। उन्होंने प्रत्येक समस्या, यहाँ तक कि सांप्रदायिकता का दोष भी, केवल ब्रिटिश शासकों पर डाल दिया। यह एक अतिशयोक्तिपूर्ण दोषारोपण था। यदि वे सच्चे इतिहास के आधार पर विचार कर निर्णय करते तो वे मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक राजनीति को प्रारंभ से ही रोक सकते थे।”
जिहादी आतंक फैलाता है पाकिस्तान, दूसरे देशों से मिलती है मदद
NCERT के मॉड्यूल में पाकिस्तानी की भारत में जिहादी आतंकवाद फैलाने की कोशिशों और ‘हजार घाव’ देने की नीति का भी जिक्र किया गया है।
मॉड्यूल में लिखा है, “पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने के लिए तीन युद्ध किए, और उस में बार-बार हारने पर अंदर-बाहर से ‘हजार घाव’ देने की नीति अपनाई। इस के अंतर्गत भारत में जिहादी आतंकवाद फैलाने की कोशिशें चलती रही है। इस के फलस्वरूप और इस से निपटने में अब तक हजारों भारतीय नागरिक और सैनिक मारे जा चुके हैं। यह सब भारत विभाजन के परिणाम हैं।”
साथ ही, इसमें पाकिस्तान को कई देशों से मिलने वाले हथियारों और भारत के खिलाफ पाकिस्तान का उपयोग किए जाने की भी बात की गई है।
पेज 5 पर मॉड्यूल में लिखा है, “कुछ महत्वपूर्ण देश पाकिस्तान का उपयोग भारत पर दबाव बनाने के लिए करते रहते हैं। कई देश आज भी पाकिस्तान को सैन्य और रणनीतिक समर्थन देते रहते हैं। परिणामस्वरूप, भारत को अपने रक्षा व्यय पर लगातार भारी खर्च करना पड़ता रहा है।”
विभाजन के लिए कॉन्ग्रेस भी जिम्मेदार: NCERT
मॉड्यूल में NCERT ने विभाजन के लिए लॉर्ड माउंटबेटन और जिन्ना के साथ-साथ कॉन्ग्रेस को भी जिम्मेदार बताया है।
इसमें कहा गया है, “ऐतिहासिक दृष्टि से भारत विभाजन के लिए तीन तत्व जिम्मेदार थे। जिन्ना, जिन्होंने इस की माँग की। दूसरे, कॉन्ग्रेन जिस ने इसे स्वीकार किया। तीसरे, माउंटबेटन जिन्होंने इसे औपचारिक रूप देकर कार्यान्वित किया।”
इसमें बताया गया है कि ब्रिटिश सरकार ने अंत तक भारत को एक बनाए रखने की कोशिश की थी और वायसराय लिनलिथगो और वायसराय वावेल दोनों विभाजन के खिलाफ थे। लॉर्ड वावेल ने 1940 से लेकर मार्च 1947 तक बार-बार कहा था कि विभाजन से हिन्दू-मुस्लिम समस्या का समाधान नहीं होगा।
पेज 9 पर मॉड्यूल में लिखा गया है, “यह जल्दबाजी और करोड़ों लोगों के भविष्य, जीवन व सुरक्षा का ऐसे फैसला करना एक गंभीर राजनीतिक लापरवाही थी। जो भी लोग सत्ता-हस्तांतरण की तिथि घटाकर निकट कर लेने पर सहमत हुए, वे सभी इस के उत्तरदायी थे।”
मॉड्यूल में कहा गया है कि ब्रिटिश सरकार हमेशा विभाजन के खिलाफ थी और कॉन्ग्रेस नेताओं ने जिन्ना को कम आँका था।
इसमें कहा गया है, “1947 में पहली बार भारतीय नेताओं ने ही देश का एक विशाल भाग कई करोड़ नागरिकों सहित स्वेच्छा से स्थायी रूप से राष्ट्रीय सीमा के बाहर कर दिया। वह भी बिना उन करोडों नागरिकों की सहमति के। यह मानव इतिहास में एक अद्वितीय दुर्घटना थी, जब किसी देश के नेताओं ने बिना युद्ध के, शांतिपूर्वक और बंद कमरों में अचानक करोड़ो लोगों को अपने ही देश से काट दिया!”
विभाजन के दौर में कैसे हुआ हिंदुओं का उत्पीड़न?
मॉड्यूल में पेज 3-4 पर विभाजन से हुईं हानि को लेकर लिखा गया है, “साम्प्रदायिक हिंसा में लाखों लोगों की जा गई और करोड़ों विस्थापित हुए। बहुत-से परिवारों को अपने प्राण सम्मान या संपत्ति बचाने के लिए जबरन इस्लाम कबूल करना पड़ा।”
बँटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर की सामाजिक संरचना में परिवर्तन और कश्मीरी पंडितों की खराब होती गई स्थितियों का भी इस मॉड्यूल में जिक्र किया गया है। इसमें लिखा है, “कश्मीरी पंडितों की स्थिति दयनीय होती गई। आगे आने वाले दशकों में यह स्थिति और अधिक बिगड़ी जब वहाँ आंतरिक और बाहरी आतंकवाद ने अपना दबदबा बनाया।”
NCERT ने बताया कि कैसे जिन्ना ने अपनी माँग मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लिया था और 16 अगस्त 1946 को ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ की घोषणा की थी।
मॉड्यूल में लिखा है, “इस ‘डायरेक्ट एक्शन’ के मात्र दो-तीन दिनों में कलकत्ता में लगभग 6000 लोग मारे गए। यह हिंसा मुस्लिम लीग और उस के स्थानीय शासन द्वारा आयोजित थी, जिस के मुख्यमंत्री हुसैन सुहरावर्दी थे।”
मुस्लिम लीग को वोट देने के बाद भी भारत में बड़ी संख्या में रह गए मुस्लिम
1946 के प्रांतीय चुनावों में मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर मुस्लिम लीग को वोट दिया। मुस्लिम लीग ने उस समय मजहब के आधार पर लोगों की भावनाएँ भड़काते हुए यह माँग उठाई थी कि मुस्लिमों के लिए अलग इस्लामिक देश बने।
मुस्लिम लीग का कहना था कि हिंदू और मुस्लिम एक ही देश में साथ नहीं रह सकते है। मुसलमानों के लिए भारत से अलग एक देश बनना चाहिए।
1946 के चुनावों में पूरे भारत में मुस्लिम लीग ने लगभग 87% सीटें जीतीं। अगर 1937 और 1946 के चुनावों की तुलना करें तो साफ दिखाई देता है कि 1946 में जिन्ना की मुस्लिम लीग द्वारा जीते गए प्रांतों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई थी।
बिहार में 1937 में मुस्लिम लीग को एक भी सीट नहीं मिली थी लेकिन 1946 में 40 में से 34 सीटें जीत गई।मद्रास में 1937 में 9 सीटें मिली थीं लेकिन 1946 में सभी 29 सीटें जीत लीं।
यह पैटर्न उस समय सभी प्रांतों में दिखाई दिया। हमें याद रखना चाहिए कि द्वि-राष्ट्र सिद्धांत स्वयं बहुत लंबे समय तक अस्तित्व में रहा फिर भी मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की औपचारिक राजनीतिक माँग 1940 में की गई।
असल में 1940 में जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में साफ-साफ पाकिस्तान की मांग रखी थी। जिन्ना ने पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, उत्तर-पश्चिमी प्रांत और बंगाल जैसे इलाकों को मिलाकर मुसलमानों के लिए एक स्वतंत्र और संप्रभु देश बनाने का लक्ष्य रखा था।
इसे ही लाहौर प्रस्ताव कहा गया जिसे बंगाल के मुख्यमंत्री ए.के. फजलुल हक ने पेश किया था और 23 मार्च 1940 को यह पास हो गया था। प्रस्ताव में गैर-मुस्लिम धर्मों के संरक्षण की भी गारंटी दी गई थी। यही पाकिस्तान के पहले संविधान की नींव बना था।

1940 में पाकिस्तान की माँग औपचारिक रूप से सामने आने के बाद मुस्लिम लीग को मुसलमानों का जबरदस्त समर्थन मिलने लगा। यह सीधे तौर पर अलग इस्लामी राष्ट्र पाकिस्तान की माँग को बढ़ावा था।
फिर भी यह हैरानी की बात है कि कुछ लोग आज यह तर्क देते हैं कि ज्यादातर मुसलमान भारत में अपनी इच्छा से ही रहे और उस समय वे अलग इस्लामी देश नहीं चाहते थे।
यह सच है कि उस समय कई मुसलमान भी पाकिस्तान की माँग के खिलाफ थे लेकिन राजनीतिक बयान और असल में वोट डालने के समय लिए गए फैसले, दोनों बहुत अलग बातें होती हैं।
अगर मुसलमान सचमुच पाकिस्तान चाहते थे और भारी संख्या में उसके पक्ष में वोट भी दिया था तो फिर इतने बड़े पैमाने पर मुसलमान भारत में क्यों रह गए?
पाकिस्तान के निर्माण के लिए मिले भारी समर्थन का मुकाबला करने के लिए बिना किसी ठोस तथ्य के यह दिया जाता है कि अगर ज्यादातर मुसलमानों ने दो-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया था, तो फिर वे भारत में क्यों ठहरे? और अगर वे ठहर गए तो इसका मतलब है कि उन्होंने दो-राष्ट्र सिद्धांत को ठुकरा दिया।
दरअसल, विभाजन के बाद कई नेता पूरी आबादी के आदान-प्रदान के पक्ष में थे। इनमें डॉ. भीमराव अंबेडकर भी शामिल थे।
विभाजन पर अपनी किताब में अंबेडकर ने साफ लिखा था कि वे क्यों पूरी तरह से जनसंख्या के आदान-प्रदान के पक्ष में हैं। इसका मतलब था कि पाकिस्तान में रहने वाले सभी हिंदू और अन्य धर्मों के लोग भारत आ जाएँ और भारत के सभी मुसलमान पाकिस्तान चले जाएँ। उन्होंने तो जनसंख्या से जुड़ी समस्याओं को सुलझाने के लिए एक खाका भी तैयार किया था।
यहाँ तक कि सरदार पटेल ने भी विभाजन के बाद भी इस बारे में विस्तार से बात की थी कि कैसे मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाने में मदद की थी। 1948 में कोलकाता में एक भाषण में कहा था, “ज्यादातर मुसलमान जिन्होंने हिंदुस्तान में रहना चुना वे पाकिस्तान बनाने में मददगार रहे। अब मुझे समझ नहीं आता कि एक रात में ऐसा क्या बदल गया कि वे हमसे अपनी वफादारी पर शक ना करने की उम्मीद कर रहे हैं।
इसी तरह, कई बड़े नेताओं ने उस समय पूरी आबादी की अदला-बदली की माँग का समर्थन किया था।
Sunday Guardian की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और राजकुमारी अमृत कौर, गाँधी से मिलने गए थे ताकि वे जिन्ना के प्रस्ताव (आबादी की अदला-बदली) पर सहमत हों। उन्होंने (गाँधी) साफ कह दिया कि विभाजन तो क्षेत्रीय आधार पर हुआ है, धार्मिक आधार पर नहीं। इसलिए हिंदुओं और मुसलमानों के आदान-प्रदान का सवाल ही नहीं उठता। जबकि सच्चाई यही थी कि विभाजन पूरी तरह हिंदू और मुसलमान के आधार पर हुआ था।”