महाराष्ट्र के नागपुर में शनिवार (23 अगस्त 2025) को एक पुरानी परंपरा निभाते हुए ‘मारबत उत्सव’ मनाया गया। हर साल भाद्रपद महीने में मनाया जाने वाला मारबत उत्सव एक पुरानी और अनोखी सांस्कृतिक परंपरा है।
यह त्योहार अपने रंग-बिरंगे जुलूसों और समाज को बुराई के खिलाफ देने वाले संदेशों के लिए जाना जाता है। इस दिन हजारों लोग नागपुर की सड़कों पर इकट्ठा होते हैं। यह त्योहार सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि समाज कुरीतियों को आईना दिखाने का एक अनोखा तरीका भी है।
#WATCH | Maharashtra: Nagpur witnessed the centuries-old Marbat festival, a unique cultural tradition celebrated every year during the month of Bhadrapada. Known for its vibrant processions and sharp social messages, the festival draws thousands of citizens onto the streets of… pic.twitter.com/VUuXK8erjn
— ANI (@ANI) August 23, 2025
नागपुर का सुप्रसिद्ध ‘मारबत उत्सव’
नागपुर, जिसे ‘ऑरेंज सिटी’ कहा जाता है, अपनी सांस्कृतिक परंपराओं के लिए भी मशहूर है। इन्हीं परंपराओं में से एक है मारबत उत्सव। रिपोर्ट के अनुसार, इसकी शुरुआत 1881-85 के बीच हुई थी। हर साल गोकुल अष्टमी पर इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
इस दिन पीली मारबत और काली मारबत तैयार की जाती हैं, काली मारबत को बुराई और बीमारियों का प्रतीक माना जाता है। वहीं पीली मारबत को लोगों की रक्षा करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। परंपरा है कि इनका जुलूस शहरभर में घुमाया जाता है और फिर बाहर ले जाकर दहन किया जाता है, जिससे बुराइयाँ और बीमारियाँ दूर हो जाती हैं।
मारबत का इतिहास भी दिलचस्प है। कहा जाता है कि पीली मारबत का निर्माण 1885 से शुरू हुआ। उस समय शहर में बीमारियाँ फैली थीं। लोगों का विश्वास था कि इसे बनाने और जलाने से रोगों से मुक्ति मिलती है। वहीं, काली मारबत की परंपरा 1881 से चली आ रही है।
इस उत्सव में बड़ग्या (कचरे से बनाए पुतले) भी शामिल किए जाते हैं। पहले बच्चे इन्हें कागज और घर के कचरे से बनाते थे, बाद में यह परंपरा बड़ों ने भी अपनाई। बड़ग्या और मारबत दोनों को ही बुराई का प्रतीक माना जाता है।
आज भी नागपुर के कई कारीगर पीढ़ी दर पीढ़ी मारबत का निर्माण करते हैं। जुलूस के दौरान लोग ढोल-नगाड़ों और गानों की धुन पर नाचते-गाते हैं। लगभग 149 वर्षों से चल रहा यह उत्सव नागपुर की खास पहचान बन चुका है और इसे बुरी ताकतों को दूर भगाने तथा समाज को एकजुट करने वाला पर्व माना जाता है।
उत्सव मनाने का धार्मिक कारण
एक अन्य मान्यता के अनुसार, श्रीकृष्ण को दूध पिलाने गयी पूतना राक्षसी का वध होने के बाद गोकुल निवासियों ने घर के सभी कचरों को लेकर एक जुलूस निकाला था और उसे गाँव के बाहर ले जाकर दहन किया था। इसी परंपरा को निभाते हुए यह उत्सव तभी से मनाया जा रहा है।
रानी बाकाबाई और उत्सव के बीच संबंध
जानकारी के मुताबिक, बताया जाता है कि 1881 में नागपुर के भोसले राजघराने की बकाबाई नामक महिला ने विद्रोह कर अँग्रेजों से मिल गई थी। इसके बाद भोसले घराने को काफी कुछ झेलना पड़ा था। इसी बात के विरोध में उसी समय से काली मारबत का जुलूस निकालने की परंपरा चली आ रही है।