हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो ने भारत के ख़िलाफ कई तीखे बयान दिए हैं। उन्होंने भारत की व्यापार नीतियों पर निशाना साधते हुए उसे ‘टैरिफ का महाराजा’ बताया और रूस से तेल ख़रीदने को लेकर भी आलोचना की। पीटर नवारो ने आरोप लगाया कि रूसी तेल से ‘ब्राह्मण’ मुनाफ़ा कमा रहे हैं। वहीं, इस बात का समर्थन कॉन्ग्रेस के नेता उदित राज ने किया है।
कॉन्ग्रेस नेता उदित राज का बयान
जहाँ एक तरफ भारत में पीटर नवारो के बयान की चौतरफा निंदा हो रही थी, वहीं कॉन्ग्रेस के नेता उदित राज ने उनके बयान का समर्थन किया। उदित राज ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में नवारो की बात को ‘तथ्यात्मक रूप से सही’ बताया। उदित राज ने कहा कि भारत में ऊँची जाति के कारोबारी ही रूस से तेल खरीदकर फ़ायदा कमा रहे हैं और आम भारतीयों को इससे कोई लाभ नहीं हो रहा है। उन्होंने यह भी दावा किया कि पिछड़ी जातियों और दलितों को कॉर्पोरेट जगत में स्थापित होने में 100 साल लग जाएँगे।
मैं @RealPNavarro से पूरी तरह सहमत हूँ। ज्ञात रहे कि पीटर नवरो ट्रम्प के सलाहकार हैं । उन्होंने ने कहा रूस से ब्राह्मण सस्ता तेल ख़रीद कर मुनाफा कमा रहें है और इसका फ़ायदा आम जानता को नहीं मिल रहा है । दरअसल, निजी भारतीय तेल शोधक ऊँची जातियों से हैं और तथाकथित निचली जातियों को…
— Dr. Udit Raj (@Dr_Uditraj) September 1, 2025
पीटर नवारो का बयान या तो अज्ञानता से भरा था या फिर जानबूझकर भारत के सामाजिक ढाँचे पर हमला करने की रणनीति का हिस्सा था। लेकिन उदित राज ने उस बयान से सहमत होकर एक तरह से गलती से सच बोल दिया। उदित राज को ‘बोस्टन ब्राह्मण’ शब्द का अर्थ जरूर पता होगा। वो इतने बेवकूफ़ नहीं, जितने लगते हैं। सच ये है कि कॉन्ग्रेस और अमेरिका अब एक जैसी भाषा बोल रहे हैं।
‘बोस्टन ब्राह्मण’ का संदर्भ और भारतीय संदर्भ में भ्रम
पीटर नवारो के बयान की तह तक जाएँ तो, उन्होंने संभवत अमेरिकी राजनीतिक संदर्भ में इस्तेमाल होने वाले शब्द ‘बोस्टन ब्राह्मण‘ का गलत इस्तेमाल किया है। अमेरिका में यह शब्द एक अभिजात वर्ग के लिए इस्तेमाल होता है, जो अपनी सामाजिक और आर्थिक हैसियत के कारण राजनीति और व्यापार में प्रभावी माने जाते हैं।
कुछ लोग इसी अभिजात्य, शक्तिशाली, पढ़े-लिखे और खुद को बहुत हद तक बाहरियों से दूरी बनाकर चलने वाले वर्ग पर खीझ उतारने और फब्तियाँ कसने के लिए ‘बोस्टन ब्राह्मण’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में ट्रंप के साथी का भी रेफरेंस यही था। कॉन्ग्रेसियों ने भी भारतीय कंपनियों को इसी टर्म की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश की है, क्योंकि दोनों की मानसिकता एक जैसी है।
इसका किसी जाति विशेष से कोई लेना-देना नहीं है। पीटर नवारो ने इस शब्द का इस्तेमाल कर भारत की सामाजिक संरचना को बिना समझे, राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश की।