केंद्र सरकार ने नेताओं के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई के लिए संसद में 130वां संविधान संशोधन बिल पेश किया है। इस बिल के तहत अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या किसी मंत्री पर 5 वर्ष या उससे अधिक सजा वाली धाराओं में मुकदमा दर्ज होता है तो 30 दिन जेल में रहने के बाद उनका पद चला जाएगा। फिलहाल, यह बिल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेज दिया गया है।

इस बिल के प्रावधानों के खिलाफ लगातार विपक्ष विरोध प्रदर्शन कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार (22 अगस्त 2025) को बिहार के गयाजी में कहा कि सरकारी कर्मचारी 50 घंटों तक हिरासत में रहे तो वह सस्पेंड हो जाता है लेकिन PM और CM जेल से भी सत्ता का सुख भोगते रहते हैं।

पीएम मोदी ने क्या कहा?

पीएम मोदी ने कहा, “मेरा साफ मानना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अगर अंजाम तक पहुँचाना है तो कोई भी कार्रवाई के दायरे से बाहर नहीं होना चाहिए। आज कानून है कि अगर किसी छोटे सरकारी कर्मचारी को 50 घंटे तक हिरासत में रखा जाए तो वह अपने-आप सस्पेंड हो जाता है, ड्राइवर हो, क्लर्क हो, चपरासी हो उनकी जिंदगी तबाह हो जाती है। अगर कोई मुख्यमंत्री है, मंत्री है या प्रधानमंत्री है, तो वह जेल में रहकर भी सत्ता का सुख पा सकता है।”

उन्होंने कहा, “हमने कुछ समय पहले ही देखा है कि कैसे जेल से ही फाइलों पर साइन किए जा रहे थे, जेल से ही सरकारी आदेश निकाले जा रहे थे। नेताओं का अगर यही रवैया रहेगा, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई कैसे लड़ी जा सकती है? संविधान हर जनप्रतिनिधि से ईमानदारी और पारदर्शिता की उम्मीद करता है।”

केंद्रीय कर्मियों के निलंबन के लिए नियम

भारत में केंद्रीय कर्मियों के वर्गीकरण, उन पर नियंत्रण और कदाचार के मामले में कार्रवाई के लिए दिशानिर्देश ‘केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965’ में दिए गए हैं। ये नियम 1 दिसंबर 1965 से लागू किए थे। इसके भाग 4 में केंद्रीय कर्मियों के निलंबन के नियम दिए गए हैं।

इसमें नियम 10 के उपनियम 2 के खंड (क) में कहा गया है, “किसी सरकारी कर्मचारी को नियुक्ति करने वाली प्राधिकरण (appointing authority) के आदेश से निलंबित माना जाएगा अगर वह किसी आपराधिक आरोप या अन्य वजह से 48 घंटे से अधिक की अवधि के लिए कस्टडी में रखा जाता है। यह निलंबन उसके हिरासत में लिए जाने की तारीख से ही प्रभवी माना जाता है।”E

वहीं, उपनियम 2 के खंड (ख) में कहा गया है, “अदालत अगर किसी कर्मी को किसी अपराध में दोषी ठहराकर 48 घंटे से ज्यादा की कैद की सजा सुनाती है। ऐसे में अगर उसे तुरंत नौकरी से बर्खास्त, हटाया या अनिवार्य सेवानिवृत्त नहीं किया गया हो तो दोषसिद्धि की तारीख से उसे निलंबित माना जाता है।”

इसमें खंड (ख) को लेकर स्पष्टीकरण दिया गया है, “इसमें दिए गए 48 घंटों को सजा शुरू होने के समय से गिना जाएगा। अगर सजा बीच-बीच में रुक-रुक कर (जैसे अलग-अलग बार जेल जाना पड़े) पूरी की गई हो, तो उन सब अवधियों को जोड़कर देखा जाएगा।”

केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 का भाग

इन नियमों में गृह मंत्रालय द्वारा 25 फरवरी 1955 को जारी एक पत्र भी शामिल किया गया है। इस पत्र में कहा गया है, “यह उस सरकारी सेवक की ड्यूटी होगी जिसे किसी कारण से गिरफ्तार किया गया है कि वह अपनी गिरफ्तारी से संबंधित तथ्यों और परिस्थितियों को अपने सरकारी वरिष्ठ अधिकारी को तत्काल सूचित करे चाहे उसे बाद में जमानत पर रिहा ही क्यों न कर दिया गया हो।”

इसमें आगे कहा गया है, “संबंधित व्यक्ति या किसी अन्य स्रोत से सूचना मिलने पर विभागीय प्राधिकारी इस बात का निर्णय लेंगे कि क्या उस व्यक्ति की गिरफ्तारी से संबंधित तथ्य और परिस्थितियों के कारण उसे निलंबित करने की आवश्यकता है कि नहीं?”

IAS, IPS और IFS अधिकारियों का निलंबन

अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों के निलंबन किए जाने की शर्तें अखिल भारतीय सेवाएँ (अनुशासन एवं अपील) नियम, 1969 में दी गई हैं। ये नियम IAS, IPS और IFS अधिकारियों पर लागू होते हैं।

इसके भाग 2 के नियम 3 में निलंबन संबंधी शर्तें हैं और इसके उपनियम 2 में कहा गया है, “इन सर्विसेज का कोई कर्मी अगर किसी आपराधिक आरोप के कारण या किसी अन्य वजह से 48 घंटे से अधिक अवधि के लिए आधिकारिक हिरासत में रखा जाता है तो इस नियम के अंतर्गत संबंधित सरकार द्वारा निलंबित माना जाएगा।”

वहीं, इसके उपनियम 4 में कहा गया है, “अदालत अगर किसी कर्मी को किसी अपराध में दोषी ठहराकर 48 घंटे से ज्यादा की कैद की सजा सुनाती है। ऐसे में अगर उसे तुरंत नौकरी से बर्खास्त, हटाया या अनिवार्य सेवानिवृत्त नहीं किया गया हो तो दोषसिद्धि की तारीख से उसे निलंबित माना जाता है।”

अखिल भारतीय सेवाएँ (अनुशासन एवं अपील) नियम, 1969 का भाग

निलंबन का रिव्यू

इन सेवा शर्तों में अधिकारियों के निलंबन को रिव्यू किए जाने को लेकर भी नियम दिए गए हैं। अखिल भारतीय सेवाएँ (अनुशासन एवं अपील) नियम में कहा गया है कि प्रत्येक मामले में निलंबन आदेश की तिथि से 90 दिनों के भीतर समीक्षा की जाएगी। इसमें कहा गया है कि जिन मामलों में निलंबन की अवधि बढ़ा दी जाती है तो उनमें रिव्यू विस्तार की अंतिम तारीख से 180 दिनों के भीतर किया जाएगा।

वहीं, केंद्रीय सिविल सेवा नियम में कहा गया है, “अगर किसी को निलंबित किया गया है, तो वह आदेश सिर्फ 90 दिन तक ही मान्य रहेगा। अगर इसे 90 दिन के बाद भी जारी रखना है, तो 90 दिन पूरे होने से पहले समीक्षा करके ही इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।”

इसमें आगे कहा गया है, “किसी कर्मचारी को निलंबित करने के आदेश दिए जाने के बाद, 90 दिन पूरे होने से पहले उस अधिकारी को उसकी समीक्षा करनी होगा, जिसके पास निलंबन को बदलने या खत्म करने की शक्ति है। यह समीक्षा एक रिव्यू कमेटी की सिफारिश पर होगी। इस समीक्षा के बाद अधिकारी को तय करना होगा कि निलंबन को जारी रखना है या खत्म करना है। निलंबन को एक बार में 180 दिनों से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता।”

निलंबित कर्मी को कितना मिलता है निर्वाह भत्ता?

निलंबन की अवधि के दौरान सरकारी कर्मचारी को जीविका चलाने हेतु निर्वाह भत्ता (Subsistence Allowance) दिया जाता है। निलंबन के पहले 90 दिनों तक कर्मचारी को उसके आखिरी वेतन का 50% जीविका भत्ते के रूप में दिया जाता है। यदि विभागीय कार्रवाई में देरी कर्मचारी की गलती से नहीं होती है, तो यह भत्ता बढ़ाकर 75% तक किया जा सकता है लेकिन यदि देरी कर्मचारी की वजह से होती है, तो यह घटाकर 25% कर दिया जाता है।

इस भत्ते में मकान किराया भत्ता (HRA), महंगाई भत्ता (DA) या अन्य कोई विशेष भत्ता शामिल नहीं होता। साथ ही, यह भत्ता कर्मचारी के मूल वेतन से अधिक नहीं हो सकता है।



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