जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को निलंबित कर दिया है। समझौते को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 15 अगस्त के अपने भाषण में लाल किले से कहा था कि यह समझौता अन्यायपूर्ण है।
अब इस समझौते को लेकर सामने आई जानकारी से पता चला है कि यह समझौता संसद की बिना अनुमति के लागू हो गया था और मुहर लगने के 2 महीने बाद इस पर सिर्फ 2 घंटे की चर्चा हुई थी। वहीं, जब यह मुद्दा संसद में उठा था तो ज्यादातर सांसदों ने इस समझौते की आलोचना की थी लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया।
बिना संसद की अनुमित की सिंधु जल समझौते पर लगी मुहर
न्यूज18 की रिपोर्ट के मुताबिक, यह संधि संसद या विपक्षी नेताओं को विश्वास में लिए बिना ही साइन कर दी गई थी। जब तक इस पर संसद में चर्चा होती तब तक इस पर मुहर लग गई थी।
30 नवंबर 1960 को लोकसभा में सिंधु जल संधि पर छोटी लेकिन तीखी चर्चा हुई थी। इस चर्चा में नेहरू सरकार और विपक्षी सांसदों के बीच खाई नजर आई थी। इस संधि के विरोध में विपक्षी विभिन्न दलों के सांसदों समेत कई कॉन्ग्रेसी सांसद भी थे और उनका मानना था कि भारत ने पाकिस्तान को बहुत रियायत दी है।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी इससे जुड़ी जानकारी X पर कई पोस्ट के जरिए साझा की है। नड्डा ने लिखा है, “जब नेहरू ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे, तो उन्होंने एकतरफा तौर पर सिंधु बेसिन का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को सौंप दिया था, जिससे भारत के पास केवल 20 प्रतिशत हिस्सा रह गया था।”
उन्होंने लिखा कि इस संधि पर सितंबर 1960 में हस्ताक्षर किए गए थे लेकिन इसके सांसद में सिर्फ 2 घंटे की चर्चा के लिए नवंबर में रखा गया था।
The Indus Water Treaty, 1960, was one of the biggest blunders of former PM Jawaharlal Nehru that kept national interest at the altar of personal ambitions.
The nation must know that when former Pandit Nehru signed the Indus Waters Treaty with Pakistan, he unilaterally handed…— Jagat Prakash Nadda (@JPNadda) August 18, 2025
कॉन्ग्रेस नेता ने बताया था ‘दूसरा विभाजन’
कॉन्ग्रेस के अशोक मेहता ने इस संधि की कड़ी आलोचना की और इसे देश के लिए ‘दूसरे विभाजन’ जैसा बताया था। नड्डा द्वारा शेयर किए गए डॉक्यूमेंट्स के मुताबिक, अशोक मेहता ने कहा, “यह एक तरह का दूसरा विभाजन है जिसका हम सामना कर रहे हैं। यह उन सभी जख्मों को फिर से हरे करने जैसा है जिनके भरने की हमें उम्मीद थी। यह हमारे प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर से फिर से हो रहा है।”
एक और कॉन्ग्रेस सांसद हरीश चंद्र माथुर ने इसे भारत के नुकसान का समझौता था। उन्होंने कहा था, “अपने लोगों की कीमत पर अधिक उदारता दिखाना कूटनीति नहीं है। इस संधि में राजस्थान के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है।” उनका कहना था, “भारत 1948 से पीछे हटता गया और पाकिस्तान दबाव डालता रहा।”
उनका कहना था कि अगर पाकिस्तान को पानी की गारंटी मिल गई थी तो कश्मीर समस्या का समाधान हो जाना चाहिए थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने चेतावनी दी थी कि राजस्थान को हर साल 70-80 करोड़ रुपए का नुकसान होगा।
वाजपेयी ने की थी नेहरू की कड़ी आलोचना
तब एक युवा सांसद और बाद में प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने इस संधि को लेकर नेहरू सरकार की कड़ी आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि सरकार घोषणा कर चुकी थी कि 1962 तक पाकिस्तान का पानी रोका जाएगा फिर अब स्थाई अधिकार क्यों दिए जा रहे हैं।
वाजपेयी ने चेतावनी दी थी कि पाकिस्तान की अनुचित माँगों के आगे झुकने से मित्रता स्थापित होने का नेहरू का तर्क गलत है। उनका कहना था, “यह दोस्ती का तरीका नहीं है। दोस्ती केवल न्याय पर आधारित हो सकती है, तुष्टिकरण पर नहीं।”
संधि पर क्या बोले थे नेहरू?
अंत में नेहरू ने बोलना शुरू किया था और उनकी आवाज में थकान और उदासी थी। उन्होंने कहा कि यह भारत के लिए एक ‘अच्छी संधि’ है। जो लोग इसे ‘दूसरा बँटवारा’ कह रहे थे, उन्हें झिड़कते हुए नेहरू ने पूछा, “भला, एक बाल्टी पानी का बँटवारा कैसा बँटवारा हुआ?”
नेहरू ने स्पष्ट किया कि अंतरराष्ट्रीय संधियों पर हर कदम पर संसद की अनुमति लेना व्यावहारिक नहीं होता। उन्होंने यह भी माना कि पाकिस्तान ने शुरुआत में 300 करोड़ रुपए की मांग की थी लेकिन भारत ने मात्र 83 करोड़ रुपए में समझौता कर लिया। उन्होंने कहा था, “हमने शांति खरीदी है।”
साथ ही, उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यह संधि न होती, तो पश्चिम पंजाब उजाड़ हो जाता और पूरा उपमहाद्वीप अस्थिरता की चपेट में आ जाता।
नेहरू के उत्तर के बाद भी सांसद पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुए। बहस का समापन बिना किसी वोट के ही हो गया क्योंकि संधि पहले ही पक्की हो चुकी थी। हालाँकि, इस चर्चा ने साफ कर दिया था कि असहमति केवल विपक्ष तक सीमित नहीं थी बल्कि सत्ता पक्ष के कई सांसद भी नेहरू के रुख से सहमत नहीं थे।
19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी प्रणाली के जल के उपयोग के संबंध में भारत और पाकिस्तान के बीच संधि हुई थी। जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि में सिंधु, झेलम और चेनाब को पश्चिमी नदियाँ बताया गया जिनका पानी पाकिस्तान के लिए तय किया गया था। जबकि रावी, व्यास और सतलुज को पूर्वी नदियाँ बताते हुए इनका पानी भारत के लिए तय किया गया था।
संधि के बाद पानी का करीब 80% हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया था जबकि 20% भारत के पास बचा रहा था। पहलगाम आतंकी हमले के बाद नरेंद्र मोदी ने इस संधि को निलंबित कर दिया था जिसके बाद पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है।