NDA के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन के नाम पर BJP ने आम सहमति बनाने की शुरुआत कर दी है। BJP की कोशिश है कि उपराष्ट्रपति के चुनाव की नौबत ना आए और सर्वसम्मति से ही राधाकृष्णन को अगला उपराष्ट्रपति चुन लिया जाए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसके लिए कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से बातचीत की है।

BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि BJP उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्विरोध चुनाव सुनिश्चित करने के लिए विपक्ष से बात करेगी। BJP सभी विपक्षी दलों का समर्थन जुटाने की कोशिश में पूरी तरह से जुटी हुई है। हालाँकि, कॉन्ग्रेस ने इस पर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

चुनाव आयोग द्वारा जारी शेड्यूल के मुताबिक, 21 अगस्त 2025 उपराष्ट्रपति के उम्मीदवारों द्वारा नामांकन दाखिल किए जाने की आखिरी तारीख है। ऐसे में अगर आम सहमति नहीं बनती है तो विपक्षी गठबंधन INDI को अगले 1-2 दिन में ही अपने उम्मदीवार के नाम का ऐलान करना होगा। 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव कराया जाना है।

बीजेपी ने अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर विपक्ष का सिर दर्द बढ़ा दिया है। मूल रूप से तमिलनाडु से आने वाले और वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन का नाम बीजेपी द्वारा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और बीजेपी लगातार दक्षिण भारत में विस्तार की कोशिश में लगी है। ऐसे में राधाकृष्णन का नाम बीजेपी की सोची समझी चाल के तौर पर देखा जा रहा है। इसकी एक नहीं बल्कि कई वजहें हैं।

स्टालिन की बढ़ेगी दुविधा

राधाकृष्णन की उम्मीदवारी के बाद सबसे अधिक दुविधा में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और DMK के प्रमुख एमके स्टालिन हैं। स्टालिन अब तक केंद्र के फैसलों का तमिल अस्मिता के नाम पर विरोध करते रहे हैं। अब अगर INDI गठबंधन अपने उम्मीदवार का ऐलान करता है और वो तमिलनाडु से नहीं होता है तो तमिल अस्मिता का प्रश्न फिर स्टालिन को ही घेरेगा।

अगर स्टालिन इस निर्णय पर NDA के साथ खड़े हो जाते हैं तो यह INDI गठबंधन में टूट का स्पष्ट संकेत होगा। स्टालिन ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन उनकी पार्टी ने अपना नरम रुख दिखाना शुरू कर दिया है।

DMK के प्रवक्ता टीकेएस इलानगोवन ने राधाकृष्णन की उम्मीदवारी को अच्छा कदम बताया है। उन्होंने एक चैनल से बातचीत में कहा, “यह एक स्वागत योग्य कदम है। राधाकृष्णन तमिल हैं और लंबे समय के बाद कोई तमिल व्यक्ति भारत का उपराष्ट्रपति बन सकता है।” हालाँकि, उन्होंने राधाकृष्णन के समर्थन की बात नहीं कही है लेकिन दबी जबान ही सही DMK का असमंजस साफ नजर आने लगा है।

राधाकृष्णन ने तमिलनाडु में लंबे वक्त तक राजनीति की है। वे दो बार के सांसद रहे हैं और तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष भी रहे हैं। ऐसे में उनके स्टालिन परिवार से संबंध भी बहुत पुराने हैं। करीब एक हफ्ते पहले (11 अगस्त 2025) ही स्टालिन से मिलने के लिए राधाकृष्णन चेन्नई पहुँचे थे।

यह मुलाकात स्टालिन का उद्देश्य स्टालिन के स्वास्थ्य का हाल-चाल लेना था लेकिन इस दौरान दोनों के बीच गर्मजोशी साफ दिखाई दी थी। अब राधाकृष्णन का विरोध करना स्टालिन के सामने एक बड़ी चुनौती है। अगर वो विरोध करते हैं तो तमिल अस्मिता का प्रश्न उठेगा और अगर समर्थन में आते हैं तो INDI गठबंधन की टूट साफ दिखाई देगी।

चेन्नई में स्टालिन से मिले थे राधाकृष्णन

शिवसेना (UBT) भी देगी INDI को दगा?

राधाकृष्णन महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। वहाँ के सभी राजनीतिक दलों से उनका मेलजोल बढ़िया है। बीजेपी के खिलाफ मुखर रहने वाले शिवसेना (UBT) के नेता संजय राउत ने भी राधाकृष्णन की तारीफ की है। उद्धव ठाकरे की पार्टी द्वारा राधाकृष्णन की तारीफ किए जाने से INDI गठबंधन की टेंशन बढ़ गई है।

राउत ने कहा है, “मैं मानता हूँ कि राधाकृष्णन का व्यक्तित्व बहुत अच्छा है। वे गैर-विवादास्पद हैं और उनके पास राजनीति और संगठन का लंबा अनुभव है। मैं उन्हें शुभकामनाएँ देता हूँ।” राउत की बातों से लग रहा है कि INDI गठबंधन के लिए मामला इतना आसान भी नहीं होने वाला है।

पहले भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में विपक्षी गठबंधन में आई थी दरार

यह पहली बार नहीं है कि विपक्षी गठबंधन की एकता में दरार आने की अटकलें लग रही हैं। इससे पहले भी ऐसे हालात बन चुके हैं, जब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों में विपक्षी एकता छिन्न भिन्न हो गई हो। जिन जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के चलते उपराष्ट्रपति की कुर्सी खाली हुई है उनके चुनाव में भी विपक्षी एकता में दरार साफ दिखी थी। जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति बनने से पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी उनसे तल्ख रिश्तों के बाद भी धनखड़ का विरोध नहीं कर पाई थी।

2022 में जब राष्ट्रपति पद का चुनाव हुआ था तो भी विपक्षी एकता टूट गई थी। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विपक्षी खेमे में रहते हुए ही द्रौपदी मुर्मू के समर्थन का ऐलान किया था। अब फिर वैसी ही स्थिति विपक्ष के लिए बनती दिख रही हैं। इस बार मुश्किलें DMK के लिए बढ़ी हुई हैं। बीजेपी ने अपने मास्टर स्ट्रोक से एक साथ कई निशाने साधने की कोशिश की है जिसका असर आने वाले दिनों में साफ नजर आ सकता है।

रामनाथ कोविंद को 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में NDA का उम्मीदवार बनाया गया था। कोविंद उससे पहले बिहार के राज्यपाल रहे थे। तब नीतीश कुमार की पार्टी JDU ने विपक्ष में रहते हुए भी कोविंद के नाम का समर्थन किया था।



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