सिन्धु नदी के पानी का बेहतर इस्तेमाल के लिए भारत ने बड़ी योजना बना ली है। इसके तहत 113 किलोमीटर लंबी नहर बनाई जाएगी। ये नहर चिनाब नदी को रावी, सतलुज, व्यास नदियों के सिस्टम को जोड़ेगी। इस परियोजना का फायदा न सिर्फ जम्मू कश्मीर, बल्कि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान को भी मिलेगा। योजना का मकसद चिनाब के जल का बेहतर इस्तेमाल है, साथ ही पाकिस्तान जाने वाले पानी को रोक कर उन जगहों तक पहुँचाना है जहाँ पानी कम है।लग
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश के पंचमढ़ी में बीजेपी के प्रशिक्षण शिविर में इस योजना की जानकारी दी। उन्होने कहा, ” सिंधु का पानी तीन साल के भीतर नहरों के माध्यम से श्री गंगानगर तक पहुँचाया जाएगा।” उन्होंने आगे कहा, “पाकिस्तान पानी की हर बूँद के लिए तरस जाएगा”
प्रस्तावित नहर नेटवर्क के तहत 11 नहरों को जोड़ने की योजना है और अंत में इंदिरा गाँधी नहर सिस्टम में ये मिलेगा। इससे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान को फायदा होगा और दूर-दराज के क्षेत्रों तक पानी पहुँचाया जा सकेगा। पानी के इस वितरण का असर जलवायु परिवर्तन और बारिश के पैटर्न में हो रहे बदलाव पर भी दिखेगा।
रणबीर नहर की बढ़ाई गई लंबाई
इस काम को आगे बढ़ाने के लिए केन्द्र सरकार ने रणबीर नहर की लंबाई दोगुना करने की योजना बनाई है। अब ये 60 किलोमीटर से बढ़ाकर 120 किलोमीटर कर दिया गया है। प्रताप नहर को लेकर भी सरकार की ऐसी ही योजना है।

उझ परियोजना को दी जा रही गति
रावी की सहायक नदी उझ पर बहुउद्देशीय परियोजना बनाने का काम कई सालों से रुका हुआ है। मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर के कठुआ में उझ बहुउद्देश्यीय परियोजना को पुनर्जीवित करने की तैयारी कर ली है। इस परियोजना का उपयोग पनबिजली, सिंचाई और पीने के उद्देश्यों के लिए किया जाएगा। उझ के नीचे एक दूसरा रावी-ब्यास लिंक अब बड़ी नहर परियोजना का हिस्सा होगा। इसे पहले रावी के अतिरिक्त पानी को पाकिस्तान में जाने से रोकने के लिए बनाई गई थी। परियोजना में अब ब्यास बेसिन में पानी स्थानांतरित करने के लिए एक बैराज और सुरंग भी बनाया जा रहा है।।
पनबिजली परियोजनाओं पर काम तेज
चिनाब नदी पर बने बागलीहार और सलाल हाइड्रो परियोजनाओं के जलाशयों में गाद निकालने का काम जोरों से चल रहा है। सिंधु जल परियोजना के तहत आने वाली पनबिजली परियोजनाओं जैसे- पाकल दुल (1000 मेगावाट), किरु (624 मेगावाट) क्वार (540 मेगावाट) और रतले (850 मेगावाट) पर काम चल रहा है।
मोदी सरकार चाहती है कि इन योजनाओं का फायदा जल्दी से जल्दी लोगों को मिले इसलिए परियोजनाओं का काम तेजी हो रहा है।
1960 में हुआ था भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता
19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु जल संधि पर भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से समझौता हुआ था। यह समझौता भारत और पाकिस्तान द्वारा सिंधु नदी प्रणाली के जल के उपयोग को नियंत्रित करता है। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के फील्ड मार्शल अय्यूब खान द्वारा हस्ताक्षरित, यह संधि हिमालय से निकलने वाली छह नदियों के पानी को आवंटित करती है, जिन्हें मोटे तौर पर दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है: पूर्वी नदियाँ और पश्चिमी नदियाँ।
पूर्वी नदियाँ रावी (हिमाचल प्रदेश में उद्गम), ब्यास (हिमाचल प्रदेश और पंजाब से होकर बहती है), और सतलुज (तिब्बत से निकलती है, भारत से होकर पाकिस्तान में बहती है) भारत को दिया गया। जबकि सिंधु, चिनाब और झेलम का पानी पाकिस्तान को आवंटित की गईं।
भारत पूर्वी नदियों के पानी का प्रभावी ढंग से जलविद्युत, सिंचाई और अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग करता है। इस बीच, सिंधु, झेलम और चिनाब नदियाँ पाकिस्तान की पनबिजली, सिंचाई और अन्य जरूरतों के लिए आवश्यक हैं। सिंधु नदी पाकिस्तान की जीवन रेखा से कम नहीं है।
सिंधु जल संधि समझौते को आपसी सहयोग और शांति की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया गया था। हालाँकि यह संधि निश्चित रूप से संतुलित नहीं थी। इससे पाकिस्तान को अधिक लाभ हुआ क्योंकि इसके अंतर्गत आनेवाली नदियाँ का जल प्रवाह पश्चिमी दिशा में ज्यादा है।
इसकी वजह से भारत इन नदियों में बहने वाली कुल जल प्रवाह का लगभग 20 फीसदी ही नियंत्रित करता है, जो सालाना करीब 33 मिलियन एकड़ फीट या 41 बिलियन क्यूबिक मीटर होता है। जबकि पाकिस्तान को 80 प्रतिशत मिलता है, जो लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट या 99 बिलियन क्यूबिक मीटर होता है। इस समझौते में पश्चिमी नदियों में बड़े बहुउद्देशीय परियोजनाओं के बनाने पर रोक लगी थी साथ ही इसमें पाकिस्तान में जल प्रवाह को अवरुद्ध करने या नाटकीय रूप से बदलने पर प्रतिबंध लगा दिया।
हालाँकि संधि के स्थगित होने के बाद भारत को अब पाकिस्तान की ‘चिंताओं’ या ‘आपत्तियों’ (भारतीय परियोजनाओं के डिजाइनों पर जानबूझकर अवरोधों को पढ़ें) पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है।
पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने सिंधु जल संधि के तहत अपने पूर्ण आवंटन का उपयोग करने के लिए लगातार काम किया है। खासकर 2016 के उरी हमले के बाद भारत ने योजना को गति दी है। भारत ने हाल के वर्षों में पूर्वी नदियों से पानी को पकड़ने और पश्चिमी नदियों के सीमित उपयोग के लिए बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है।
पीएम मोदी ने किया किशनगंगा परियोजना का उद्घाटन
इसको देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने मई 2018 में जम्मू और कश्मीर में झेलम की पश्चिमी नदी पर किशनगंगा परियोजना का उद्घाटन किया। किशनगंगा परियोजना में उझ नदी से संग्रहित लगभग 0.65 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी का उपयोग करके 300 मेगावाट से अधिक बिजली पैदा की जा सकती है और कम से कम 30,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकती है। पाकिस्तान के विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने ये साहसिक कदम उठाया।
सिंधु की सहायक नदियों पर स्थित किशनगंगा जलविद्युत संयंत्र का निर्माण 2007 में शुरू हुआ था और चिनाब पर बने रतले जलविद्युत संयंत्र की आधारशिला 2013 में रखी गई थी।
लंबे समय तक, भारत ने रावी नदी के कुछ पानी को बिना इस्तेमाल किए पाकिस्तान में बहने दिया। हालांकि, 2024 में शाहपुरकंडी बैराज के पूरा होने के साथ ही इस प्रवाह को रोक दिया गया और करीब 1,150 क्यूसेक पानी को सिंचाई के लिए जम्मू-कश्मीर और पंजाब की ओर मोड़ दिया गया। इसके साथ ही भारत ने न केवल घरेलू उपयोग के लिए आवंटित पूर्वी नदी का अधिकतम उपयोग किया, बल्कि पाकिस्तान तक पहुँचने वाले पानी को भी कम किया। इस बीच, रावी नदी पर उझ बहुउद्देशीय परियोजना और मकौरा पट्टन बैराज और चिनाब और झेलम पर बन रहे रतले और कीरू सहित रन-ऑफ-रिवर (आरओआर) परियोजनाओं के निर्माण कार्य में भी तेजी लाई गई है।