गंगा जल समझौता

भारत में विकास और जल संसाधनों पर बढ़ते दबाव के बीच बांग्लादेश के साथ ऐतिहासिक गंगा जल-बँटवारे की संधि की समीक्षा का वक्त आ गया है। दरअसल भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा जल बँटवारा समझौता 2026 में अपनी अवधि पूरी कर रहा है। भारत ने संकेत दिया कि वह घरेलू जल आवश्यकताओं में वृद्धि के कारण गंगा संधि पर फिर से बातचीत करना चाहता है।

गौरतलब है कि भारत ने पाकिस्तान के साथ हुए सिंधु जल समझौता को निरस्त कर दिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने ये भी दोहराया है कि ये ‘अतीत की बात’ हो गई है। ये समझौता भारत ने अप्रैल 2025 में पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद निरस्त किया था। नई दिल्ली ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया था।

बांग्लादेश में भी राजनीतिक परिस्थितियाँ 30 साल पुरानी वाली नहीं है। गंगा समझौता के तहत बांग्लादेश को बगैर किसी रुकावट के पानी मिलता रहे इसके लिए समझौता करना जरूरी है।

ये संधि 30 साल के लिए था। भारतीय अधिकारी चाहते हैं कि यह केवल 10-15 साल तक का हो। संधि पर भारत के रुख ने बांग्लादेश को चिंतित कर दिया है।

अतीत के आईने में गंगा जल बंटवारा संधि

गंगा नदी भारत और बांग्लादेश के लोगों की जीवनदायिनी है। इसके पानी को साझा करना दोनों देशों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। दोनों देशों के बीच जल बँटवारे को लेकर विवाद 1950 के दशक से शुरू हुआ। उस वक्त भारत ने कोलकाता की ओर पानी मोड़ने के लिए पश्चिम बंगाल के फरक्का में बैराज बनाना शुरू किया।

1971 में अलग राष्ट्र बनने के बाद बांग्लादेश और भारत ने मिलकर इसके समाधान का प्रयास किया। 1972 में भारत और बांग्लादेश ने एक संयुक्त नदी आयोग (JRC) का गठन किया। 1977 में 5 साल के लिए जल-बँटवारे का समझौता हुआ। 1978 से 1982 के बीच लागू इस समझौते के तहत बांग्लादेश को हर हाल में जल उपलब्ध कराने की गारंटी दी गई। समझौता खत्म होने के बाद दोनों देशों ने करीब एक दशक तक जल संसाधनों के बँटवारे पर कोई औपचारिक समझौता नहीं किया। इस दौरान भारत ने गर्मी में गंगा के पानी को अपनी तरफ मोड़ा, जिससे बांग्लादेश के साथ संबंधों में तनाव पैदा हुआ। 1990 के दशक में दोनों पक्षों ने माना कि फरक्का बैराज विवाद को हल करने और गंगा जल बँटवारे के लिए दीर्घकालिक संधि की आवश्यकता है।

1996 में गंगा जल समझौते पर हुआ हस्ताक्षर

भारत और बांग्लादेश के बीच लंबे समय तक बातचीत चली। आखिरकार, 12 दिसंबर 1996 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा और बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने जल-बँटवारे के समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को एक ऐसी सफलता के रूप में देखा गया जिसने नदी को लेकर दोनों देशों के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव को खत्म कर दिया।

बांग्लादेश ने इस संधि को अपने किसानों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जरूरत के रूप में देखा। जबकि भारत ने इसे एक पड़ोसी देश के साथ सहयोग करने के तौर पर लिया। यह समझौता ऐसे समय में हुआ जब दोनों देशों के बीच रिश्ते मधुर हो रहे थे। ढाका में नवगठित हसीना सरकार भारत के साथ अच्छे संबंध बनाना चाहती थी, वहीं भारत की संयुक्त मोर्चा सरकार बांग्लादेश के साथ अच्छे संबंध सुनिश्चित करना चाहती थी।

गंगा जल समझौते के तहत जल बंटवारा

गंगा जल बँटवारा संधि में जब गंगा में कम जल स्तर होता है तो जल बंटवारा कैसे किया जाए? इस पर सहमति बनी थी। फरक्का में गंगा नदी के प्रवाह के पुराने डेटा के मुताबिक माना गया कि 1 जनवरी से 31 मई के बीच जल स्तर कम रहता है। ये डेटा 1949 से 1988 तक के गंगा नदी में जल प्रवाह के डेटा के आधार पर बताया गया।

जब गंगा का प्रवाह कम होता है, तो भारत और बांग्लादेश पानी का बँटवारा बराबर-बराबर करें। लेकिन बाकी के वक्त भारत गंगा के जल का एक निश्चित हिस्सा लेगा।

  1. फरक्का में जब जल का बहाव 70,000 क्यूसेक या उससे कम होता है तो इसे कम माना जाता है। ऐसे वक्त में दोनों देशों को आधा-आधा पानी मिलता है।
  2. जब प्रवाह 70,000 और 75,000 क्यूसेक के बीच होता है, तो इसे मध्यम माना जाता है। इस वक्त बांग्लादेश को 35,000 क्यूसेक मिलता है जबकि भारत को बाकी पानी मिलता है।
  3. फरक्का में जब गंगा नदी का प्रवाह 75,000 क्यूसेक से अधिक होता है, तो भारत 40,000 क्यूसेक तक पानी ले सकता है और बाकि 35000 क्यूसेक पानी बांग्लादेश को मिलता है।
  4. यह संधि दोनों देशों को गर्मी के मौसम में जब जल प्रवाह नदी में कम होता है, उस वक्त बराबर पानी मिले ये तय करता है। इससे खेतों की सिंचाई में कोई बाधा न आए।
  5. हालाँकि अगर गंगा का जलस्तर असामान्य रूप से कम हो जाता है, तो न्यूनतम प्रवाह की कोई गारंटी नहीं है। दोनों देश आपस में बातचीत कर समस्या सुलझाएँ। संधि के अनुच्छेद II में ये बातें कही गई है।

कौन करता है प्रवाह की निगरानी?

गंगा नदी में जल प्रवाह की निगरानी के लिए भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग का गठन किया गया। इस आयोग ने एक संयुक्त समिति गठित की जिसमें दोनों पक्षों के तकनीकी अधिकारियों को शामिल किया गया। ये कमेटी गंगा जल स्तर की निगरानी, ​​डेटा का आदान-प्रदान और बाकी काम करती है।

संयुक्त समिति आम तौर पर साल में तीन बार मिलती है। अगर बीच में कोई समस्या आ गई हो, तो उसका हल निकालने के लिए आपात बैठक भी कर सकती है। इसमें तीसरे पक्ष की भागीदारी के लिए कोई प्रावधान नहीं है।

सहयोग और विवाद के तीन दशक

संधि पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद से लगभग 30 साल बीत चुके हैं। इस दौरान कई बार दोनों देशों के बीच विवाद हुए हालाँकि समझौते का सम्मान किया गया। जल स्तर पर निगरानी रखने वाली समिति में दोनों देशों के प्रतिनिधि नियमित रूप से मिलते हैं और डेटा का आदान-प्रदान करते हैं।

हालांकि कई बार बांग्लादेश ने समझौते को लेकर निराशा व्यक्त की है, खासकर उन वर्षों में जब नदी में पानी का प्रवाह काफी कम था।

कुछ अध्ययनों से पता चला है कि वास्तविक जल आपूर्ति वादे से कम की गईं। 1997 से 2016 के बीच, 300 दस-दिवसीय अवधियों में से 94 में, बांग्लादेश को अपने हार्डिंग ब्रिज बिंदु पर फरक्का में दर्ज की गई तुलना में कम पानी मिला। बांग्लादेश ने दावा किया कि उसे हमेशा जल की आपूर्ति कम होती है। बांग्लादेश ने यहाँ तक ​​आरोप लगाया कि भारत कभी-कभी गर्मी के महीने में पानी रोक लेता है और फिर बाद में ज्यादा पानी देकर इसकी भरपाई करता है। इससे बांग्लादेश में फसलों को नुकसान पहुँचता है।

बांग्लादेश में पर्यावरण से जुड़े संगठनों ने भी पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले नुकसान की ओर इशारा किया है। उन्होंने दावा किया है कि संधि फरक्का में जल के बँटवारे पर केन्द्रित है और बांग्लादेश के दूसरे हिस्सों पर होने वाले प्रभाव की अनदेखी करता है। गंगा के निचले हिस्सों में नदी का खारापन लगातार बढ़ रहा है और इससे भूमि बंजर होती जा रही है।

जबकि भारत का मत है कि संधि के इतर उसने बांग्लादेश को ज्यादा पानी दिया है। पश्चिम बंगाल के राजनेताओं ने शिकायत की है कि उनके अपने किसान और शहर पानी की कमी का सामना कर रहे हैं, जबकि भारत संधि की वजह से बांग्लादेश को गंगा जल देता है।

कोलकाता बंदरगाह में जम रहा है गाद

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने संधि को ‘एकतरफा’ करार देते हुए इसकी समीक्षा पर जोर दिया है। उन्होने हर हाल में नई संधि किए जाने पर बंगाल को अधिक गंगा का जल देने की माँग की है। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट यानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट तक 40,000 क्यूसेक पानी लगातार रहे इसके लिए फरक्का बैराज बनाया गया।

लेकिन 1996 की गंगा जल संधि ने फरक्का बैराज के संचालन के तरीके में बदलाव करने के लिए मजबूर किया। कोलकाता के इस व्यस्त बंदरगाह में गाद जमा हो रही है, जिससे जहाजों के आवागमन में दिक्कतें आ रही हैं। यहाँ तक कि फरक्का में स्थित एनटीपीसी के प्लांट को भी पानी की कमी का सामना करना पड़ता है।

भारत के दूसरे राज्यों की भी अलग-अलग शिकायतें हैं। फरक्का से ऊपर बिहार को दिक्कत है कि मॉनसून के दौरान कभी-कभी बैराज से बहुत ज्यादा पानी छोड़ दिया जाता है जिससे बाढ़ आ जाती है। इस वक्त फरक्का बैराज के गेट भी खोल दिए जाते हैं, जिससे बिहार के गंगा बेसिन में गाद और बाढ़ का प्रकोप बढ़ जाता है।

बदलते माहौल में संधि की समीक्षा बेहद जरूरी है इसलिए 2026 में संधि की समाप्ति की तारीख आ रही है, तो उम्मीद की जा रही है कि भारत लंबे समझौते के लिए तैयार नहीं होगा बल्कि इसकी अवधि थोड़ी छोटी होगी। इसकी तैयारी भी शुरू हो गयी है। पिछले साल भारत सरकार ने गंगा से होने वाली घरेलू जल आवश्यकताओं का आकलन करने के लिए पश्चिम बंगाल और बिहार के प्रतिनिधियों सहित एक समिति का गठन किया।

बांग्लादेश कहता रहा है कि जल हिस्से में अगर कमी की गई तो उसे भयावह स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। गर्मी के महीनों में कृषि, मत्स्य पालन और पेयजल आपूर्ति की गंभीर समस्या पैदा होगी। जून 2024 में शेख हसीना की दिल्ली यात्रा के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आश्वासन दिया कि संधि को बढ़ाए जाने पर बातचीत शुरू होगी, हालाँकि अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं।

मार्च 2025 में दोनों देशों के विशेषज्ञों की कोलकाता में बैठक हुई। इसमें फरक्का में जल प्रवाह को संयुक्त रूप से मापने की बात कही गई। इस बीच पर्यावरण वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन की चेतावनी दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगा का प्रवाह अनियमित होता जा रहा है। कभी लंबे समय तक जल प्रवाह काफी कम रहता है तो कभी कम वक्त में ज्यादा बारिश से पानी का जलस्तर बढ़ जाता है।

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि जलवायु परिवर्तन आने वाले दशकों में गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के रास्ते में बदलाव ला सकता है। इससे लाखों लोग प्रभावित होंगे।

दोनों पक्षों ने माना है कि नई संधि में पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रख कर बनाया जाना चाहिए। विशेषज्ञों का सुझाव है कि नई संधि में बेहतर डेटा संकलन, संयुक्त बाढ़ प्रबंधन की नीतियाँ भी होनी चाहिए, जिससे जल बँटवारा सही तरीके से धरातल पर उतर सके।

बांग्लादेश में बदल गई है सत्ता

हमें ये भी याद रखना चाहिए कि भारत और बांग्लादेश के बीच नई संधि पर राजनीतिक परिस्थितियों का भी असर पड़ेगा। अगस्त 2024 से बांग्लादेश में अंतरिम सरकार है। भारत ने संकेत दिया है कि वह ढाका में एक निर्वाचित सरकार के साथ बड़े समझौते करना पसंद करता है।

बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार का चीन- पाकिस्तान के साथ नजदीकियाँ बढ़ गई हैं। इसलिए भारत ज्यादा सतर्क है। संधि की शर्तें आने वाले दशकों में भारत और बांग्लादेश के बीच राजनयिक संबंधों का भविष्य तय करेंगी। 2026 में संधि को समाप्त होने देना दोनों देशों के बीच अनिश्चितता और अविश्वास की शुरुआत कर सकता है।

भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा जल समझौता संतुलित होना चाहिए। भारत के विकास की रफ्तार को देखते हुए अब 1996 के समझौते में तय की गई शर्तों को जारी रखना संभव नहीं है। किसी भी दो देशों के बीच जल बँटवारे के लिए हमेशा कूटनीति, वैज्ञानिक प्रबंधन और समझौते की भावना की आवश्यकता होती है। गंगा का जल 30 वर्षों से दोनों देशों के बीच शांतिपूर्वक बह रहा है। आने वाले दिनों में गंगा अविरल रहे ये भी जरूरी है, क्योंकि ये दोनों देशों की लाइफ लाइन है। ये समझौता इस ख्याल से भी मील का पत्थर साबित होगा।

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