दूसरे विश्व युद्ध के खत्म हुए 80 साल हो गए हैं लेकिन चीन और ताइवान अभी भी इस युद्ध में ‘किसने क्या किया’ को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। बीजिंग में होने वाली विक्ट्री डे परेड से पहले चीन और ताइवान के बीच यह बयानबाजी और तेज हो गई है।
ताइवान की राजधानी ताइपे में एक कार्यक्रम में, 99 वर्षीय अनुभवी पान चेंग-फा ने कहा कि उन्होंने जापान के खिलाफ दूसरे विश्व युद्ध में चीन के लिए लड़ाई लड़ी थी। जब उनसे यह पूछा गया कि उस समय रिपब्लिकन सरकार के साथ जुड़े कम्युनिस्टों की भूमिका क्या थी, तो उन्होंने कहा, “हमने उन्हें हथियार और उपकरण दिए, हम उन्हें मजबूत बनाते रहे।”
चीन-ताइवान विवाद की पृष्ठभूमि
यह सब 1895 से शुरू हुआ। पहले चीन-जापान युद्ध में चीन का चिंग (Qing) वंश हार गया और शिमोनोसेकी संधि के तहत ताइवान पर जापान का कब्जा हो गया। 1911 में चीन में क्रांति हुई और चिंग वंश का अंत हो गया। अगले ही साल ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की स्थापना हो गई।
चीन में 1927 में गृहयुद्ध शुरू हुआ जब कम्युनिस्ट पार्टी ने रिपब्लिकन सरकार के खिलाफ विद्रोह किया। 1931 में जापान ने चीन के उत्तर-पूर्वी हिस्से मंचूरिया पर कब्जा कर लिया।
रिपब्लिक ऑफ चाइना के नेता च्यांग काई शेक को 1936 में उनके ही दो जनरलों ने अगवा कर लिया ताकि उन्हें माओत्से तुंग के नेतृत्व वाले कम्युनिस्टों के साथ मिलकर जापान से लड़ने के लिए मजबूर किया जा सके।
जापान ने पूरे चीन में 1937 में हमला तेज कर दिया। लेकिन हालात जापान के खिलाफ गए। 1943 में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और चीन के रिपब्लिकन नेता च्यांग काई शेक ने ‘काहिरा घोषणा’ पर हस्ताक्षर किए। इसमें कहा गया कि ताइवान को ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ को वापस किया जाएगा।
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के साथ दूसरा चीन-जापान युद्ध भी खत्म हुआ। जापान की हार कई कारणों से हुई, चीनी सेना की थकाऊ रणनीति, जापानी गलतियाँ और अंत में अमेरिका व अन्य मित्र राष्ट्रों का युद्ध में उतरना। 1945 की पॉट्सडैम घोषणा ने जापान के बिना शर्त आत्मसमर्पण और काहिरा घोषणा की पुष्टि की।
जापान के आत्मसमर्पण के बाद ताइवान रिपब्लिक ऑफ चाइना को सौंपा गया लेकिन 1946 में कम्युनिस्ट और रिपब्लिकन फिर से भिड़ गए और गृहयुद्ध शुरू हो गया। 1947 में ताइवान की जनता ने रिपब्लिक ऑफ चाइना के खिलाफ विद्रोह किया, जिसे कठोरता से दबा दिया गया।
जब माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट जीत गए और 1949 में ‘पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की स्थापना हुई, तब च्यांग काई शेक ताइवान भाग गए और माओ ने ताइवान को मुक्त कराने की कसम खाई। आज ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ को ही ताइवान कहा जाता है।
ताइवान एक विवादित क्षेत्र क्यों बना हुआ है?
1951 में जापान ने सैन फ्रांसिस्को शांति संधि पर हस्ताक्षर किए और ताइवान पर अपना दावा छोड़ दिया। लेकिन ताइवान की संप्रभुता का सवाल अब तक अनसुलझा है। चूंकि इस संधि में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) शामिल नहीं थी, इसलिए वह इसे गैरकानूनी और अमान्य मानती है।
1952 में रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) और जापान ने शांति संधि पर हस्ताक्षर किए। इसमें जापान ने ताइवान पर अपने दावे से दोबारा हाथ खींच लिया। ताइवान की सरकार का कहना है कि इस समझौते से साफ होता है कि पिछली संधि के तहत ताइवान की संप्रभुता रिपब्लिक ऑफ चाइना (यानी उस समय की रिपब्लिकन सरकार) को मिली थी, न कि कम्युनिस्टों को। आज तक चीन और ताइवान की सरकारें एक-दूसरे को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं देतीं।

चीनी रिपब्लिकन जापान के खिलाफ लड़े; कम्युनिस्टों ने श्रेय ले लिया: ताइवान ने CCP पर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया
दूसरे विश्व युद्ध के बाद की स्थिति पर बोलते हुए 99 साल के पान चेंग-फा ने कहा, “जापान को हराने के बाद कम्युनिस्टों का अगला निशाना रिपब्लिक ऑफ चाइना था।”
आज भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) यह प्रचार करती है कि जापान को हराने में उसकी मुख्य भूमिका थी। लेकिन हकीकत यह है कि च्यांग काई-शेक के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन सरकार ने इसमें निर्णायक भूमिका निभाई थी।
काहिरा घोषणा (1943) और पॉट्सडैम घोषणा (1945), जिनमें ताइवान को चीन का हिस्सा बताया गया, च्यांग ने ही साइन की थीं। उस समय पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) का अस्तित्व भी नहीं था, क्योंकि वह 1949 में बना।
15 अगस्त को जापान के आत्मसमर्पण दिवस पर ताइवान के शीर्ष अधिकारी चिउ चुई-चेंग ने कहा “रिपब्लिक ऑफ चाइना ने जापान के खिलाफ युद्ध लड़ा था, उस समय पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना अस्तित्व में भी नहीं था। लेकिन हाल के वर्षों में CCP लगातार झूठ फैलाती रही है कि उसने ही जापान को हराया।”
चिउ ने दावा किया कि उस समय कम्युनिस्ट पार्टी की रणनीति ‘70% खुद को मजबूत करने, 20% रिपब्लिकन सरकार से लड़ने और सिर्फ 10% जापान का विरोध करने’ पर आधारित थी। ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने भी कहा, “इतिहास गवाह है कि जापान के खिलाफ युद्ध रिपब्लिक ऑफ चाइना ने जीता था।”
ताइपे में रक्षा मंत्रालय के कार्यक्रम में कलाकारों ने रिपब्लिकन सैनिकों की वेशभूषा में प्रस्तुति दी और अमेरिकी पायलट फ्लाइंग टाइगर्स की तस्वीरें भी दिखाई गईं। यह बात CCP को नागवार गुजरी।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने ताइवान पर आरोप लगाया कि वह द्वितीय चीन-जापान युद्ध में CCP की भूमिका को गलत तरीके से पेश कर रहा है। CCP के अखबार पीपुल्स डेली ने लिखा कि इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है और यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि CCP की भूमिका महत्वपूर्ण नहीं थी।
CCP का दावा है कि जापान पर जीत सबकी साझा थी और 1945 के समझौते से ताइवान चीन को लौटा। लेकिन ताइवान कहता है कि यह समझौता रिपब्लिक ऑफ चाइना और च्यांग काई-शेक ने साइन किया था, न कि माओ या CCP ने। CCP का कहना है कि वह रिपब्लिक ऑफ चाइना की वैध उत्तराधिकारी है और ताइवान चीन का अभिन्न हिस्सा है।
चीन और ताइवान लंबे समय से इतिहास को लेकर जुबानी जंग लड़ रहे हैं, लेकिन मौजूदा समय में यह टकराव और तेज हो गया है। चीन लगातार अपनी सैन्य शक्ति दिखा रहा है और ताइवान को परोक्ष रूप से धमका रहा है, जबकि ताइवान कह रहा है कि वह CCP की आक्रामकता का जवाब देगा।
मौजूदा हालात बताते हैं कि भविष्य में चीन और ताइवान के बीच सैन्य संघर्ष की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। फर्क बस इतना होगा कि इस बार अमेरिका ताइवान के साथ खड़ा होगा, न कि CCP के साथ।
(मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में श्रद्धा पांडे ने लिखी है, इस लिंक पर क्लिक कर विस्तार से पढ़ सकते है।)