इजरायल बेंजामिन नेतन्याहू सीरिया अल शारा

पश्चिम एशिया एक बार फिर संकट के मुहाने पर है। दक्षिणी सीरिया के सुवेदा में दो समुदायों ड्रूज (Druze) और बेडौइन के बीच स्थानीय संघर्ष के रूप में शुरू हुआ विवाद अब क्षेत्रीय तनाव का केंद्र बन गया है। इजरायली फाइटर प्लेन ने सीरियाई क्षेत्र में 160 से ज्यादा हवाई हमले किए हैं।

इस हमले का कारण सीरिया की नई सरकार द्वारा ड्रूज अल्पसंख्यकों के विरुद्ध की गई क्रूर कार्रवाई थी। इसके तहत कई ड्रूज नागरिकों की सामूहिक हत्या की गई। इसके वीडियो सोशल मीडिया पर भी हैं। ड्रूज समुदाय का इजरायल से ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ता है।

इन्हीं घटनाओं के बाद इजरायली वायुसेना ने सीरिया पर 160 से ज्यादा हवाई हमले किए। इजरायल ने यह कार्रवाई सिर्फ आत्म-रक्षा के लिए नहीं, बल्कि मानवीय सहायता के तहत भी की ताकि ड्रूज समुदाय को बचाया जा सके। हालाँकि यह हमला केवल ड्रूज की सुरक्षा तक सीमित नहीं था। इजरायल ने इस मौके का इस्तेमाल सीरियाई सेना को नुकसान पहुँचाने और इजरायल व सीरिया के बीच एक बफर जोन बनाए रखने के लिए भी किया।

गौर करने वाली बात यह है कि इजरायल ने राजनीतिक कारणों से सीरिया में एक पूर्व जिहादी को राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार किया था। लेकिन इस हमले के जरिए इजरायल ने साफ कर दिया कि वह सीरियाई सरकार द्वारा धार्मिक और जातीय हिंसा को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा।

कौन हैं ड्रूज और क्यों है इजरायल को उनकी परवाह ?

ड्रूज एक छोटा लेकिन एकजुट मजहबी समुदाय हैं। इनकी शुरुआत 10वीं सदी में इस्माइली शिया इस्लाम से हुई थी। हालाँकि समय के साथ यह समुदाय एक अलग मजहबी और जातीय पहचान बन गया है। ये लोग मुख्य रूप से सीरिया, लेबनान और इजरायल के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं।

वे इजरायली डिफेंस फोर्स (IDF) में सेवा करते हैं, समाज में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और देश के प्रति वफादार नागरिक माने जाते हैं। उनकी पहचान इजरायल की सुरक्षा व्यवस्था से जुड़ी हुई है। दक्षिणी सीरिया में, खासकर स्वैदा (Suwayda) नामक इलाके में ड्रूज लोग रहते हैं।

यह इलाका इजरायल के गोलान हाइट्स के पास है और लंबे समय से इजरायल और सीरियाई जिहादी समूहों के बीच एक बफर जोन का काम करता रहा है। यहाँ अस्थिरता इजरायल के लिए सिर्फ एक मानवीय संकट नहीं, बल्कि एक रणनीतिक खतरा भी है। अगर इस इलाके से बेडुइन (Bedouin) जनजाति के लोगों के रुप एक और दुश्मन मोर्चा खुलता है तो यह इजरायल के लिए अस्वीकार्य है।

हाल ही में जब एक बेडुइन जनजाति ने स्वैदा में एक चेकपोस्ट बनाई और एक ड्रूज व्यक्ति पर हमला किया, तो जवाबी कार्रवाई शुरू हो गई। इसके बाद अपहरण, हत्या और बदले की कार्रवाइयों का सिलसिला चल पड़ा। सीरियाई सरकार ने इस मामले में हस्तक्षेप किया, लेकिन वो तटस्थ नहीं रही। स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार, सीरियाई सेना ने बेडुइन पक्ष का साथ दिया, जिससे हिंसा और बढ़ गई। कुछ ही दिनों में 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जिनमें 27 ड्रूज नागरिकों को बेरहमी से मारने की खबरें सामने आईं।

इजरायल ने कई बार दमिश्क (सीरियाई सरकार) को चेतावनी दी कि वे ड्रूज लोगों को निशाना बनाना बंद करें, लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई। जब ड्रूज लोगों की हत्याओं के वीडियो सामने आने लगे और इजरायल के अंदर से ड्रूज स्वयंसेवक अपने लोगों की मदद के लिए सीमा पार करने लगे, तब IDF ने हस्तक्षेप किया।

पूर्व जिहादी के हाथ से निकल रही सीरिया की व्यवस्था

सीरिया के वर्तमान राष्ट्रपति और पूर्व जिहादी अल-शरा के पास अपने देश के लिए एक सुनहरा मौका था। वे लंबे समय से प्रतिबंधों का सामना कर रहे सीरियाई समाज को शांति, समृद्धि और निवेश के साथ एक नई दिशा दे सकते थे।

सऊदी अरब, तुर्की, और कुछ हद तक इजरायल और अमेरिका जैसे देश किसी न किसी कारण से उनके प्रति सकारात्मक रुख रखते हैं। उन्हें यह परिस्थिति समझनी चाहिए और अपने लोगों की रक्षा करनी चाहिए थी, न कि समाज में हिंसा को बढ़ावा देना चाहिए था। लेकिन जो कुछ ड्रूज अल्पसंख्यकों पर हो रहा है, वह कुछ और ही कहानी बताता है।

इजरायल की कई चेतावनियों के बावजूद अल-शरा ने इन हमलों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया। उल्टा उनकी सेनाएँ इस हिंसा का समर्थन करती दिखीं। इसके बाद इजरायल ने जवाबी कार्रवाई की।

अमेरिका ने किया हस्तक्षेप लेकिन यह इतना भी आसान नहीं

अमेरिका ने अब हस्तक्षेप करते हुए सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। लेकिन उसकी स्थिति थोड़ी जटिल है। सीरिया अमेरिका के खेमे में नहीं आता। फिर भी हाल के वर्षों में तुर्की और सऊदी अरब के कहने पर अमेरिका ने सीरिया के राष्ट्रपति अल-शरा से बातचीत की थी।

उस समय ट्रंप पश्चिम एशिया के दौरे पर थे। तुर्की की चिंता थी कि शरणार्थियों की आमद कम हो, जबकि सऊदी अरब चाहता था कि सीरिया को एक बड़े सुन्नी गठबंधन में शामिल किया जाए। हालाँकि इसका मतलब यह नहीं है कि अब सीरिया अमेरिका का मित्र बन गया है। दरअसल  यहीं पर ‘ब्लॉक थ्योरी’ काम नहीं करती। आज की दुनिया में गठबंधन वैचारिक नहीं बल्कि लेन-देन के हिसाब से बनते हैं।

उदाहरण के तौर पर भारत अगर चीन से बातचीत कर रहा है, तो इसका ये मतलब नहीं कि वो चीन के साथ हो गया है। वैसे ही अमेरिका का सीरिया से संपर्क भी भरोसे पर नहीं बल्कि अस्थायी जरूरतों पर आधारित है।

‘ग्रेटर इजरायल’ की तरफ बढ़ रहा यहूदी राष्ट्र

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम इजरायल की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। इसे कुछ लोग ‘ग्रेटर इजरायल’ की सोच कहते हैं। हालाँकि यह सिद्धांत अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है।

हालाँकि मौजूदा हकीकत यह है कि इजरायल अपनी सीमाओं के आस-पास स्थिर और सुरक्षित बफर जोन बनाना चाहता है, खासकर उन इलाकों में जहाँ उसकी अपनी अल्पसंख्यक आबादी, जैसे कि ड्रूज समुदाय रहता है। ड्रूज समुदाय की रक्षा कर के इजरायल न सिर्फ नैतिक बढ़त हासिल करता है, बल्कि सीरिया के एक रणनीतिक क्षेत्र में अपना प्रभाव भी बढ़ाता है।

इजरायल का मकसद कोई क्षेत्र छीनना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि उसके दुश्मन इन इलाकों पर प्रभावी न हों। फिलहाल अमेरिका के राजदूत टॉम बैरक ने जानकारी दी है कि इजरायल और सीरिया ने युद्ध विराम पर सहमति जताई है। लेकिन इजरायल ने साफ कहा है कि अगर ड्रूज समुदाय पर दोबारा हमला हुआ, चाहे वो हमला उसकी सीमाओं के बाहर ही क्यों न हो तो वह सैन्य कार्रवाई करेगा।

मूल रूप से ये रिपोर्ट अंग्रेजी में अनमोल कुमार ने लिखी है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

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