बिहार में आगामी 4-5 महीनों में चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले चुनाव आयोग तैयारियों में लगा हुआ है। चुनाव आयोग इसी कड़ी में वोटर लिस्ट का निरीक्षण कर रहा है। सभी मतदाताओं से कागज माँगे जा रहे हैं ताकि उनका नाम वोटर लिस्ट में फिर से शामिल किया जा सके। जैसे ही यह प्रक्रिया चालू हुई है, बिहार के मुस्लिम बहुल जिले किशनगंज में निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन की संख्या 5-6 गुना बढ़ गई है। किशनगंज में इस बढ़त ने जिले में घुसपैठ और डेमोग्राफी चेंज के सवाल दोबारा खड़े कर दिए हैं।

किशनगंज में 5 गुना बढ़े निवास प्रमाण पत्र के आवेदन: डिप्टी CM सम्राट चौधरी

बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने बताया है कि 2025 में जनवरी से मई तक हर महीने औसतन 26 हजार से लेकर 28 हजार आवेदन निवास प्रमाण पत्र के लिए किशनगंज में आ रहे थे। उन्होंने बताया कि जैसे ही चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया चालू हुई यह संख्या तेजी से बढ़ गई।

उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने बताया कि जुलाई के 6 दिनों में ही निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिए 1.28 लाख से अधिक आवेदन किशनगंज में आ गए। उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि किशनगंज में घुसपैठिए बड़ी संख्या में मौजूद हैं।

सम्राट चौधरी ने यह भी बताया कि पैन कार्ड, आधार कार्ड और पासपोर्ट जैसे दस्तावेजों में समय और प्रमाण लगते हैं जबकि निवास प्रमाण पत्र आसानी से बन जाता है। उन्होंने इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा है। उनका यह बयान अब वायरल हो रहा है।

उनकी यह चिंताएँ जायज भी हैं क्योंकि किशनगंज बिहार का अकेला ऐसा जिला है जहाँ मुस्लिम आबादी 60% से अधिक है और यहाँ डेमोग्राफी बदलाव तेजी से हुआ है। किशनगंज में घुसपैठ भी बड़े स्तर पर हुई है।

क्यों जायज हैं सम्राट चौधरी की चिंताएँ?

घुसपैठियों और आवेदन में एक दम तेजी आने की बात अकारण ही सम्राट चौधरी नहीं कर रहे। इसके पीछे किशनगंज का इतिहास है। किशनगंज बिहार का अकेला ऐसा जिला है जहाँ लगभग 70% आबादी मुस्लिम है। यह बात कागजों में दर्ज है।

देश की आजादी के समय किशनगंज हिन्दू बहुल इलाका था। लेकिन बीते कुछ दशकों में यहाँ की डेमोग्राफी काफी तेजी से बदली है। अब यहाँ हिन्दू अब एक तिहाई भी नहीं रह गए हैं। यहाँ हिन्दू बीते कुछ दशक में अल्पसंख्यक हो चुके हैं। इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह घुसपैठ मानी जाती है।

यह जिला पश्चिम बंगाल की सीमा पर बसा हुआ है। यहाँ से लगातार बांग्लादेशी घुसपैठिए और रोहिंग्या गिरफ्तार हुए हैं। बीते माह ही यहाँ 9 बांग्लादेशी धराए थे। यहाँ अलग-अलग मौकों पर यह घुसपैठिए पकड़े जाते रहे हैं। इसी किशनगंज की सीमा नेपाल से सटी हुई है।

किशनगंज में ही फर्जी आधार और पैन जैसे दस्तावेज बनाने वाले पकड़े गए हैं। यानी यहाँ बांग्लादेशी और रोहिंग्या को मदद करने वाले भी मौजूद हैं। इसके अलावा, यहाँ बड़ी संख्या में बंगाली बोलने वाले हैं जो इन घुसपैठियों को आम जनसंख्या में मिलने का मौक़ा देता है।

इस जिले की जनसंख्या वृद्धि रफ़्तार देश के भीतर सबस तेज रही है। इस जिले में 2001 से 2011 के बीच 3% की दर से आबादी बढ़ी है जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। यही नहीं, किशनगंज में लगातार बच्चे भी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा तेजी से पैदा हो रहे हैं।

किशनगंज में TFR राष्ट्रीय औसत से 2.5 गुनी है। रायटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, किशनगंज का TFR लगभग 4.9 है जबकि पूरे देश का यह औसत 2.0 रहा है। कोई 15-49 वर्ष की महिला जितने बच्चों को इन वर्षों के दौरान जन्म देती है, वह उसका TFR कहा जाता है।

यदि किसी देश का औसत TFR 2.1 हो तो जनसंख्या बराबर बनी रहती है जबकि इससे कम होने पर जनसंख्या घटती है। पूरे देश में अब जनसंख्या घट रही है जबकि किशनगंज में दुगनी तेजी से बढ़ रही है।

16% बढ़ी सीमांचल में मुस्लिम आबादी

किशनगंज बिहार के सीमांचल क्षेत्र का हिस्सा है। दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 1951 से 2011 के बीच देश की कुल आबादी में मुस्लिम आबादी का हिस्सा 4% बढ़ा लेकिन इन सीमांचल के जिलों में यह हिस्सा 16% बढ़ा है और यह सभी जिलों का औसत है। किशनगंज ही नहीं बल्कि इससे सटे पूर्णिया, खगड़िया, अररिया और कटिहार जैसे जिलों में असामान्य तरीके से मुस्लिमों की आबादी बढ़ी है। इसका असर सामाजिक ढाँचे पर भी दिखा है।

CAA-NRC का भी किशनगंज में हुआ था खूब विरोध

किशनगंज में CAA-NRC का भी खूब विरोध हुआ था। तब भी देश भर में कागज नहीं दिखाने के प्रोपेगेंडा को हवा दी गई थी। गौरतलब है कि इस बार भी चुनाव आयोग सत्यापन के लिए कुछ दस्तावेज माँग रहा है। राजद और कॉन्ग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियाँ इस मामले में फिर मुस्लिमों को भड़काने में जुटी हुई हैं। चुनाव आयोग की प्रक्रिया को CAA-NRC का नाम दिया जा रहा है। 9 जुलाई को इस मामले में बिहार बंद तक करवाया गया।

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