बांग्लादेश में कई सरकारी अधिकारियों को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किए जाने के बाद अब यूनिवर्सिटीज में ये आग पहुँच गई है। यहाँ एक प्रोफेसर का न सिर्फ प्रमोशन रोका गया, बल्कि उनपर इस्तीफे का भी दबाव डाला। दरअसल, चटगाँव यूनिवर्सिटी में शुक्रवार (4 जुलाई 2025) को संस्कृत के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कुशल बरन चक्रवर्ती के साथ कुछ मुस्लिम छात्रों ने अभद्रता की। डॉ. चक्रवर्ती को एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर प्रमोशन के लिए इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था।
लेकिन उसी दौरान, यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर ऑफिस के बाहर कट्टरपंथी संगठन ‘इस्लामी छात्र शिबिर’ से जुड़े मुस्लिम छात्रों ने हंगामा शुरू कर दिया। इस हंगामे की वजह से इंटरव्यू प्रक्रिया रुक गई और प्रोफेसर का प्रमोशन भी रोक दिया गया।
मुस्लिम छात्रों ने न सिर्फ डॉ. कुशल बरन चक्रवर्ती का प्रमोशन रोकने की माँग की, बल्कि उन्हें यूनिवर्सिटी से निकालने की भी माँग उठाई। दबाव बनाने के लिए छात्रों ने यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग को घेर कर ताला लगा दिया।
यही नहीं, इस्लामी छात्र शिबिर का नेता हबीबुल्लाह खालिद वाइस-चांसलर के ऑफिस के अंदर पहुँच गया और डॉ. चक्रवर्ती के साथ ऊँची आवाज में बदसलूकी करने लगा। डॉ. चक्रवर्ती ‘सनातनी जागरण जोट’ और ‘सनातन विद्यार्थी संसद’ से जुड़े हुए हैं और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ खुलकर बोलते हैं।
इसी वजह से उन्हें बदनाम करने की कोशिश हो रही है। उन पर झूठे आरोप लगाए गए कि वे हत्या से जुड़े हैं और सरकार के दबाव में काम कर रहे हैं। यह घटना न सिर्फ एक प्रोफेसर के साथ अन्याय है, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों की आवाज दबाने की कोशिशें लगातार जारी हैं।
मुस्लिम छात्रों ने हिंदू प्रोफेसर की पदोन्नति रद्द करवाने में सफलता पाई
मीडिया से बात करते हुए डॉ कुशल बरन चक्रवर्ती ने कहा, “छात्रों द्वारा लगाए गए आरोप पूरी तरह से झूठे और बेबुनियाद हैं। मेरा किसी भी आपराधिक मामले से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसा लगता है कि कोई छात्रों को उकसा रहा है।” करीब 3 घंटे तक डॉ चक्रवर्ती को वाइस-चांसलर के ऑफिस में रोका गया और परेशान किया गया।
बाद में शाम को उन्हें यूनिवर्सिटी की गाड़ी से उनके घर पहुँचाया गया। छात्रों के दबाव के चलते यूनिवर्सिटी प्रशासन ने प्रमोशन बोर्ड को रद्द कर दिया। डॉ चक्रवर्ती ने बताया कि एसोसिएट वाइस-चांसलर मोहम्मद कमाल उद्दीन ने उन्हें धमकी भी दी।
यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक रजिस्ट्रार मोहम्मद सैफुल इस्लाम ने भी छात्रों की हरकत को सही ठहराया और इसे प्रोफेसर के ‘बीते कामों का नतीजा’ बताया। प्रशासन के एक और सदस्य डॉ शमीम उद्दीन ने कहा, “जब छात्रों ने आरोप लगाए कि वह हत्या की कोशिश के केस में नामजद हैं, तब हमने प्रमोशन बोर्ड की बैठक रद्द करने का फैसला लिया।” यह घटनाक्रम दर्शाता है कि कैसे एक शांतिप्रिय प्रोफेसर को धार्मिक आधार पर निशाना बनाकर उनके करियर को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की गई।
हिंदुओं ने किया विरोध प्रदर्शन
ढाका यूनिवर्सिटी में शुक्रवार (4 जुलाई 2025) को ‘सनातनी जागरण जोट’ से जुड़े हिंदुओं ने डॉ कुशल बरन चक्रवर्ती के साथ हुए अन्याय के खिलाफ प्रदर्शन किया। उन्होंने प्रोफेसर की सुरक्षा की माँग भी की।

कार्यकर्ता सुमन कुमार रॉय ने कहा, “आज देश में तानाशाही का माहौल है। यहाँ कानून का राज नहीं बचा है। ऐसा लगता है जैसे देश में लोकतांत्रिक सरकार ही नहीं रही।” 5 अगस्त 2024 को जब हिंसक छात्र आंदोलनों के जरिए शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाया गया, तब से कई हिंदू शिक्षकों को जबरन इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया।
ऑपइंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू प्रोफेसरों को घेरकर डराया-धमकाया जाता है और अगर वे इस्तीफा नहीं देते, तो उन्हें हिंसा की धमकी दी जाती है। बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के सत्ता में आने के बाद कट्टर इस्लामी ताकतों को बढ़ावा मिला।
Within less than a month by setting the never seen before predicament of wholesale purge of teachers from #minority communities in #education institutions, the mob leaders has marked the institutionalisation of intolerance among students, a shot in the arm for toxic narratives.… pic.twitter.com/d5r4HCZOpF
— Bangladesh Awami League (@albd1971) August 31, 2024
उन्होंने सबसे पहले प्रतिबंधित संगठन ‘जमात-ए-इस्लामी’ से बैन हटा दिया और ‘अंसरुल्लाह बांग्ला टीम’ के नेता मोहम्मद जसीमुद्दीन रहमानी को रिहा कर दिया। साथ ही, उन्होंने हिंदुओं पर हो रहे हमलों को नज़रअंदाज़ करते हुए यह तक कह दिया कि इन घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है। यह स्थिति बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की बढ़ती असुरक्षा और प्रशासनिक अनदेखी की गम्भीर तस्वीर पेश करती है।