ब्रह्मोस मिसाइलकी प्रतीकात्मक तस्वीर

ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ने मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपनी शानदार युद्धक क्षमताओं का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान की चूलें हिला दी। क्षमता का प्रदर्शन किया, जिसके बाद वैश्विक स्तर पर इसकी माँग में तेजी आई है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के ब्रह्मोस एयरोस्पेस इंटीग्रेशन एंड टेस्टिंग फैसिलिटी का उद्घाटन करते हुए कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस की भूमिका के बाद 14-15 देशों ने भारत से इस मिसाइल की माँग की है। उन्होंने एक कार्यक्रम में भी यही बात दोहराई है। हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह संख्या बढ़कर 17 तक पहुँच गई है, जिसमें दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका के देश शामिल हैं।

राजनाथ सिंह ने कहा कि यह फैसिलिटी रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाएगी और रोजगार सृजन करेगी, साथ ही उत्तर प्रदेश के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को गति देगी। आइए, हम ब्रह्मोस मिसाइल की हर छोटी-बड़ी बात को विस्तार से समझते हैं। साथ ही ये भी जानते हैं कि भारत का इसके साथ भविष्य का प्लान क्या है और दुनिया इसे क्यों चाहती है।

ब्रह्मोस मिसाइल क्या है?

ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसे भारत और रूस ने मिलकर बनाया है। इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मॉस्कवा नदी से लिया गया है। ये नाम दोनों देशों के बीच दोस्ती और सहयोग का प्रतीक है। ये मिसाइल इतनी तेज, सटीक और घातक है कि इसे रोकना लगभग असंभव है। इसे जमीन से, समुद्र से, हवा से और यहाँ तक कि पनडुब्बी से भी छोड़ा जा सकता है। ये सिर्फ आम हथियार ही नहीं, बल्कि जरूरत पड़ने पर परमाणु हथियार भी ले जा सकती है, जो इसे रणनीतिक तौर पर बहुत खास बनाता है।

ये मिसाइल 1998 में भारत और रूस के बीच हुए एक समझौते से शुरू हुई थी। भारत का डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) और रूस का एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया इस प्रोजेक्ट में साथ आए। भारत के मशहूर वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। 2001 में इसका पहला टेस्ट चाँदीपुर तट पर हुआ, और तब से ये लगातार बेहतर होती गई। आज ये भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना का अहम हिस्सा है।

ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस ने दिखाया जलवा

बता दें कि 10 मई 2025 को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ब्रह्मोस ने पहली बार असल जंग में अपनी ताकत दिखाई। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों पर सटीक हमले किए। इनमें रफीकी, मुरिद, नूर खान, रहीम यार खान, सुक्कुर और चुनियाँ जैसे हवाई अड्डे शामिल थे। स्कर्दू, भोलारी, जैकोबाबाद और सरगोधा के हवाई ठिकानों को भी भारी नुकसान हुआ। सियालकोट और पासरूर के रडार स्टेशन भी निशाने पर थे। इन हमलों में ब्रह्मोस ने SCALP और Hammer जैसे हथियारों के साथ मिलकर काम किया और अपनी सटीकता से दुश्मन को हैरान कर दिया।

11 मई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में ब्रह्मोस की नई फैसिलिटी के उद्घाटन के दौरान इसकी तारीफ की थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा कि इस ऑपरेशन के बाद 14-15 देशों ने ब्रह्मोस खरीदने की इच्छा जताई। ये पहला मौका था जब ब्रह्मोस को युद्ध में इस्तेमाल किया गया, और इसने दुनिया को दिखा दिया कि ये कितना दमदार हथियार है।

ब्रह्मोस की खासियतें बनाती हैं इसे बेमिसाल

ब्रह्मोस की कई ऐसी खूबियाँ हैं, जो इसे दुनिया के सबसे खतरनाक हथियारों में शुमार करती हैं। आइए, इन खूबियों को एक-एक करके विस्तार से समझते हैं –

तेज रफ्तार (सुपरसोनिक स्पीड) : ब्रह्मोस की रफ्तार ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना, यानी मैक 2.8 से मैक 3 तक है। अगर आप इसे आसान भाषा में समझें, तो ये इतनी तेज है कि दुश्मन को इसका जवाब देने का समय ही नहीं मिलता। उदाहरण के लिए, अमेरिका की टॉमहॉक मिसाइल सबसोनिक है, यानी ध्वनि की गति से कम तेज। लेकिन ब्रह्मोस की रफ्तार इसे पलक झपकते टारगेट तक पहुँचा देती है। इसकी वजह से दुश्मन के डिफेंस सिस्टम, जैसे मिसाइल शील्ड इसे रोकने में नाकाम रहते हैं।

फायर एंड फॉरगेट सिस्टम : इसका मतलब है कि ब्रह्मोस को एक बार छोड़ने के बाद उसे और कोई निर्देश देने की जरूरत नहीं। ये अपने आप टारगेट को ढूँढ लेती है। ये सिस्टम इसे बहुत तेज और सुरक्षित बनाता है, क्योंकि छोड़ने वाला प्लेटफॉर्म (जैसे जहाज या विमान) फौरन वहाँ से हट सकता है, जिससे उस पर हमले का खतरा कम हो जाता है।

छुपने की खूबी (स्टील्थ डिजाइन) : ब्रह्मोस का डिजाइन ऐसा है कि इसे रडार से पकड़ना बहुत मुश्किल है। इसका रडार क्रॉस-सेक्शन बहुत छोटा है, और इसमें स्टील्थ मटेरियल का इस्तेमाल हुआ है। आसान भाषा में कहें, तो ये मिसाइल दुश्मन के रडार की नजरों में कम आती है, जिससे इसे ट्रैक करना और रोकना मुश्किल हो जाता है।

कई जगह से छोड़ने की क्षमता (मल्टी-प्लेटफॉर्म) : ब्रह्मोस को आप जमीन पर मोबाइल लॉन्चर से, समुद्र में युद्धपोत या पनडुब्बी से या हवा में सुखोई-30 MKI जैसे लड़ाकू विमान से छोड़ सकते हैं। ये लचीलापन इसे हर तरह की जंग में उपयोगी बनाता है। मिसाल के तौर पर अगर समुद्र में दुश्मन का जहाज है, तो नौसेना इसे जहाज या पनडुब्बी से छोड़ सकती है। अगर जमीन पर कोई ठिकाना निशाने पर है, तो सेना या वायुसेना इसे हिट कर सकती है।

हर मौसम में काम करने की ताकत : चाहे भारी बारिश हो, धुंध हो, रात हो या दिन, ब्रह्मोस हर हाल में अपना काम बखूबी करती है। ये खराब मौसम में भी टारगेट को सटीक निशाना बना सकती है। ये खासियत इसे उन मिसाइलों से अलग करती है, जो मौसम की वजह से कमजोर पड़ जाती हैं।

बेहद सटीक निशाना : ब्रह्मोस की सटीकता इतनी जबरदस्त है कि ये 1-2 मीटर के दायरे में टारगेट को हिट कर सकती है। यानी अगर आप किसी बिल्डिंग की खिड़की को निशाना बनाना चाहें, तो ये उसी खिड़की को हिट करेगी। इसकी तेज रफ्तार और सटीकता मिलकर इसे भारी तबाही मचाने वाला हथियार बनाते हैं।

लंबी रेंज: ब्रह्मोस की सामान्य रेंज 290 किलोमीटर है, लेकिन नए वेरिएंट में ये 450 किलोमीटर तक जा सकती है। कुछ खबरों की मानें, तो 800 किलोमीटर रेंज वाला वर्जन भी टेस्टिंग में है। इतनी दूरी तक मार करने की क्षमता इसे रणनीतिक तौर पर बहुत अहम बनाती है।

कई रास्तों से टारगेट तक पहुँचना: ब्रह्मोस अलग-अलग रास्तों से टारगेट तक पहुँच सकती है। जैसे ये समुद्र के ऊपर सिर्फ 3-10 मीटर की ऊँचाई पर उड़ सकती है (जिसे सी-स्किमिंग कहते हैं) या फिर ऊँचाई से गोता लगाकर हमला कर सकती है। ये रास्ते बदलने की खूबी इसे दुश्मन के डिफेंस सिस्टम से बचाती है।

जैमिंग और चकमा देने की ताकत : इसमें एडवांस्ड सेंसर जैसे इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (INS) और जीपीएस हैं, जो इसे सटीक रास्ता दिखाते हैं। साथ ही, इसमें जैमिंग तकनीक है, जो दुश्मन के रडार और मिसाइल डिफेंस को भटका देती है। ये मिसाइल उड़ान के दौरान रास्ता बदल सकती है, जिससे इसे पकड़ना और मुश्किल हो जाता है।

दो चरणों वाला इंजन : ब्रह्मोस में दो चरणों का प्रणोदन सिस्टम है। पहला चरण सॉलिड प्रणोदक बूस्टर है, जो इसे शुरुआती तेज रफ्तार देता है। दूसरा चरण लिक्विड रैमजेट इंजन है, जो इसे लगातार सुपरसोनिक स्पीड देता है। ये इंजन इसे लंबी दूरी तक तेज उड़ान भरने में मदद करता है।

भारी विस्फोटक ले जाने की क्षमता : ये मिसाइल 200-300 किलो का वॉरहेड ले जा सकती है। इतना भारी विस्फोटक किलेबंद ठिकानों, जैसे बंकर या सैन्य इमारतों को भी आसानी से नष्ट कर सकता है। इसकी तेज रफ्तार की वजह से विस्फोट का असर और बढ़ जाता है।

फोटो साभार: AI Dall-E

हर जरूरत के लिए तैयार रहता है ब्रह्मोस

ब्रह्मोस के कई वेरिएंट हैं, जो अलग-अलग कामों के लिए बनाए गए हैं। आइए, इन्हें समझते हैं:

जहाज से छोड़ा जाने वाला वर्जन : भारतीय नौसेना के युद्धपोत, जैसे INS राजपूत, इस वर्जन का इस्तेमाल करते हैं। ये समुद्र और जमीन दोनों पर हमला कर सकता है। इसे एक बार में 8 मिसाइलों के सैल्वो (समूह) में छोड़ा जा सकता है, जो दुश्मन के जहाजों या ठिकानों को तबाह कर देता है।

जमीन से छोड़ा जाने वाले वर्जन: भारतीय सेना के पास 4-6 मोबाइल लॉन्चर वाले ब्रह्मोस कॉम्प्लेक्स हैं। ये तीन तरह के कॉन्फिगरेशन में काम करते हैं-

  • ब्लॉक I: सटीक हमले के लिए।
  • ब्लॉक II: सुपरसोनिक डाइव के साथ टारगेट चुनने की क्षमता।
  • ब्लॉक III: पहाड़ी इलाकों में हमले के लिए।

ये लॉन्चर न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल और केमिकल (NBC) हमलों से बचाने वाले एयर-कंडीशंड कम्पार्टमेंट के साथ आते हैं।

हवा से छोड़ा जाने वाला वर्जन: सुखोई-30 MKI लड़ाकू विमान से छोड़ा जाता है। 2017 में बंगाल की खाड़ी में इसका पहला टेस्ट हुआ था। ये वर्जन लंबी दूरी से हमला करने में सक्षम है।

पनडुब्बी से छोड़ा जाने वाला वर्जन : 2013 में विशाखापट्टनम तट से इसका टेस्ट हुआ। ये 50 मीटर गहराई से छोड़ा जा सकता है, जो इसे स्टील्थ अटैक के लिए आदर्श बनाता है।

ब्रह्मोस-NG (नेक्स्ट जेनरेशन) : ये छोटा, हल्का और ज्यादा स्टील्थ वाला वर्जन है, जो राफेल और नौसैनिक जरूरतों के लिए बन रहा है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक काउंटरमेजर्स होंगे, जो इसे और खतरनाक बनाएँगे।

हाइपरसोनिक ब्रह्मोस-II : ये भविष्य का वर्जन है, जो मैक 8 की रफ्तार और 1500 किमी रेंज के साथ आएगा। ये दुनिया की सबसे तेज मिसाइलों में से एक होगी।

ब्रह्मोस के एक्सपोर्ट पर दुनिया की नजर

मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) के नियमों के कारण, भारत एक्सपोर्ट के लिए 290 किमी रेंज वाला वर्जन देता है, जो खास तौर पर जहाजों को निशाना बनाने (एंटी-शिप) के लिए है। भारत अपने लिए 300 से 450 किमी और भविष्य में 800 किमी रेंज वाले वर्जन रखता है। चूँकि ये भारत-रूस का जॉइंट वेंचर है, इसलिए एक्सपोर्ट के लिए रूस की मंजूरी भी जरूरी है।

फिलीपींस ने ब्रह्मोस खरीदने का सौदा किया है। इसके अलावा वियतनाम, थाईलैंड, सिंगापुर, ब्रुनेई, ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना, वेनेजुएला, मिस्र, सऊदी अरब, यूएई, कतर और ओमान जैसे देशों ने इसमें रुचि दिखाई है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद इन देशों का भरोसा और बढ़ गया, क्योंकि इसने असल जंग में अपनी ताकत साबित की।

भविष्य के लिए ब्रह्मोस को और ताकतवर बना रहा है भारत

भारत का ब्रह्मोस को लेकर बड़ा और महत्वाकांक्षी प्लान है। लखनऊ में नया प्लांट मास प्रोडक्शन के लिए बनाया गया है, ताकि भारत अपनी और वैश्विक मांग को पूरा कर सके। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ये प्लांट न सिर्फ रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाएगा, बल्कि उत्तर प्रदेश में रोजगार और उद्योग को भी बढ़ावा देगा। वहाँ की बेहतर कानून-व्यवस्था और इन्फ्रास्ट्रक्चर (एक्सप्रेसवे, एयरपोर्ट, मेट्रो) की वजह से निवेश बढ़ रहा है।

भारत के कुछ खास प्लान

  • 800 किमी रेंज वाला वर्जन: एक एक्सटेंडेड-रेंज वर्जन टेस्टिंग में है, जो भारत की रणनीतिक ताकत को और बढ़ाएगा।
  • पनडुब्बी वर्जन का टेस्ट: P75I प्रोग्राम के तहत पनडुब्बियों से ब्रह्मोस को और बेहतर किया जाएगा। जल्द ही इसका टेस्ट होगा।
  • हल्का और छोटा वर्जन: राफेल और अन्य लड़ाकू विमानों के लिए ब्रह्मोस-NG बन रहा है, जो छोटा, हल्का और ज्यादा स्टील्थ होगा।
  • हाइपरसोनिक ब्रह्मोस-II : मैक 8 की रफ्तार और 1500 किमी रेंज वाला ये वर्जन भविष्य में गेम-चेंजर होगा।
  • एक्सपोर्ट बढ़ाना : भारत ब्रह्मोस को बड़े पैमाने पर एक्सपोर्ट करने की योजना बना रहा है। फिलीपींस के बाद वियतनाम और अन्य देशों से बातचीत चल रही है।

लखनऊ प्लांट भारत की आत्मनिर्भरता की नई मिसाल

लखनऊ-कानपुर हाईवे पर बना ब्रह्मोस एयरोस्पेस इंटीग्रेशन एंड टेस्टिंग फैसिलिटी भारत की आत्मनिर्भरता का बड़ा कदम है। ये प्लांट बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन के लिए बनाया गया है, ताकि भारत न सिर्फ अपनी जरूरतें पूरी करे, बल्कि दुनिया की माँग को भी पूरा कर सके। राजनाथ सिंह ने कहा कि ये सुविधा उत्तर प्रदेश में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देगी और हजारों नौकरियाँ पैदा करेगी। भारत का प्लान है कि सबसे एडवांस्ड वर्जन अपने पास रखे और कम रेंज वाले वर्जन एक्सपोर्ट करे। लेकिन ये कम रेंज वाले वर्जन भी दुनिया के ज्यादातर मिसाइल सिस्टम से कहीं ज्यादा ताकतवर हैं।

दुनिया क्यों चाहती है ब्रह्मोस?

ब्रह्मोस की मैक 3 की रफ्तार और 1-2 मीटर की सटीकता इसे बेजोड़ बनाती है। ये दुश्मन के लिए बड़ा खतरा है। ब्रह्मोस को हर प्लेटफॉर्म जमीन, समुद्र, हवा और पनडुब्बी से छोड़ा जा सकता है, जो इसे हर तरह की जंग के लिए उपयोगी बनाता है। स्टील्थ डिजाइन, कम रडार सिग्नेचर और चकमा देने की क्षमता इसे दुश्मन के डिफेंस सिस्टम से बचाती है। ये मिसाइल न सिर्फ पारंपरिक जंग के लिए है, बल्कि परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता इसे रणनीतिक तौर पर अहम बनाती है।

ब्रह्मोस मिसाइल भारत की सैन्य ताकत और तकनीकी प्रगति का एक चमकता सितारा है। ऑपरेशन सिंदूर में इसकी सफलता ने दुनिया को दिखा दिया कि ये कितना घातक और भरोसेमंद हथियार है। लखनऊ का नया प्लांट और भारत का एक्सपोर्ट प्लान इसे वैश्विक रक्षा बाजार में और मजबूत करेगा। भविष्य में हाइपरसोनिक और एक्सटेंडेड-रेंज वर्जन के साथ ब्रह्मोस भारत को और ताकतवर बनाएगा। ये न सिर्फ भारत की रक्षा को मजबूत करता है, बल्कि दुनिया में भारत का कद भी बढ़ाता है।

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