दिल्ली हाई कोर्ट ने साल 2020 के हिंदू विरोधी दंगों के मामले में उमर खालिद – शरजील इमाम समेत 9 आरोपितों की जमानत याचिका खारिज कर दी। इनमें एक नाम गुलफिशा फातिमा का भी है, जिसे गुल या गुलफिशा खातून के नाम से भी जाना जाता है। इस मामले में गुलफिशा फातिमा की तरफ से वकीलों ने जमानत के लिए पूरा जोर लगा दिया, लेकिन हाई कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पाया कि गुलफिशा फातिमा एक ऐसे गिरोह का हिस्सा थी और मुख्य षड़यंत्रकारी भी, जो शासकीय व्यवस्था को ठप कर अव्यवस्था और हिंसा फैलाने में जुटा था। दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले की कॉपी ऑपइंडिया के पास मौजूद है, जिसके आधार पर गुलफिशा फातिमा के सारे कारनामों को आपके सामने रखा जा रहा है।
दिल्ली 2020 के हिंदू विरोधी दंगों में गुलफिशा फातिमा मुख्य आरोपितों में से एक है। जिस केस में उसकी जमानत याचिका खारिज हुई, उसका FIR नंबर 59/2020 है। ये केस मार्च 2020 में दिल्ली क्राइम ब्रांच में दर्ज हुआ था। ये मामला फरवरी 2020 का है, जब दिल्ली में CAA (सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट) और NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) के खिलाफ प्रोटेस्ट चल रहे थे। प्रॉसिक्यूशन (सरकार की तरफ से) का कहना है कि ये दंगे एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे, जिसमें कई लोग शामिल थे और गुलफिशा भी उनमें से एक हैं।
कौन है गुलफिशा फातिमा, जो महिलाओं-बच्चों को बना रही थी हिंसा का हथियार
गुलफिशा फातिमा (उर्फ गुल उर्फ गुलफिशा खातून) दिल्ली के सीलमपुर इलाके की रहने वाली है। वो 26 साल की थी, जब उसे गिरफ्तार किया गया। पुलिस का आरोप है कि वो दंगों की साजिश में सक्रिय थी। वो पिंजरा तोड़ ग्रुप से जुड़ी हुई बताई जाती हैं, जो महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करता है। पुलिस कहती है कि गुलफिशा ने प्रोटेस्ट साइट्स को मैनेज किया, मीटिंग्स में हिस्सा लिया और हिंसा भड़काने में मदद की। उसे अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया गया और तब से वो जेल में हैं – अब 5 साल हो चुके हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 सितंबर 2025 को उनके बेल की अपील खारिज कर दी। ये जजमेंट (CRL.A. 211/2022) पेज 120 से शुरू होता है, जहाँ कोर्ट ने गुलफिशा के रोल पर चर्चा की।

प्रॉसिक्यूशन ने क्या कहा और कोर्ट ने क्या देखा
दिल्ली हाई कोर्ट ने गुलफिशा के केस पर पेज 120 से 130 तक चर्चा की। प्रॉसिक्यूशन का कहना है कि गुलफिशा साजिश का एक्टिव पार्ट थीं। उन्होंने सीलमपुर-जाफराबाद में प्रोटेस्ट साइट्स को मैनेज किया, जहाँ उनका घर पास में है। 15 जनवरी 2020 को उन्होंने मदीना मस्जिद में 24×7 प्रोटेस्ट शुरू किया। उसके साथ DPSG (दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप) की मेंबर नताशा नरवाल और देवांगना कलिता भी थी। इस दौरान गुलफिशा ने फ्रूट मार्केट, गली अखाड़े वाली जैसी जगहों पर और प्रोटेस्ट साइट्स बनाईं।
सरकारी वकील ने बताया कि गुलफिशा पिंजरा तोड़ की मेंबर हैं और लोकल लेवल पर लोगों को मोबिलाइज किया। पिंजरा तोड़ का ऑफिस E-1/13, सीलमपुर में था, जहाँ मीटिंग्स होती थीं। गुलफिशा ने ‘वारियर्स’ (26 दिसंबर 2019) और ‘औरतों का इंकलाब’ व्हाट्सऐप ग्रुप बनाए, जहाँ प्रोटेस्ट की प्लानिंग होती थी। 23 जनवरी 2020 को पिंजरा तोड़ ऑफिस में मीटिंग हुई, जहाँ उमर खालिद ने लाल मिर्च पाउडर, एसिड, बोतलें, डंडे जमा करने के निर्देश दिए और गुलफिशा ने वो इकट्ठा किए।
16-17 फरवरी 2020 की रात चाँद बाग में एक और मीटिंग हुई। यहाँ गुलफिशा अथर खान, शादाब अहमद, नताशा, देवांगना और दूसरे के साथ थी। प्रॉसिक्यूशन ने कोर्ट को बताया कि यहाँ चक्का जाम का प्लान बना और अमेरिकी प्रेसिडेंट की विजिट के दौरान हिंसा फैलाने की साजिश रची गई।
गुलफिशा ने कोड वर्ड्स इस्तेमाल किए – ‘कल ईद है’ मतलब रोड ब्लॉक करो, ‘आज चाँद रात है’ मतलब ब्लॉकेज का दिन। गवाह ब्रावो ने कोर्ट में कहा कि मीटिंग में हिंसा भड़काने के तरीके पर चर्चा हुई और गुलफिशा ने इसमें एक्टिव रोल निभाया। कोर्ट ने इन बयानों को प्राइमा फेसी सही माना।

प्रॉसिक्यूशन ने कहा कि गुलफिशा ने स्पीच दीं और स्पीकर्स चुने। 22 फरवरी 2020 को जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे रोड ब्लॉक किया और महिलाओं को पुलिस पर हमला करने के लिए उकसाया, जिसके लिए FIR 48/2020 दर्ज हुई। 23 फरवरी को 300 महिलाओं को मोबिलाइज किया और लाल मिर्च, पत्थर, डंडों से पुलिस पर हमला करवाया। साथ ही ताहिर हुसैन से दंगों के लिए फंड लिए गए।
दिल्ली हाई कोर्ट (जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच) ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन के आरोप प्राइमा फेसी (पहली नजर में) सही लगते हैं। कोर्ट ने गवाहों के बयानों (बेटा, गामा, आर्गन, जूपिटर, इको, स्मिथ, ब्रावो, जोनी, हेलियम, सैटर्न, डेल्टा, सिएरा) को देखा, जो गुलफिशा के रोल को सपोर्ट करते हैं।
कोर्ट ने कहा, “हमने साजिश पर पहले ही चर्चा की है… गुलफिशा के खिलाफ आरोपों को देखते हुए बेल नहीं दी जा सकती।”

साजिश में पैसों का भी रोल था। कोर्ट के मुताबिक, गुलफिशा ने ताहिर हुसैन से फंड्स लिए, जो दंगों में इस्तेमाल हुए। गवाह सैटर्न ने कहा कि ताहिर हुसैन सीलमपुर प्रोटेस्ट साइट पर आया और गुलफिशा को नोटों का बंडल दिया। ये पैसा अवैध काम के लिए था। कोर्ट ने ये आरोप प्राइमा फेसी सही पाया।

गुलफिशा ने लोकल लेवल पर मॉबलाइजेशन किया, महिलाओं को ट्रेन किया और साजिश को अमल में लाया। कोर्ट कहता है कि ये सब एक बड़ी प्लानिंग का हिस्सा था, जो दिसंबर 2019 से शुरू हुई थी – MSJ, DPSG, JCC, JACT, SOJ जैसे ग्रुप्स बनाए गए, 24×7 प्रोटेस्ट साइट्स सेटअप किए गए। गुलफिशा इन सबकी लोकल मैनेजर थी।
कोर्ट ने पैरिटी (दूसरों से तुलना) को खारिज किया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि नताशा और देवांगना को बेल प्रेसिडेंट नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने देखा कि गुलफिशा का रोल गंभीर है – प्रोटेस्ट मैनेजमेंट, मीटिंग्स, फंडिंग। उन्होंने UAPA की सेक्शन 43D(5) का बार लगाया। यहाँ दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही माना और जमानत याचिका खारिज कर दी।
गौरतलब है कि दिल्ली में फरवरी 2020 में हिंदू विरोधी दंगे भड़के थे। दंगों में 54 लोग मारे गए। कोर्ट के मुताबिक, ये सब CAA और NRC के खिलाफ प्रोटेस्ट के नाम पर एक बड़ी साजिश का नतीजा था। इस साजिश की मुख्य किरदारों में उमर खालिद, शरजील इमाम के साथ गुलफिशा फातिमा भी थी, जिसे कोर्ट ने गुलफिशा खातून के नाम से भी लिखा है। ट्रायल कोर्ट ने उसकी जमानत खारिज की और हाईकोर्ट ने भी 2 सितंबर 2025 को अपील ठुकरा दी।