भारत, चीन और रूस के राष्ट्राध्यक्ष जब चीन में एक साथ आए, तो इसका सीधा असर अमेरिका पर देखने को मिला। चीन में चल रहे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई गर्मजोशी भरी मुलाकात से अमेरिका की चिंता बढ़ गई है।
इस दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% का भारी टैरिफ लगाने और उनके सलाहकारों के सख्त बयानों के बावजूद, भारत में अमेरिकी दूतावास का लहजा एकदम बदल गया है। अमेरिकी दूतावास ने तुरंत सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया, जिसमें भारत के साथ अपनी दोस्ती और साझेदारी की तारीफ कर कहा कि भारत-अमेरिका की दोस्ती 21वीं सदी की ‘परिभाषित साझेदारी’ है।
अमेरिका के लहजे में बदलाव की वजह
भारत, चीन और रूस के बीच बढ़ती नजदीकी ने अमेरिका पर दबाव बढ़ा दिया है। SCO सम्मेलन में मोदी, जिनपिंग और पुतिन का एक साथ आना और खासकर प्रधानमंत्री मोदी का रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ एक ही कार में बैठकर मीटिंग स्थल तक जाना, ये सब अमेरिका के लिए एक बड़ा संकेत है। अब अमेरिका को यह अहसास हो गया है कि अगर उसे एशिया में अपने हितों की रक्षा करनी है, तो भारत के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने ही होंगे।
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में भारत पर कई तीखे बयान दिए थे, जिसमें रूस से तेल खरीदने को लेकर भी आलोचना की गई थी। लेकिन SCO सम्मेलन में जो तस्वीरें और संदेश सामने आए हैं, उसने अमेरिकी सरकार को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। अब वे भारत के साथ अपने रिश्तों को ’21वीं सदी की निर्णायक साझेदारी’ कह रहे हैं, जो पहले के बयानों से एकदम अलग है।
अमेरिकी दूतावास का नया रवैया
चीन में हो रहे सम्मेलन के बीच, भारत में अमेरिकी दूतावास ने एक बेहद खास पोस्ट किया। इस पोस्ट में उन्होंने भारत और अमेरिका की दोस्ती को ’21वीं सदी का एक निर्णायक रिश्ता’ बताया। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की साझेदारी लगातार नई ऊँचाइयों को छू रही है और इसकी असली वजह दोनों देशों के लोगों के बीच की दोस्ती है।
The partnership between the United States and India continues to reach new heights — a defining relationship of the 21st century. This month, we’re spotlighting the people, progress, and possibilities driving us forward. From innovation and entrepreneurship to defense and… pic.twitter.com/tjd1tgxNXi
— U.S. Embassy India (@USAndIndia) September 1, 2025
इस पोस्ट में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो का भी एक बयान था, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के लोगों के बीच की गहरी दोस्ती ही उनके संबंधों का आधार है। उन्होंने यह भी माना कि यही दोस्ती उन्हें आर्थिक संबंधों की अपार संभावनाओं को पूरा करने के लिए प्रेरित करती है। यह बयान दिखाता है कि अमेरिका अब भारत के साथ रिश्तों को सिर्फ सरकार के स्तर पर नहीं, बल्कि लोगों के बीच की दोस्ती के नजरिए से भी देख रहा है।
चीन और रूस का कड़ा रुख
SCO सम्मेलन में चीन और रूस ने भी अपनी बात खुलकर रखी। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सीधे तौर पर अमेरिका का नाम लिए बिना ‘चौधराहट’, ‘शीत युद्ध की मानसिकता’ और ‘धमकाने वाली प्रथाओं’ का विरोध किया। उन्होंने दुनिया को एक समान और बहुध्रुवीय बनाने की वकालत की।
वहीं, रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी शी जिनपिंग की बातों का समर्थन किया और पश्चिमी देशों के गठबंधनों के विकल्प के तौर पर एशिया और यूरोप में एक नई सुरक्षा प्रणाली बनाने का आह्वान किया। इन बयानों ने यह साफ कर दिया कि चीन और रूस मिलकर पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के प्रभाव को कम करना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी का साफ संदेश
प्रधानमंत्री मोदी ने भी SCO के मंच से दुनिया को एक साफ संदेश दिया। उन्होंने कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ की उम्मीदों को पुराने तौर-तरीकों में बांधकर रखना गलत है। उन्होंने कहा, “नई पीढ़ी के सपनों को हम पुराने जमाने की ब्लैक-एंड-व्हाइट स्क्रीन पर नहीं देख सकते, इसके लिए स्क्रीन बदलनी होगी।”
पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में बदलाव लाने की भी माँग की और कहा कि इसकी 80वीं वर्षगांठ पर इस काम की शुरुआत की जा सकती है। प्रधानमंत्री का यह बयान सीधे तौर पर उन वैश्विक संगठनों और ढाँचों पर सवाल उठा रहा है, जिन पर अमेरिका और पश्चिमी देशों का दबदबा है।
कुल मिलाकर, SCO सम्मेलन ने भारत के लिए एक मजबूत स्थिति बनाई है, जिसने अमेरिका को अपनी विदेश नीति पर दोबारा सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। अमेरिकी दूतावास का बदलता रवैया इसी सोच का नतीजा है।