इमरजेंसी इंदिरा गाँधी

आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) की सासंद और पूर्व ‘पत्रकार’ सागरिका घोष ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट साझा की। इसमें उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को की शान में कसीदे पढ़ने शुरू किए और आपातकाल के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को ही जिम्मेदार ठहरा दिया।

मंगलवार (25 जून 2025) को सागरिका ने एक्स पर साझा पोस्ट में कहा कि इंदिरा गाँधी ने 1975 में आपातकाल लागू किया क्योंकि RSS भारत को आराजकता की ओर में धकेल रहा था।

सागरिका यहीं नहीं रुकीं। इसके बाद उन्होंने इंदिरा की शान में कसीदों के चिट्ठे पढ़ने शुरू कर दिए। उन्होंने लिखा कि इंदिरा ने इस्तीफा दिया, चुनाव करवाए, जनता के सवालों के जवाब दिए।

अपनी इस पोस्ट में सागरिका ने 1978 में इंदिरा गांधी की प्रेस से बातचीत करते हुए वीडियो साझा की और इसमें भी वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसना नहीं भूली। उन्होंने लिखा कि पीएम मोदी इमरजेंसी की नकल करने में व्यस्त रहते हैं और गाँदी की तरह प्रेस कॉफ्रेंस क्यों नहीं करते।

पोस्ट में लगी इंदिरा गाँधी की वीडियो में वह जनता के समर्थन का दावा करती नजर आ रही हैं। वीडियों में वह कह रही हैं, “राजनीति में मेरा भविष्य जैसा मीडिया ने कहा है बिल्कुल वैसा नहीं है। मुझे हमेशा से ही लोगों का समर्थन मिलता रहा है फिर चाहे स्थिति कैसे भी हो या कैसी भी बनाने की कोशिश की गई हो। हारने के तुरंत बाद भी मैं जहाँ भी गई वहाँ पर मुझे लोगों का समर्थन मिला। भले ही आप लोगों ने मेरी कैसी भी छवि बनाने की कोशिश की हो।”

आगे के सवाल में इंदिरा ने कहा, “देखिए मैंने सेंसरशिप लगाया और मैं इस बात को मानती हूँ कि मैंने इसे लगाया है। ये लोग कह रहे हैं कि इसमें कई बंधन थे जो कि पूरी तरह से अलग बात है।” वीडियो के अंत में इंदिरा गाँधी को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि वह नहीं चाही कि लोगों को ‘पीड़ित’ बनाया जाए।

इस प्रोपेगेंडा वीडियो को उपयोग करके सागरिका घोष ने कॉन्ग्रेस नेता और पूर्व पीएम इंदिरा गाँधी के लिए ये बताने की कोशिश की कि वह लोगों के लिए कितनी दयालु थीं और RSS ने ही इंदिरा गाँधी को इमरजेंसी लागू करने के लिए ‘उकसाया’।

आपातकाल के पीछे की सच्चाई क्या है?

आपातकाल को 25 जून 1975 को घोषित किया गया। ये 21 मार्च 1977 तक चला था। इस दौर को स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय माना जाता है। इसे लागू करने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ही थीं। इस दौरान मौलिक अधिकारों के साथ प्रेस की स्वतंत्रता को भी खत्म कर दिया गया था। इसी समय, विपक्ष के नेताओं को जेल भेजा गया और लोगों के अधिकारों का हनन बुरी तरह से किया गया।

इस पूरे समय का असल कारण राजनीतिक उथल-पुथल था, न कि RSS की ओर से की गई कोई काल्पनिक ‘अराजकता’। 1971 की जंग में जीत के बाद बांग्लादेश के उभरने के साथ ही इंदिरा गाँधी की प्रतिष्ठा को काफी हद तक बढ़ा दिया था। इसके बावजूद कॉन्ग्रेस सरकार की सत्ता के दौरान बढ़ती मँहगाई, पूँजीवाद और बढ़ते भ्रष्टाचार के चलते 1974 तक जनता में अविश्वास की लहर साफ देखने के मिल रही थी।

इसके बाद 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा गाँधी को 1971 के लोकसभा चुनाव में धोखाधड़ी करने के आरोप को सही ठहराते हुए उनकी सीट को अमान्य घोषित कर दिया।

इसे लेकर विपक्ष के बड़े नेताओं ने इंदिरा के इस्तीफे की माँग को लेकर देशव्यापी आंदोलन किया। कॉन्ग्रेस सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए। इसी के बाद इंदिरा गाँधी ने बेटे संजय गाँधी और सहयोगी सिद्धार्थ शंकर रे की सलाह पर संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल घोषित करने का निर्देश दिया था।

इसके बाद 25 और 26 जून की आधी रात को जयप्रकाश नारायण को आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (MISA) के तहत गिरफ्तार किया। आपातकाल के इन 21 महीनों के दौरान इंदिरा गाँधी का अलग रुख नजर आया। भारतीय प्रेस की आजादी पर अंकुश लगाया गया। 1 लाख से भी अधिक लोगों की मानमाने तौर पर गिरफ्तारियाँ की गईं।

पुलिस हिरासत में लोगों को प्रताड़ित किया गया, यातनाएं दी गईं। साथ ही गरीबों और कमजोर वर्गों के लगभग 80 से 120 लाख लोगों की जबरन नसबंदी करने का अभियान चलाया गया। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत की लोकतांत्रिक छवि भी खराब हुई। इंदिरा की सरकार में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर कई रिपोर्ट्स छापी गई।

अब इसी आपातकाल को 50 वर्ष बाद सागरिका घोष जैसे लोग नए तरीके से लोगों के बीच परोसने की कोशिश कर रहे हैं ताकि RSS को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा सकें और कॉन्ग्रेस की बची कुची छवि को सुधार सकें।



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