अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जो इस समय ईरान पर एयरस्ट्राइक करके चर्चा में हैं, वो एक दिन पहले तक नोबेल शांति पुरस्कार की चाह रखने के लिए सुर्खियों में बने हुए थे।
उन्होंने अपनी सोशल मीडिया साइट ट्रुथ सोशल पर एक लंबी पोस्ट लिखी थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि रवांडा और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) के बीच एक शांति समझौता हुआ है। ट्रम्प ने इसे अफ्रीका के लिए एक महान दिन और दुनिया के लिए भी एक महान दिन बताया।
इस समझौते का श्रेय खुद को देते हुए ट्रम्प ने यह भी कहा कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलनी चाहिए और यह अफसोस जताया कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला।

दिलचस्प बात यह है कि ट्रम्प ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा, भले ही उन्होंने कई अहम काम किए हों। उन्होंने दावा किया कि रवांडा-DRC शांति समझौते के अलावा उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध भी रोका था।
पाकिस्तान एंगल – क्या ट्रम्प ने खुद को नामांकित करवाया?
हाल ही में खबरें आई हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन की योजना बना रहे हैं। रिपोर्टो के मुताबिक, उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान अपने शांति प्रयासों का हवाला देकर यह नामांकन आगे बढ़ाने की कोशिश की।
कहा जा रहा है कि ट्रम्प ने इसके लिए पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से अपनी नजदीकी का इस्तेमाल किया। यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकी हमला हुआ।
जिसकी जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ ने ली। इसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर ‘ऑपरेशन सिंदूर‘ नाम से सैन्य कार्रवाई की। इस कार्रवाई से परेशान होकर पाकिस्तान ने रॉकेट, मिसाइल और ड्रोन दागे, जिन्हें भारत की रक्षा प्रणाली ने नाकाम कर दिया, जिसके बाद ये ऑपरेशन 9 मई को खत्म हुआ।
पाकिस्तान के डीजीएमओ ने 10 मई को भारत के डीजीएमओ को फोन करके युद्ध विराम की माँग की थी। अमेरिका ने इस मामले में हस्तक्षेप करने की कोशिश की, लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि वह किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं चाहता।
वहीं, पाकिस्तान ने अमेरिका पर दबाव डाला कि वह भारत को हमले रोकने के लिए मजबूर करे। पाकिस्तान के अनुरोध पर भारत ने सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति जताई, लेकिन इससे पहले कि कोई औपचारिक घोषणा हो, डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा कर दिया कि उन्होंने ही यह युद्ध रोका है। भारत ने इस दावे को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि यह उसका खुद का निर्णय था और इसमें कोई तीसरा पक्ष शामिल नहीं था।
रिपोर्टों के मुताबिक, ट्रम्प पाकिस्तान के लिए इसलिए नरम रुख अपना रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान उन्होंने उन्हें उनका नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए दिया है। ट्रम्प का पाकिस्तान को लेकर रुख पहले से उतार-चढ़ाव भरा रहा है कभी कड़ा, कभी दोस्ताना।
याद दिला दें की एक समय ट्रम्प पाकिस्तान पर आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप लगाते थे और चाहते थे कि अमेरिका उसकी फंडिंग बंद कर दे। आखिरकार, ओसामा बिन लादेन भी पाकिस्तान में ही तो पकड़ा गया था।
रवांडा-कांगो शांति समझौता – वास्तविक प्रगति या अवसरवाद?
डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी ट्रुथ सोशल पोस्ट में दावा किया कि उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के साथ मिलकर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) और रवांडा के बीच शांति समझौते की व्यवस्था की। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों के प्रतिनिधि जल्द ही वाशिंगटन में समझौते पर दस्तखत करेंगे।
अगर सचाई की बात करें तो यह है कि रवांडा और DRC के बीच यह शांति प्रक्रिया कई सालों से अफ्रीकी संघ और संयुक्त राष्ट्र की मदद से चल रही थी। अमेरिका ने इसमें मदद की, लेकिन वह अकेला नहीं था।
कतर ने भी इस समझौते में अहम भूमिका निभाई और पहले अंगोला ने भी मध्यस्थता की था, जिसने मार्च में खुद को अलग कर लिया। दोनों देशों ने पूर्वी DRC में हिंसा रोकने के लिए एक अनंतिम समझौते पर सहमति जताई है और 27 जून को वाशिंगटन में औपचारिक रूप से दस्तखत होने हैं।
ट्रम्प ने इस पूरी प्रक्रिया का पूरा श्रेय खुद को देने की कोशिश की और नोबेल शांति पुरस्कार न मिलने की फिर से शिकायत की, लेकिन हकीकत यह है कि यह एक साझा कूटनीतिक प्रयास था और पूरी तरह से ट्रम्प को इसका श्रेय देना सही नहीं होगा।
क्या नोबेल के प्रति जुनून ओबामा के नोबेल शांति पुरस्कार से उपजा है?
ट्रंप की नाराज़गी शायद इस वजह से है कि बराक ओबामा को 2009 में नोबेल शांति पुरस्कार मिल गया था, वो भी उनके पहले कार्यकाल के कुछ ही महीनों बाद। जिसको लेकर ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर लिखा, “मैं चाहे कुछ भी कर लूँ, मुझे नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा।”
ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान, सर्बिया-कोसोवो, मिस्र-इथियोपिया और इजरायल-ईरान जैसे कई क्षेत्रों में संघर्ष रोकने का दावा किया। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इन जगहों पर अब भी तनाव जारी है और खासकर मध्य पूर्व में हालात और भी खराब हो रहे हैं।
इससे सवाल उठता है कि क्या ट्रंप की कूटनीति वास्तव में नतीजे लाई है, या वो सिर्फ खुद को श्रेय देने में लगे हुए है, बिना किसी ठोस बदलाव के कुछ लोग उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में देखने लगे हैं जो दिखावा ज्यादा करते हैं, जैसे कि गिल्डरॉय लॉकहार्ट , जो नाम कमाने के लिए दूसरों की उपलब्धियों का श्रेय लेता है।
नोबेल बलपूर्वक?
नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन आमतौर पर किसी योग्य व्यक्ति या संगठन द्वारा किया जाता है, लेकिन ट्रम्प का पाकिस्तान के जरिए नामांकन पाने की कोशिश उनकी निराशा को दिखाता है। जैसे अब ये शांति के लिए नहीं, बल्कि अपनी छवि और प्रतिष्ठा के लिए है।
ट्रम्प चाहते हैं कि लोग उन्हें नोबेल के लायक मानें, भले ही उन्होंने ऐसा कोई ठोस काम न किया हो। खुद ट्रम्प ने कहा, “लोग जानते हैं और यही मेरे लिए मायने रखता है।” लेकिन हकीकत ये है कि इतिहास शायद उन्हें इतनी आसानी से श्रेय नहीं देगा। दुनिया के कई हिस्सों में संघर्ष अब भी जारी हैं और ट्रम्प की शांति उपलब्धियाँ अब एक वास्तविक रिकॉर्ड की जगह सिर्फ दावों की लिस्ट लगती हैं।
आज ये साफ हो गया है कि ट्रम्प नोबेल शांति पुरस्कार पाना चाहते हैं जिसके लिए वो पूरी कोशिश कर रहे है। वो अलग-अलग देशों के संघर्ष गिनाने लगे हैं, यह कहते हुए कि उन्होंने वहाँ कुछ ऐसा किया है जिससे उन्हें यह पुरस्कार मिलना चाहिए।
उन्हें कल तक इससे फर्क नहीं पड़ रहा था कि मध्य पूर्व में हालात और बिगड़ रहे हैं या इजरायल पर ईरानी मिसाइलें गिर रही हैं। उनके लिए बस इतना काफी था कि ओबामा को मिला था, तो उन्हें उससे ज्यादा मिलना चाहिए।
नोट- ये रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में अनुराग द्वारा लिखी गई है। इसका अनुवाद विवेकानंद मिश्रा ने किया है।