अँग्रेजी पर भिड़े शाह-राहुल

बीजेपी सरकार में हिन्दी की जरूरत पर जोर दिया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में तीन भाषाओं को जानने की बात कही गई है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे गैरहिन्दी भाषी राज्यों में मातृभाषा, अँग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी या दूसरी भाषा सीखने का अवसर सरकार दे रही है। इससे हिन्दी भाषा को जानने, समझने का गैरहिन्दी क्षेत्रों में भी लोगों के पास अवसर है।

लेकिन कॉन्ग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी का अंग्रेजी राग खत्म नहीं हो रहा है बल्कि वो जनता को ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि अंग्रेजी को सरकार इसलिए प्रोत्साहन नहीं देना चाहती क्योंकि वह गरीबों को ‘ऊँचे ओहदों’ से दूर रखना चाहती है।

दरअसल 70 साल तक देश पर राज करने वाली कॉन्ग्रेस ने अंग्रेजों से मिली इंग्लिश भाषा को ही तरजीह दी। आज भी कोर्ट से लेकर प्रशासनिक कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। हर जगह अंग्रेजी का बोलबाला रहा है। कॉन्ग्रेस इस व्यवस्था को बनाए रखना चाहती है और हिन्दी को दोयम दर्जे की भाषा साबित करना चाहती है। राहुल गाँधी उसी मनोदशा को आगे बढ़ाते हुए नजर आ रहे हैं।

उन्होने ट्वीट कर गरीबों को अंग्रेजी सीखने की नसीहत दी है और उनकी ‘गरीबी’ के लिए भी बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उन्होने कहा कि “अंग्रेजी एक हथियार है, अंग्रेजी सीख कर आप अमेरिका, जापान और कहीँ भी जा सकते हैं और अंग्रेजी के खिलाफ वे लोग हैं जो नहीं चाहते कि गरीबों को करोड़ों रुपए की नौकरी मिले”

अंग्रेजी का ये मामला गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान के बाद सुर्खियों में आया है जिसमें उन्होने कहा था कि भारतीय भाषाएँ देश की आत्मा हैं और ये हमारी सांस्कृतिक पहचान भी बताती हैं। भारत का इतिहास, सभ्यता, संस्कृति और धर्म को समझने के लिए विदेशी भाषाओं की नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं को जानना जरूरी है। उन्होंने कहा था, “अधूरी विदेशी भाषाएँ कभी भी भारत की पूरी पहचान नहीं बता सकतीं”

दुनिया के विकसित देश चीन, जापान, जर्मनी, फ्राँस, जहाँ अंग्रेजी नहीं बल्कि उनकी अपनी मातृभाषा में ही बच्चों को पढ़ाया लिखाया जाता है। सरकारी काम भी यहाँ मातृभाषा में ही होता है। ऐसे में बचपन से लेकर जॉब करने तक में व्यक्ति को भाषा संबंधी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता। ये देश अपनी भाषा के दम पर तरक्की की ऊँचाईयों को छू रहे हैं। यूके और यूएसए दोनों में अंग्रेजी बोली जाती है लेकिन ब्रिटिश और अमेरिकन इंग्लिश में भी काफी फर्क है।

ऐसे में अपनी भाषा की समृद्धता, जमीन से जुड़ी पहचान और भाषाई विविधता को मानते हुए मोदी सरकार ने तीन भाषाओं को जानने की जो नीति बनाई है, वह भारत के विकास में अहम भूमिका निभा सकती है।



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