बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कई ऐतिहासिक नजारे देखने को मिले। जहाँ एक ओर मतदान के पहले चरण में पहली बार  64.66% मतदान हुआ। यह पिछले चुनावों की तुलना में काफी अधिक है और ये अब तक का रिकॉर्ड है।

बिहार में मतदाताओं की संख्या 7.42 करोड़ है। इनमें पुरुष मतदाता 3.92 करोड़ और महिला मतदाता 3.50 करोड़ हैं। पहले चरण में कुल वोटर्स की संख्या 3.75 करोड़ से अधिक थी। अब दूसरे चरण में अधिकतम वोटर्स के मतदान बूथ तक पहुँचने की बारी है।

बिहार चुनाव के पहले चरण में कई ऐसे बूथ रहे जो कभी नक्सल प्रभावित हुआ करते थे, वहाँ दशकों बाद मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग कर वोट दिया।

बिहार के मुंगेर जिले में भीमबाँध समेत 7 मतदान केंद्रों में 20 साल बाद लोगों ने वोट डाला। इन जगहों पर 5 जनवरी 2005 को नक्सली हमले हुए थे। भीमबांध इलाके के पास बारूदी सुरंग विस्फोट कर मुंगेर के SP समेत 7 पुलिसकर्मियों को मार दिया गया था। इसके बाद उन इलाकों से मतदान केंद्रों को हटा दिया गया था।

भीमबाँध तारापुर विधानसभा के तहत आता है। इसके बूथ संख्या 310 पर 170 महिलाएँ और 204 पुरुषों समेत 374 मतदाता हैं। 20 वर्ष के बाद मतदान केंद्रों के लगने पर वहाँ केंद्रीय अर्धसैनिक बल को तैनात कर लगातार पेट्रोलिंग की जा रही है।

ऐसा नहीं है कि भीमबाँध पर मतदान नहीं हो रहे थे बल्कि नक्सली हमले के बाद वहाँ के बूथ को लगभग 20 किलोमीटर दूर लगा दिया गया था। इसके कारण गाँव के लोगों को मतदान केंद्रों तक पहुँचना मुश्किल हो गया था। कम लोग ही बूथ तक पहुँच पाते थे।

इसी तरह बिहार के कछुआ और बासकुंड गाँव के लोगों ने 16 साल बाद मतदान किया। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण पहले मतदान संभव नहीं था। लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र के चार गावों में मतदान बूथ बनाए गए।

लखीसराय जिले के 56 मतदान केंद्र नक्सल प्रभावित है। चानन प्रखंड के दो मतदान केंद्र संख्या 407 सामुदायिक भवन कछुआ में 363 मतदाता है। मतदान केंद्र संख्या 417 बासकुंड-कछुआ में 495 मतदाता हैं। नक्सल प्रभावित इन दोनों इलाकों में पहली बार EVM के जरिए मतदान हुए।

इन दोनों मतदान केंद्रों में वोट डालने के लिए मतदाताओं को 6 से 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। साथ ही इसके लिए लोगों को जंगल और पहाड़ पार कर पैदल जाना पड़ता था।

पिछले लोकसभा चुनाव में 5 माओवाद प्रभावित मतदान केंद्र को बदलकर मैदानी भाग में लाया गया था। नक्सल से मुक्त होने के बाद चुनाव आयोग ने उन 5 मतदान केंद्रों को उनके मूल स्थान पर बहाल किया है।

बिहार चुनाव-2025 के पहले चरण में ही लोकतांत्रिक इतिहास का नया अध्याय लिखा गया, जहाँ दशकों बाद लोग अपने ही गाँव में मतदान कर पाए। दोनों क्षेत्रों में मतदान होना यह दर्शाता है कि नक्सल प्रभाव का खात्मा हो चुका है और लोकतंत्र की बहाली हो रही है।

प्रशासन ने इन क्षेत्रों को नक्सल मुक्त घोषित कर दिया है। जिले के कुल 56 मतदान केंद्र नक्सल ग्रामीणों के लिए यह केवल वोट डालने का अवसर नहीं, बल्कि डर से मुक्ति और लोकतांत्रिक अधिकार की जीत है।

दूसरे चरण में भी बिहार चुनाव बनेगा ऐतिहासिक

प्रथम चरण ही नहीं दूसरे चरण में भी बिहार के कई उन क्षेत्रों में भी मतदान होगा जहाँ पिछले 75 साल में नहीं हुआ। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण यानी 11 नवंबर 2025 में जमुई जिले के 4 गाँवों में पहली बार मतदान होगा।

ये गाँव आजादी के बाद से अब तक (लगभग 77 साल) कभी भी अपने ही गाँव में मतदान नहीं कर पाए। इस बार यहाँ मतदान केंद्र बनाए गए हैं और ग्रामीणों को पहली बार लोकतंत्र का उत्सव अपने गाँव में मनाने का अवसर मिलेगा।

बिहार के दूसरे चरण के मतदान में 18 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। इन्हीं के तहत जमुई के 4 गाँव भी शामिल हैं। बिहार के लोकतांत्रिक इतिहास में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

बिहार में चुनाव के दौरान इतिहास तो बन रहा है लेकिन इसका पूरा श्रेय मोदी सरकार की नक्सल खत्म करने वाले प्रयासों की ओर जाता है। नक्सल खत्म करने के लिए मोदी सरकार ने लगातार कई वर्षों तक काम किया।

इसके बाद जाकर भारत के कई जिले नक्सल के प्रभाव से मुक्त हुए हैं। इसके बाद ही बिहार के पहले चरण में भीमबाँस समेत अन्य जगहों पर कई जगहों बाद मतदान सफल तौर पर शांतिपूर्वक संपन्न हो पाए।

मोदी सरकार में संविधान-डेमोक्रेसी पर खतरा बताने वालों को जवाब देना चाहिए कि ये सारे प्रयास लोकतंत्र बचाने की भावना से नहीं किए गए तो किस मंशा से किए गए होंगे।

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