भारतीय अर्थव्यवस्था गरीबी दर

मोदी सरकार की गरीबी उन्मूलन योजनाओं का असर धरातल पर दिख रहा है। इन योजनाओं ने करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। पीएम आवास योजना से लेकर लखपति दीदी जैसी योजनाओं ने देश में खासकर महिलाओं और बच्चों की गरीबी दूर करने में अहम भूमिका निभाई है। यह जानकारियाँ इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (EPW) की एक रिपोर्ट से सामने आई है।

शनिवार (9 अगस्त 2025) को प्रकाशित जाने-माने अर्थशास्त्री शमिक रवि और मुदित कपूर की रिसर्च से पता चला है कि भारत में 2011-12 से 2023-24 के बीच बच्चों और महिलाओं की गरीबी में काफी कमी आई है।

इस रिसर्च का शीर्षक है: ‘घर के अंदर संसाधनों का बँटवारा और 2011–12 से 2023–24 के बीच बाल और लैंगिक गरीबी में बदलाव’। इसमें बताया गया है कि ज्यादातर गरीबी के आँकलन पूरे घर की औसत खपत के आधार पर किए जाते हैं, जिसमें यह मान लिया जाता है कि घर के सभी सदस्यों के बीच संसाधन बराबर बाँटे जाते हैं। लेकिन यह अध्ययन इस मान्यता को चुनौती देता है।

शोधकर्ताओं ने घरेलू खर्च के उन हिस्सों को देखा जो सीधे किसी व्यक्ति पर होते हैं, जैसे कपड़े, दवा, शिक्षा आदि। ताकि यह समझा जा सके कि बच्चों (0–14 वर्ष), वयस्क महिलाओं और पुरुषों (15–79 वर्ष) को कितना संसाधन वास्तव में मिल रहा है।

इतिहास में हमेशा से यह देखा गया है कि घरेलू संसाधनों के वितरण में पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है और महिलाओं व बच्चों के साथ भेदभाव होता है। EPW में प्रकाशित इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि अगर घर के भीतर संसाधन बराबर नहीं बाँटे जाते, तो एक ही घर में कुछ लोग गरीब हो सकते हैं और कुछ नहीं।

मोदी सरकार की ‘समावेशी और महिला-नेतृत्व विकास’ की नीति को ध्यान में रखते हुए, यह अध्ययन खासतौर पर यह समझने की कोशिश करता है कि घरों में महिलाओं और बच्चों को मिलने वाले संसाधनों में क्या बदलाव आए हैं और इसका गरीबी पर क्या असर पड़ा है।

शोध में भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा कराए गए Household Consumption Expenditure सर्वे (HCES) के 2011-12 और 2023-24 के आँकड़ों का इस्तेमाल किया गया।

रिसर्च में एक उन्नत अर्थमितीय (econometric) मॉडल का उपयोग किया गया, जो Dunbar et al. (2013) और Calvi (2020) जैसे पहले के कामों पर आधारित है। इसमें Engel curves और non-linear regression techniques जैसे सांख्यिकी उपकरणों की मदद से यह आँकलन किया गया कि घर के भीतर किसे कितने संसाधन मिल रहे हैं।

भारत में बच्चों और महिलाओं की गरीबी में बड़ी गिरावट

यह शोध महिलाओं की घरेलू संसाधनों में हिस्सेदारी और उनके सौदेबाजी की ताकत (bargaining power) पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि महिलाओं को मिलने वाले संसाधनों का हिस्सा किन बातों से प्रभावित होता है और समय के साथ इसमें क्या बदलाव आए हैं।

2011–12 में हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के घरों में महिलाओं की हिस्सेदारी कम थी, पर 2023–24 में इन घरों की महिलाओं को ज्यादा हिस्सा मिला, ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को शहरी महिलाओं की तुलना में कम संसाधन मिले, उत्तर, पूरब और दक्षिण भारत की महिलाओं को पश्चिम भारत की महिलाओं की तुलना में कम हिस्सा मिला, लेकिन उत्तर-पूर्व भारत की महिलाओं को ज्यादा हिस्सा मिला।

घर के अंदर संसाधनों के बँटवारे में बदलाव की अहम भूमिका

शोध में यह भी देखा गया कि महिलाओं की उम्र और घर में बच्चों की मौजूदगी से भी संसाधनों का बँटवारा प्रभावित होता है। 2011–12 में अधिकांश उम्र समूहों में महिलाओं को 50% से कम संसाधन मिले (बराबरी की रेखा से नीचे)। सिर्फ शहरी इलाकों में, जिन घरों में बच्चे थे और महिलाओं की औसत उम्र 45-55 साल थी, वहाँ थोड़ी बराबरी या अधिक हिस्सा मिला। वहीं बगैर बच्चों वाले शहरी घरों में 20-30 साल की उम्र की महिलाओं को थोड़ा बेहतर हिस्सा मिला।

कुल मिलाकर, 2011-12 में महिलाओं की बातचीत की ताकत कम थी और संसाधनों का बँटवारा उनके खिलाफ था। 2023–24 में बड़ा बदलाव देखा गया, खासकर उन घरों में जहाँ बच्चे हैं, वहाँ महिलाओं को बराबरी से ज्यादा हिस्सा मिला। ग्रामीण घरों में, 15 से 55 साल की महिलाओं को बराबरी से ज्यादा संसाधन मिले

शहरी घरों में यह फायदा 15 से 65 साल की महिलाओं तक फैला हुआ है। बच्चों की मौजूदगी ने महिलाओं के पक्ष में संसाधन वितरण को प्रभावित किया। यानी जहाँ बच्चे हैं, वहाँ महिलाओं को ज्यादा अहमियत दी गई।

स्पष्ट है कि 2011–12 में महिलाओं को घरेलू संसाधनों में कम हिस्सा मिलता था, लेकिन 2023–24 में तस्वीर बदली है। अब महिलाओं, खासकर जिन घरों में बच्चे हैं, को ज्यादा हिस्सा मिल रहा है।

यह बदलाव समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार और नीति-निर्माण में उनके हितों को प्राथमिकता देने का संकेत देता है। यह भी दर्शाता है कि महिलाएँ अब घरों में अधिक सशक्त भूमिका निभा रही हैं।

पिछले दस सालों में 27 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी से निकले बाहर

यह रिपोर्ट भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गरीबी की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करती है। इसमें तीन मुख्य आँकड़ों को पेश किया गया है:

1. गरीबी दर (Poverty Rate) – यह बताती है कि कुल जनसंख्या में से कितने प्रतिशत लोग गरीब हैं।

2. गरीबी का अंतर (Poverty Gap) – यह मापता है कि गरीब व्यक्ति की औसत खर्च क्षमता गरीबी रेखा से कितनी कम है, यानी गरीबी की तीव्रता।

3. गरीबी से उबरने वाले लोग (Poverty Upliftment) – यह उन लोगों की संख्या बताता है जिन्हें 2011–12 से 2023–24 के बीच गरीबी से बाहर निकाला गया।

रिपोर्ट के अनुसार, यह विश्लेषण रंगराजन गरीबी रेखा (Rangarajan Poverty Line) के आधार पर किया गया है और इसमें यह माना गया है कि हर घर के संसाधन घर के सभी सदस्यों में बराबर बँटे हैं। यह आँकड़े ग्रामीण और शहरी इलाकों के लिए हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में 2023–24 के लिए तैयार किए गए हैं।

मुख्य निष्कर्ष यह है कि पिछले दस सालों में 27 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी से बाहर निकले हैं।

इनमें से 15.6 करोड़ बच्चे और 12.3 करोड़ वयस्क महिलाएँ शामिल हैं। हालाँकि वयस्क पुरुषों की गरीब आबादी में करीब 36 लाख की बढ़ोतरी हुई है, क्योंकि जनसंख्या के मुकाबले गरीबी में कमी की रफ्तार थोड़ी धीमी रही। यह रिपोर्ट गरीबी की स्थिति को समझने और नीति निर्माण के लिए अहम आँकड़े पेश करती है।

2011–12 में पूरे देश में गरीबी थी 29.5%, 2023–24 में घटकर रह गई सिर्फ 4%

EPW की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 2011–12 से 2023–24 के बीच गरीबी दर में बड़ी गिरावट आई है। अगर यह मान लें कि घर के संसाधन सभी सदस्यों में बराबर बाँटे जाते हैं, तो पूरे देश में गरीबी 2011–12 में 29.5% थी, जो 2023–24 में घटकर सिर्फ 4% रह गई।

राज्यों की बात करें तो, बिहार में गरीबी 41.3% से गिरकर 4.4% हो गई। वहीं, पश्चिम बंगाल में 2011–12 में गरीबी 30.4% थी, जो 2023–24 में घटकर 6% हो गई। यानी बंगाल की गरीबी पहले कम थी, लेकिन अब बिहार से थोड़ी ज्यादा रह गई।

उत्तर प्रदेश में भी बड़ी गिरावट आई, जहाँ गरीबी 40% से घटकर 3.5% हो गई। लेकिन जब शोधकर्ताओं ने माना कि घर के संसाधन बराबर नहीं, बल्कि असमान रूप से बाँटे जाते हैं, तो तस्वीर कुछ और ही निकली। ऐसे में 2011–12 में पूरे भारत में गरीबी 34.7% थी, जो 2023–24 में घटकर 10.5% हुई। यानी गिरावट तो आई, लेकिन गरीबी के असली स्तर ज्यादा थे।

इस असमान वितरण के आधार पर देखा गया कि 2011–12 में बच्चों में गरीबी सबसे ज्यादा थी। 58.3%, महिलाओं में 33.3%, और पुरुषों में सबसे कम सिर्फ 15.1%। यह ट्रेंड लगभग सभी राज्यों में दिखा, सिवाय उत्तर-पूर्व भारत के, जहाँ पुरुषों में गरीबी महिलाओं और बच्चों से ज्यादा थी।

2023–24 तक हालात बेहतर हुए। इसके बाद बच्चों में गरीबी घटकर 17.8%, महिलाओं में सिर्फ 2.2%, और पुरुषों में हल्की गिरावट के साथ 13.5% रही। रिपोर्ट बताती है कि घरों में महिलाओं की बार्गेनिंग पावर यानी निर्णय लेने की ताकत बढ़ी। इससे संसाधनों का बँटवारा थोड़ा बराबरी वाला हुआ और महिलाओं–बच्चों को ज्यादा लाभ मिला।

गरीबी उन्मूलन पर अध्ययन: 2011–12 से 2023–24 के बीच महिलाओं और बच्चों की बढ़ी भूमिका

एक हालिया अध्ययन में बताया गया है कि 2011–12 से 2023–24 के बीच भारत में लगभग 27.58 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले। उस वक्त घरों में संसाधनों का असमान बँटवारा माना गया। वहीं अगर संसाधन सभी घर के सदस्यों में समान रूप से बाँटे जाते, तो यह संख्या 30.24 करोड़ तक पहुँच सकती थी।

अध्ययन में मोदी सरकार की कई योजनाओं को महिलाओं के सशक्तिकरण और गरीबी उन्मूलन का श्रेय दिया गया है। जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, मुद्रा योजना (जिसमें 70% लाभार्थी महिलाएँ थीं), लखपति दीदी योजना।

इन योजनाओं ने महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता और संपत्ति में हिस्सेदारी को बढ़ावा दिया। 2011–12 में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को घर में कम संसाधन मिलते थे। लेकिन 2023–24 तक यह स्थिति उलट गई। अब महिलाओं को औसतन पुरुषों से अधिक संसाधन मिलते हैं।

इस बदलाव ने गरीबी कम करने में बड़ा योगदान दिया, खासकर महिलाओं और बच्चों के बीच। 2023–24 में, देश के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में महिलाओं की औसतन गरीबी दर पुरुषों से कम हो गई है, जबकि 2011–12 में यह उल्टा था।

यह बदलाव महिलाओं के सशक्तिकरण और नीतियों के सही दिशा में जाने का संकेत है।



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