सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (7 अगस्त 2025) को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने अपने घर में मिले कैश को लेकर चल रही इन-हाउस जाँच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी थी।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और एजी मसीह की पीठ ने ये कहकर याचिका खारिज कर दी कि इन-हाउस समिति का गठन और उसकी जाँच प्रक्रिया गलत नहीं थी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व CJI संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा को अपने पद से इस्तीफा देने की सलाह दी जिसे वर्मा ने इंकार कर दिया। इसके बाद CJI ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की।
इस पर कोर्ट ने कहा, “हमने माना है कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को CJI द्वारा पत्र भेजना असंवैधानिक नहीं था। हमने कुछ टिप्पणियाँ की हैं। इसका उपयोग जस्टिस वर्मा आवश्यकता पड़ने पर कार्रवाई में विकल्प के तौर पर भविष्य में कर सकते हैं।”
पिछली सुनवाई के दौरान पीठ ने यह सवाल उठाया था कि यदि जस्टिस वर्मा को समिति का गठन असंवैधानिक लगता था, तो उन्होंने शुरुआत में ही इसका विरोध क्यों नहीं किया। पीठ ने टिप्पणी की कि वर्मा ने जाँच प्रक्रिया में भाग लिया था, इसलिए अब वे उसकी रिपोर्ट की वैधता को चुनौती नहीं दे सकते।
क्या था पूरा मामला
ये मामला 14 मार्च 2025 को सामने आया था जब दिल्ली में जस्टिस वर्मा के घर में आग लग गई थी। इसके बाद दमकल विभाग को वहाँ एक कमरे से बड़ी संख्या में जली हुई नकदी मिली थी। इसके बाद उन पर जाँच बैठी। मामला सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा का तबादला दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया और उनसे सभी न्यायिक कार्य वापस ले लिए।
जाँच समिति ने अपनी रिपोर्ट पूरी की। इसमें पाया गया कि नकदी को 15 मार्च की सुबह वहाँ से हटाया गया था। समिति में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश के सीजे जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थीं।
जाँच प्रक्रिया में जस्टिस वर्मा के साथ उनकी बेटी और 55 अन्य गवाहों ने भी अपना बयान दर्ज करवाया था। इसके बाद रिपोर्ट में इस बात को माना गया कि जिस कमरे में नकदी थी वह वर्मा के परिवार के नियंत्रण में था। हालाँकि जस्टिस वर्मा इस मामले में कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दे सके इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई करने की बात रिपोर्ट में शामिल की गई।
जाँच के खिलाफ गुमनाम याचिका
इस कमेटी के फैसले के खिलाफ जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दाखिल की। हालाँकि उन्होंने अपनी पहचान छिपाने के लिए XXX यानी गुमनाम के तहत आवेदन किया। अपनी याचिका में जस्टिस वर्मा ने आरोप लगाया कि जाँच समिति ने पूर्वनिर्धारित मानसिकता के साथ अपनी रिपोर्ट पूरी की। अनुमान के आधार पर सवाल पूछे गए। साथ ही उन्हें सुनवाई का मौका नहीं दिया गया।
अपनी याचिका में उन्होंने यह भी कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई सिफारिश असंवैधानिक थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया के अनुसार ऐसा करना आवश्यक नहीं था।
याचिका की सुनवाई के दौरान सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल पेश हुए। उन्होंने कहा कि इन-हाउस समिति को किसी न्यायाधीश को हटाने की सिफारिश करने का अधिकार नहीं है और इसका कार्यक्षेत्र केवल मुख्य न्यायाधीश को सलाह देने तक सीमित है।
दलीलों पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि CJI केवल ‘पोस्ट ऑफिस’ नहीं हैं। उनका काम केवल फाइलें आगे बढ़ाना नहीं है, बल्कि न्यायपालिका के नेता के रूप में राष्ट्र के प्रति उनका कर्तव्य है। उनके पास न्यायिक दुराचार पर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अब संसद में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। यह भारत के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है, क्योंकि यह संभवतः पहला मामला होगा जिसमें किसी हाईकोर्ट जज को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।