कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 9 अगस्त 2024 को महिला जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई थी। इस घटना ने राज्यभर में आक्रोश फैला दिया और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कॉन्ग्रेस सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जो छह हफ्तों से ज्यादा समय तक चले। ये प्रदर्शन अब भी जारी है, जिसे अब ममता सरकार ताकत के दम पर दबाने में जुट गई है।
अब, इस घटना को एक साल बीत चुका है, लेकिन द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता को न्याय दिलाने की माँग को लेकर प्रदर्शन करने वाले जूनियर डॉक्टरों को लगातार कानूनी और आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है।
जिन डॉक्टरों ने विरोध का नेतृत्व किया, उनमें अनिकेत महतो, अशफाकउल्ला नैया, किंजल नंदा और देबाशीष हलदर प्रमुख नाम हैं। इन सभी को या तो दंडात्मक तरीके से दूर-दराज अस्पतालों में भेज दिया गया या फिर उन पर पुलिस एफआईआर, कोर्ट केस और जाँचों के जरिए दबाव डाला जा रहा है। डॉ अनिकेत महतो, अशफाकउल्ला नैया और देबाशीष हलदर को ऐसे समय में ट्रांसफर किया गया जब उन्हें मात्र तीन महीने पहले ही नई नियुक्तियाँ मिली थीं।
उन्होंने इस कार्रवाई को बदला बताया और इसके खिलाफ कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। सरकार का तर्क है कि यह ‘नियमित प्रशासनिक प्रक्रिया’ है, लेकिन विरोध कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि यह साफ तौर पर उन्हें सबक सिखाने और आंदोलन दबाने की कोशिश है।
पुलिस ने कई डॉक्टरों को उस आंदोलन के सिलसिले में नोटिस भेजे हैं, जिसमें ‘अवैध जमावड़ा’, ‘पुलिस पर हमला’ जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इनमें से कुछ डॉक्टरों के घरों पर छापे भी मारे गए।
उदाहरण के तौर पर, डॉ अशफाकउल्ला नैया के खिलाफ उनकी डिग्री को लेकर एक शिकायत दर्ज होने के बाद पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा। डॉ किंजल नंदा से भी पूछताछ की जा रही है कि क्या उन्होंने फिल्मों में अभिनय करने से पहले संस्थान से अनुमति ली थी।
साथ ही उनके भत्तों और ड्यूटी घंटों की जानकारी भी माँगी गई है। डॉ अनिकेत महतो का कहना है कि वह अप्रैल से ड्यूटी से बाहर हैं और उन्हें वेतन भी नहीं मिल रहा है। उन्होंने बताया कि मानसिक रूप से भी वे इस स्थिति से बहुत प्रभावित हुए हैं।
डॉक्टरों की प्रमुख माँगें जैसे कि हेल्थ वर्कर्स की सुरक्षा, केंद्रीय रेफरल प्रणाली और रिक्त पदों की भर्ती अब तक पूरी नहीं की गई हैं। डॉक्टरों को संदेह है कि इस केस में केवल संजय रॉय ही नहीं, बल्कि और भी लोग शामिल हो सकते हैं और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई है।
हालाँकि सियालदह की एक अदालत ने जनवरी 2025 में संजय रॉय को दोषी ठहराया था, लेकिन अब भी पुलिस जाँच की निष्पक्षता और राज्य सरकार के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं। पीड़िता के माता-पिता और साथी डॉक्टर आज भी इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि प्रदर्शनकारियों को अपनी नौकरी और मानसिक स्वास्थ्य की कीमत चुकानी पड़ रही है।
इस बीच, आरजे कर रेप-मर्डर केस के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर बंगाल पुलिस ने लाठीचार्ज भी कर दिया है, जिसमें पीड़िता की माँ को भी नहीं छोड़ा गया। इस लाठीचार्ज में पीड़िता की माँ गंभीर रूप से घायल हो गई। इस प्रदर्शन में बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी, अग्निमित्रा पॉल और अन्य विधायक भी शामिल हुए, उन्हें भी पुलिस की हिंसा झेलनी पड़ी।
इस पूरी घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या किसी महिला डॉक्टर की सुरक्षा और उसके लिए न्याय की माँग करना इतना महँगा पड़ सकता है कि उसकी कीमत एक डॉक्टर को अपनी नौकरी, मानसिक शांति और पेशेवर पहचान से चुकानी पड़े?