मोदी सरकार

मोदी सरकार की योजनाओं ने करोड़ों लोगों को गरीबी से निकालने में बड़ी भूमिका निभाई है। PM आवास योजना से लेकर मुद्रा और लखपति दीदी जैसी योजनाओं ने देश में महिलाओं और बच्चों की गरीबी कम करने में बड़ी भूमिका निभाई है। यह जानकारियाँ एक रिपोर्ट से सामने आई हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 12 वर्षों के समय में देश में 27 करोड़ से अधिक लोग गरीबी से निकाले गए हैं।

27 करोड़ गरीबी से बाहर निकले

यह रिसर्च रिपोर्ट शमिका रवि और मुदित कपूर ने लिखी है। रिपोर्ट बताती है कि 2011-12 के मुकाबले 2023-24 में देश के घरों में महिलाओं को अधिक संसाधन मिलने लगे हैं। महिलाओं के साथ ही बच्चों को भी घर के संसाधनों में ज्यादा हिस्सा मिलने लगा है। इसका असर सीधे तौर पर महिलाओं और बच्चों की आर्थिक हालत पर पड़ा है। रिपोर्ट बताती है कि 2011-12 में बच्चों की गरीबी दर सबसे ज़्यादा (58.3%) थी, उसके बाद महिलाओं (33.3%) और पुरुषों (15.1%) का स्थान था।

रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 तक, बच्चों की गरीबी घटकर 17.8%, महिलाओं की गरीबी घटकर 2.2% रह गई, लेकिन पुरुषों की गरीबी मामूली रूप से घटकर 13.5% ही रह गई। यह बदलाव मात्र 12 वर्षों के भीतर हुए। इस दौरान अधिकांश समय में केंद्र में मोदी सरकार ही रही है। ऐसे में स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि इसमें बड़ा योगदान सरकार का रहा है, जिससे महिलाएँ सशक्त हुई हैं और बच्चे भी गरीबी के कुचक्र से निकले हैं।

रिपोर्ट कहती है कि प्रधानमंत्री आवास योजना, मुद्रा योजना और लखपति दीदी योजना के चलते गरीबी घटाने में बड़ी सहायता मिली है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अब तक देश में 4 करोड़ घर बन चुके हैं। इस योजना में मकान में महिला को सह स्वामिनी रखना जरूरी है। ऐसे में संसाधनों के बँटवारे में महिलाएँ और सशक्त हुई हैं। इसके अलावा लखपति दीदी योजना ने उन्हें रोजगार का अवसर दिया है। मुद्रा ने उन्हें वह पूँजी उपलब्ध करवाई है, जिससे वह सशक्त हो सकें।

पहले आई रिपोर्ट्स ने भी दिखाई बदली तस्वीर

यह ऐसी कोई पहली रिपोर्ट नहीं है, जिसमें देश में गरीबी कम होने की पुष्टि की गई हो। इससे पहले कई और रिपोर्ट्स गरीबी कम होने के साथ ही खर्च बढ़ने तक की बात बता चुकी हैं। केंद्र सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वन मंत्रालय (MoSPI) के देश के परिवारों द्वारा किए जाने खर्चे को लेकर किए गए पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वे के अनुसार, अब देश के गाँवों में बसने वाली आबादी में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च ₹3773 है जबकि शहर में रहने वाला एक आदमी औसतन ₹6459 प्रति माह अपने ऊपर खर्च करता है। 

2011-12 में किए गए सर्वे की तुलना में लगभग 2.5 गुना है। 2011-12 में गाँव में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने ऊपर ₹1430 जबकि शहरी व्यक्ति ₹2630 खर्च करता था। गाँवों में रहने वाला व्यक्ति अपने कुल खर्चे का 46% जबकि शहरों में रहने वाला व्यक्ति 39% खर्च खाने-पीने पर करता है। रिपोर्ट के आँकड़े दर्शाते हैं कि गाँव और शहर के खर्चे के बीच की खाई भी कम हुई है। अब दोनों के खर्चे में 71% का अंतर है जबकि 2011-12 में यह लगभग 84% था।

भारत में गरीबी कम होने की बात की पुष्टि वर्ल्ड बैंक तक कर चुका है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, वर्ष 2011-12 में 27% लोग भारत में अत्यंत निर्धनता में रह रहे थे। अब यह संख्या मात्र 5.3% ही रह गई है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट बताती है कि सबसे अधिक काम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा और बिहार जैसे राज्यों में हुआ है। इन राज्यों से सबसे अधिक लोग अत्यंत निर्धनता से बाहर निकाले गए हैं। भारत ने यह उपलब्धि तब हासिल की है जब वर्ल्ड बैंक ने किसी व्यक्ति को गरीब माने जाने के मानदंड बदले हैं और उन्हें और ऊँचा कर दिया है।

मोदी सरकार ने घर-पानी-बिजली पर सबसे पहले किया काम

केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद सबसे पहले देश की मूलभूत समस्याओं को हल करने का प्रयास चालू किया है। मोदी सरकार ने देश की बड़ी आबादी को मूलभूत सुविधाएँ मुहैया करवाना चालू किया। देश में जिन लोगों के पक्का मकान नहीं था, उन्हें मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) और प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत मकान देना चालू किया। अब तक ग्रामीण योजना के तहत 2.82 करोड़ मकान बनाए जा चुके हैं जबकि शहरी योजना के तहत 94 लाख से अधिक घर बन गए हैं।

वहीं मोदी सरकार में घर-घर बिजली सौभाग्य योजना के तहत बिजली पहुँची। इसके अलावा पानी पहुँचाने के लिए मोदी सरकार ने वर्तमान में जल जीवन मिशन चालू कर रखा है। इसके चालू होने के बाद से देश में 12.44 करोड़ घरों में पानी पहुँच चुका है। जनधन योजना से बैंकिंग की पहुँच देश के 50 करोड़ से अधिक लोगों तक हुई है। यह मूलभूत सुविधाएँ देश में गरीबी उन्मूलन का आधार बन रही हैं।

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