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OpIndia Exclusive- बुर्काधारी औरतों ने नोचे महिला पत्रकार के बाल, मुस्लिम भीड़ ने पत्थर-बेल्ट से मारा: दिल्ली के सीमापुरी में मीडियार्मियों पर हमला, जान बचाने जिस DTC में चढ़े उसमें भी तोड़फोड़


घायल पत्रकारों का दिल्ली के जीटीवी अस्पताल में कराया गया इलाज

दिल्ली के सीमापुरी इलाके की बंगाली बस्ती में शुक्रवार (4 जुलाई 2025) की शाम एक ऐसी घटना घटी, जिसने पत्रकारिता की स्वतंत्रता, सामाजिक सौहार्द और कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। ऑल इंडिया न्यूज़ की पत्रकार सुप्रिया पाठक और उनके कैमरामैन श्याम पर इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ ने जानलेवा हमला किया। यह हमला सरकारी जमीन पर अवैध अतिक्रमण और झुग्गी-झोपड़ी के मुद्दे पर रिपोर्टिंग के दौरान हुआ, जब दोनों पत्रकार बंगाली मार्केट के पास एक मस्जिद के सामने कैमरा लेकर खड़े थे।

पीड़ितों के मुताबिक, बुर्कानशीं महिलाओं और नाबालिग किशोरों की भीड़ने न केवल पत्रकारों को बेरहमी से पीटा, बल्कि उनके उपकरण, नकदी और निजी सामान भी लूट लिए। इस घटना ने दिल्ली पुलिस की निष्क्रियता और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया है, क्योंकि अभी तक न तो कोई गिरफ्तारी हुई है और न ही पीड़ितों को एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराई गई है।

दिल्ली की सड़क पर दिखा इस्लामी हिंसा का भयावह मंजर

जानकारी के मुताबिक, शुक्रवार (4 जुलाई 2025) की शाम करीब 6 बजे सुप्रिया पाठक और श्याम सीमापुरी के बंगाली बस्ती क्षेत्र में 200 फुटा रोड के पास पहुँचे। उनका मकसद सरकारी जमीन पर हो रहे अवैध अतिक्रमण की सच्चाई को उजागर करना था, जो स्थानीय निवासियों और प्रशासन के बीच लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। इस इलाके में अवैध झुग्गियाँ, निर्माण कार्य और कथित तौर पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों की मौजूदगी ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।

सुप्रिया और श्याम ने जैसे ही मस्जिद के सामने अपनी रिपोर्टिंग शुरू करने के लिए कैमरा सेट किया, कुछ स्थानीय लोगों ने आपत्ति जताई। शुरुआत में यह आपत्ति मौखिक थी, लेकिन जल्द ही यह हिंसक रूप ले लिया। भीड़ में शामिल बुर्का पहनी मुस्लिम महिलाओं और नाबालिग किशोरों ने पत्रकारों को घेर लिया। शुरुआत में 20-30 लोगों की भीड़ कुछ ही मिनटों में 200 से अधिक लोगों की उग्र भीड़ में बदल गई।

भीड़ ने सुप्रिया और श्याम पर लाठियों, मुक्कों और लातों से हमला शुरू कर दिया। सुप्रिया को सड़क पर घसीटकर पीटा गया, जिससे उनके पैर में गंभीर चोट आई और हड्डी टूट गई। उनके शरीर पर कई जगह घाव और चोट के निशान हैं। श्याम के चेहरे और शरीर पर भी गहरे घाव आए और उनके सिर पर मुक्कों की बौछार की गई। हमलावरों ने सुप्रिया का मोबाइल, कैमरा, माइक, बैटरी और जेब में मौजूद नकदी लूट ली, जबकि श्याम की घड़ी और पर्स भी छीन लिया गया।

पत्रकारों ने बचने की कोशिश में एक डीटीसी बस में शरण ली, लेकिन भीड़ ने बस को चारों ओर से घेर लिया। हमलावरों ने बस के शीशे तोड़ दिए और दोनों को जबरन बाहर खींच लिया। इस दौरान बस चालक ने कोई मदद नहीं की और उल्टा उन्हें बस से उतार दिया। भीड़ ने बस को भी नुकसान पहुँचाया, जिससे सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुँची। इस घटनाक्रम का वीडियो भी सामने आया है।

पीड़ित ने ऑपइंडिया से साझा की आपबीती

पीड़ित के मुताबिक, उन्हें अलग भीड़ ने मारा और उनकी साथी पत्रकार सुप्रिया को अलग से पीटा गया। बाद में कुछ बाइक वाले आए, उन्होंने मदद करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी बाइक समेत गिरा दिया गया। फिर पुलिसकर्मी आए और उन्होंने बाइक पर उन्हें आगे छोड़ने का प्रयास किया। हालाँकि इस दौरान भी भीड़ बाइक के पीछे रही, किसी ने पत्थर फेंके तो किसी ने बेल्ट मारी।

बचाव की नाकाम कोशिशें और प्रशासन की निष्क्रियता

घटना के दौरान सड़क पर जाम होने के बावजूद कोई भी स्थानीय व्यक्ति पत्रकारों की मदद के लिए आगे नहीं आया। कुछ राहगीरों ने कोशिश की, लेकिन भीड़ के आक्रामक रवैये और कथित कट्टरपंथी नारों के सामने उन्हें पीछे हटना पड़ा। एक राहगीर ने सुप्रिया को अपनी बाइक पर बिठाकर सुरक्षित स्थान तक ले जाने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने उसे भी खींचकर मारपीट की। आखिरकार एक पुलिसकर्मी ने हस्तक्षेप किया और दोनों को मौके से कुछ दूरी पर सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया।

पत्रकारों को इसके बाद सीमापुरी थाने ले जाया गया, जहाँ से उन्हें मेडिकल जाँच के लिए जीटीबी अस्पताल भेजा गया। रात 9 बजे अस्पताल पहुँचने के बावजूद, इलाज और मेडिकल प्रक्रिया में इतनी देरी हुई कि सुबह 4 बजे तक उन्हें वहाँ से निकलने का मौका मिला। सुप्रिया के पैर में प्लास्टर चढ़ा है और वह चलने में असमर्थ हैं, जबकि श्याम को भी गंभीर चोटें आई हैं।

कट्टरपंथी इरादों के साथ किया गया हमला

वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने X लिखा कि यह हमला योजनाबद्ध था, क्योंकि पत्रकारों की रिपोर्टिंग से कई अवैध गतिविधियों का भेद खुलने का खतरा था।

इस घटना में मुस्लिम महिलाओं और नाबालिग किशोरों की सक्रिय भागीदारी विशेष रूप से चिंताजनक है। बुर्का पहनी महिलाओं ने न केवल पत्रकारों पर शारीरिक हमला किया, बल्कि उन्हें अपशब्द कहे और धार्मिक आधार पर टिप्पणियाँ कीं। नाबालिग किशोरों ने भी हिंसा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया जो यह दर्शाता है कि कट्टरपंथी विचारधारा युवा पीढ़ी में भी गहरे तक पैठ बना चुकी है।

लोगों का दावा है कि हमलावरों ने पत्रकारों को इसलिए निशाना बनाया क्योंकि वे हिंदू थे और हमलावरों को इस बात का भरोसा था कि उनकी मजहबी पहचान के चलते पुलिस कोई सख्त कार्रवाई नहीं करेगी। यह भी आरोप लगाया गया कि ऐसे मामलों में मुस्लिम समुदाय की भीड़ थाने को घेर लेती है, जिससे प्रशासन दबाव में आ जाता है और कार्रवाई करने में असमर्थ रहता है। इस तरह की धारणा हमलावरों को और अधिक बेखौफ बनाती है, जिससे वे कानून को अपने हाथ में लेने से नहीं हिचकते।

लोगों का कहना है कि दिल्ली में अवैध कब्जाधारियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, जिसके चलते प्रशासन उनके खिलाफ कार्रवाई करने से हिचकता है। यह भी दावा किया गया कि कुछ राजनीतिक दलों ने वोट बैंक की खातिर अवैध प्रवासियों को बसने की अनुमति दी, जिससे इस तरह की हिंसक घटनाएँ बढ़ रही हैं।

हालाँकि इस मामले में हैरानी की बात यह है कि इस गंभीर हमले के बावजूद दिल्ली पुलिस ने अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। पीड़ितों को न तो एफआईआर की कॉपी दी गई है और न ही किसी हमलावर की गिरफ्तारी हुई है। लोगों का दावा है कि पुलिस पीड़ित पत्रकारों को ही परेशान कर रही है, जबकि हमलावर खुले में घूम रहे हैं।



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