सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (5 अगस्त 2025) को आतंकी साकिब नाचन की याचिका खारिज कर दी है। यह याचिका दिसंबर 2024 में दाखिल की गई थी। इसमें भारत में ISIS को आतंकवादी संगठन घोषित करने को लेकर चुनौती दी गई थी। साकिब नाचन की जून 2025 में ब्रेन हैमरेज से मौत हो चुकी है।

याचिका में नाचन ने दावा किया था कि उसे और उसके बेटे शमिल नाचन को ISIS से जुड़े होने के संदेह में गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने ये कहकर याचिका खारिज कर दी कि इस तरह के आरोपों पर उचित क्रिमिनल कोर्ट ही विचार कर सकती है।

नाचन की याचिका में 2015 और 2018 में जारी दो सरकारी नोटिफिकेशनों को चुनौती दी गई थी, जिन्हें अलनॉफुल एक्टीविटीज प्रीवेंशन एक्ट (UAPA), 1967 की धारा 35 के तहत जारी किया गया था। कोर्ट ने कहा कि वह इस तरह की याचिका पर विचार नहीं करना चाहता है।

साकिब नाचन की मृत्यु के बाद वरिष्ठ वकील मुक्ता गुप्ता को कोर्ट ने amicus curiae (न्याय मित्र) नियुक्त किया। उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि इन नोटिफिकेशनों में ‘खिलाफत’ और ‘जिहाद’ जैसे मजहबी शब्दों की गलत व्याख्या की गई है, जिससे याचिकाकर्ता के अनुच्छेद 25 के तहत मिलने वाले धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।

गुप्ता ने कहा कि UAPA की धारा 3 के तहत जिस तरह ‘अवैध संघ’ घोषित करने की प्रक्रिया तय है, वैसी कोई प्रक्रिया धारा 35 के तहत नहीं है, जिससे संगठन को ‘आतंकवादी संगठन’ घोषित किया जा सके। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि UAPA में आतंकवादी संगठन की स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है।

जस्टिस बागची ने कहा कि नोटिफिकेशन में ‘खिलाफत’ जैसे शब्दों का उपयोग मजहबी संदर्भ में नहीं, बल्कि आतंकवादी गतिविधियों के संदर्भ में किया गया है, इसलिए उन्हें उसी संदर्भ में पढ़ा जाना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि UAPA में ‘terrorist act’ (आतंकवादी कृत्य) की परिभाषा दी गई है, और जो संगठन ऐसी गतिविधियों में शामिल होते हैं, उन्हें ‘आतंकी संगठन’ घोषित किया जा सकता है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता दरअसल इस याचिका के जरिए अपने और अपने बेटे के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों में राहत लेना चाह रहे थे, जबकि इसके लिए क्रिमिनल कोर्ट ही सही जगह है।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “ऐसे मामलों में राहत के लिए याचिकाकर्ता को सही फोरम पर जाना चाहिए। वह जमानत या अन्य राहत के लिए आपराधिक कोर्ट का रुख कर सकते हैं।” इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।

कौन था साकिब नाचन?

साकिब नाचन एक कुख्यात आतंकवादी था, जिस पर मुंबई में चार महीनों के अंदर तीन बड़े बम धमाकों को अंजाम देने का आरोप है। ये धमाके 6 दिसंबर 2002 से 13 मार्च 2003 के बीच हुए थे। आखिरी धमाका सबसे खतरनाक था, जिसमें 11 लोगों की मौत हो गई थी और 82 लोग घायल हुए थे।

इन धमाकों को मुंबई के व्यस्त रेलवे स्टेशन और बाजारों को निशाना बनाकर अंजाम दिया गया था ताकि ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो। मुंबई पुलिस ने 10 अप्रैल 2003 को साकिब को गिरफ्तार किया था। उसे 8 साल की सजा हुई और फिर उसे 1 लाख के मुचलके पर जमानत मिल गई।

बाद में मार्च 2016 में कोर्ट ने उसे धमाकों के मामले में दोषी ठहराया। लेकिन वह 2 साल से भी कम समय के लिए ही जेल में रहा और नवंबर 2017 में उसे ‘अच्छे व्यवहार’ के चलते 5 महीने पहले रिहा कर दिया गया।

इस बीच, 4 अगस्त 2012 को उसे विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यकर्ता मनोज राइचा की हत्या की कोशिश के आरोप में फिर से गिरफ्तार किया गया। लेकिन उसे अगस्त 2014 में फिर जमानत मिल गई।

रिहाई के बाद भी साकिब नाचन ने अपनी आतंकी गतिविधियाँ जारी रखीं। 9 दिसंबर 2023 को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने उसे फिर से गिरफ्तार किया, क्योंकि वह महाराष्ट्र में एक ISIS मॉड्यूल चला रहा था।

शुरुआती जाँच में पता चला कि साकिब ने ठाणे के ग्रामीण इलाके पाडघा को ‘मुक्त क्षेत्र’ और ‘अल-शाम’ घोषित कर दिया था। यह वही तरीका है जो सीरिया में ISIS अपनाता है। NIA ने यह भी बताया कि वह मुस्लिम युवाओं को भड़काकर उन्हें उनके घरों से पाडघा लाकर आतंकी नेटवर्क को मजबूत करने में जुटा था।

इससे पहले 11 अगस्त 2023 को NIA ने साकिब का बेटा शमिल नाचन को भी गिरफ्तार किया था। यह गिरफ्तारी पुणे ISIS मॉड्यूल केस में हुई। जाँच में शमिल के ठिकाने से आपत्तिजनक सबूत मिले। शमिल और उसके साथियों ने 2022 में पुणे में एक घर में IED (बम) बनाने और ट्रेनिंग की वर्कशॉप का आयोजन किया था और वहाँ बम तैयार किए थे। इसके बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेजा गया।

मूल रूप से ये रिपोर्ट अंग्रेजी में अदिति ने लिखी है। इसका अनुवाद सौम्या सिंह ने किया है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

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