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IIT गाँधीनगर में ‘वामपंथी प्रोफेसर’ का प्रोपेगेंडा जारी, RTI के भी नहीं दिए जा रहे सही जवाब: टैक्स पेयर्स के पैसों पर ‘पलने’ वालों में किसी को भगवान राम से दिक्कत, तो कोई उमर खालिद का हमदर्द


आईआईटी गाँधीनगर

गुजरात के गाँधीनगर में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT Gandhinagar) पिछले कुछ समय से लगातार विवादों के घेरे में है। पहले इसके ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंस (HSS) विभाग में छात्रों द्वारा इस्लामिक विषयों पर रिसर्च को लेकर सवाल उठे थे। अब संस्थान के प्रोफेसरों की सोशल मीडिया गतिविधियाँ चर्चा का केंद्र बन गई हैं।

खास तौर पर मटेरियल साइंस विभाग के प्रोफेसर अमित अरोड़ा के कुछ पुराने और हाल के सोशल मीडिया पोस्ट वायरल हो गए हैं। इन पोस्ट्स में उन्होंने राम मंदिर, उमर खालिद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार की नीतियों पर टिप्पणियाँ की हैं, जो लोगों के गुस्से का कारण बनीं।

इन पोस्ट्स के वायरल होने और स्क्रीनशॉट्स के फैलने के बाद प्रोफेसर ने अपना सोशल मीडिया एकाउंट ही डिलीट कर दिया। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।

राम मंदिर पर टिप्पणी और वामपंथी विचारधारा

27 मई, 2020 को प्रोफेसर अमित अरोड़ा ने तत्कालीन ट्विटर (अब X) पर एक पोस्ट की थी, जिसमें उन्होंने राम मंदिर को लेकर तंज कसा। यह वह समय था जब सुप्रीम कोर्ट का राम मंदिर पर फैसला कुछ महीने पहले आया था और राम मंदिर ट्रस्ट बनाने का काम चल रहा था। प्रोफेसर ने लिखा, “रामलला उस बच्चे में हैं, जो प्लेटफॉर्म पर पड़ी अपनी माँ के मृत शरीर को जगाने की कोशिश कर रहा है। जब तक ऐसा एक भी बच्चा है, रामलला आपके मंदिर में कभी नहीं आएँगे। जाओ, बना लो मंदिर।”

प्रोफेसर का ट्वीट

यह बयान एक खास तरह की विचारधारा को दर्शाता है, जिसे लोग वामपंथी मानसिकता कहते हैं। इस तरह की टिप्पणियों में सामाजिक या आर्थिक समस्याओं को हिंदू धर्म, मंदिर या भगवान से जोड़कर हिंदुओं को निशाना बनाया जाता है। आलोचकों का कहना है कि ऐसी समस्याएँ किसी भी धर्म या समुदाय से जोड़ी जा सकती हैं, लेकिन आमतौर पर सिर्फ हिंदुओं को ही टारगेट किया जाता है। इस पोस्ट को लेकर सोशल मीडिया पर खूब हंगामा हुआ और लोगों ने इसे हिंदू-विरोधी प्रचार का हिस्सा बताया।

‘भारत’ बनाम ‘इंडिया’ पर विवादास्पद बयान

1 अप्रैल, 2025 को एक वामपंथी सोशल मीडिया एकाउंट ने एक पोस्ट की, जिसमें ‘संघियों’ पर सवाल उठाया गया। पोस्ट में लिखा था कि कुछ लोग अचानक ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ शब्द का इस्तेमाल क्यों बढ़ा रहे हैं? क्या वे ‘भारत को इंडिया का विकसित वर्जन’ साबित करके लोगों को बेवकूफ बनाना चाहते हैं? इस पोस्ट के जवाब में प्रोफेसर अमित अरोड़ा ने लिखा, “‘भारत’ असली धर्मनिरपेक्ष इंडिया का संघियों का ब्राह्मणवादी, दमनकारी और कट्टर धार्मिक वर्जन है।”

ट्वीट का स्क्रीनशॉट

इस बयान से उनकी विचारधारा और साफ हो गई। उन्होंने ‘भारत’ शब्द को नकारात्मक अर्थ में पेश किया और इसे ब्राह्मणवाद और धार्मिक कट्टरता से जोड़ा। इस पोस्ट ने भी सोशल मीडिया पर काफी विवाद खड़ा किया, क्योंकि लोगों ने इसे भारत की सांस्कृतिक पहचान पर हमला माना।

पीएम नरेंद्र मोदी पर लगातार कटाक्ष

प्रोफेसर अमित अरोड़ा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कई बार तंज कसे हैं। जून 2024 में उन्होंने एक फोटो शेयर करके पीएम मोदी पर व्यंग्य किया। 2020 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के 2014 के एक पोस्टर की तस्वीर पोस्ट की, जिसमें लिखा था कि मोदी सरकार आने के बाद पेट्रोल और डीजल के दामों में राहत मिलेगी। इस पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने लिखा, “अब यहाँ कुछ लिखने को बाकी नहीं है।” उनका इशारा पेट्रोल-डीजल की बढ़ती की कीमतों की ओर था, जिसे उन्होंने सरकार की नाकामी से जोड़ा।

कुछ समय पहले 25 अप्रैल, 2025 को उन्होंने गुजराती पत्रकार उर्वीश कोठारी की एक पोस्ट को रीट्वीट किया। इस पोस्ट में उर्वीश ने पीएम मोदी पर तंज कसते हुए लिखा था कि वे अमेरिका जाकर हिंदी बोलते हैं और बिहार जाकर अंग्रेजी। प्रोफेसर अरोड़ा ने इसे रीट्वीट करते हुए लिखा, “अमेरिका जाकर हिंदी बोलते हैं और बिहार जाकर अंग्रेजी। इनके (मोदी के) जलवे ही अलग हैं, नाटक खत्म नहीं होते।” यह टिप्पणी पीएम मोदी के प्रति उनके पूर्वाग्रह को और स्पष्ट करती है।

उमर खालिद और हमास का समर्थन

प्रोफेसर अरोड़ा की कुछ पोस्ट्स में विवादास्पद व्यक्तियों और मुद्दों का समर्थन भी देखने को मिला। उन्होंने एक सोशल मीडिया यूजर अर्पित शर्मा की पोस्ट को रीट्वीट किया, जिसमें लिखा था, “अगर उमर खालिद का नाम उमेश या उमंग होता, तो वह अब तक जेल से बाहर होता।” इस पोस्ट को रीट्वीट करके प्रोफेसर ने उमर खालिद को निर्दोष बताने की कोशिश की।

यहाँ यह समझना जरूरी है कि उमर खालिद पर 2020 के दिल्ली दंगों में साजिश रचने का गंभीर आरोप है। आलोचकों का कहना है कि ऐसी पोस्ट्स के जरिए जानबूझकर यह प्रचार किया जा रहा है कि उमर खालिद को उनके धर्म की वजह से निशाना बनाया जा रहा है। इससे यह धारणा बनाई जा रही है कि उनके खिलाफ कार्रवाई में धार्मिक भेदभाव है, जो एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है।

इसके अलावा प्रोफेसर अरोड़ा ने हमास का समर्थन करने वाले अमेरिकी छात्रों का भी पक्ष लिया। इस पोस्ट ने भी सोशल मीडिया पर खूब हंगामा मचाया, क्योंकि हमास को कई देश आतंकवादी संगठन मानते हैं। ऐसे में एक प्रोफेसर का इस तरह का समर्थन करना लोगों को गलत लगा।

रवीश कुमार और वामपंथी पोस्ट्स को समर्थन

प्रोफेसर अरोड़ा की ट्विटर प्रोफाइल (जो अब डिलीट हो चुकी है) से यह भी पता चलता है कि वे पत्रकार रवीश कुमार की पोस्ट्स को रीट्वीट करते थे। इसके अलावा, वे वामपंथी विचारधारा से जुड़े अन्य एकाउंट्स की पोस्ट्स को भी समर्थन देते थे। उनकी प्रोफाइल में ऐसी कई पोस्ट्स थीं, जो सरकार-विरोधी और एक खास विचारधारा को बढ़ावा देने वाली थीं।

सोशल मीडिया पर गुस्सा और एकाउंट डिलीट

जैसे ही प्रोफेसर अरोड़ा की ये पोस्ट्स वायरल हुईं और उनके स्क्रीनशॉट्स सोशल मीडिया पर फैलने लगे, लोगों ने तीखी प्रतिक्रियाएँ दीं। कई लोगों ने इसे सरकारी संस्थान में पढ़ाने वाले प्रोफेसर की गैर-जिम्मेदाराना हरकत बताया। सोशल मीडिया पर गुस्से के बाद प्रोफेसर ने अपना ट्विटर एकाउंट डिलीट कर दिया। अब उनका एकाउंट दिखाई नहीं देता, लेकिन उनके पोस्ट्स के स्क्रीनशॉट्स अभी भी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं।

IIT गाँधीनगर से जुड़े पुराने विवाद

यह पहली बार नहीं है जब IIT गाँधीनगर विवादों में घिरा है। इससे पहले भी इसके ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंस (HSS) विभाग के कुछ प्रोफेसरों और छात्रों की गतिविधियों पर सवाल उठ चुके हैं। ऑपइंडिया गुजराती की एक रिपोर्ट के मुताबिक, HSS विभाग के छात्रों ने अपने वार्षिक थीसिस प्रोजेक्ट के लिए इस्लामिक विषयों को चुना था। इन विषयों को देखकर ऐसा लगता था जैसे यह कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि इस्लामिक रिसर्च सेंटर है।

जब यह मामला सोशल मीडिया पर उछला, तो HSS विभाग के प्रोफेसरों ने छात्रों को मेल भेजकर धमकी दी थी कि वे इस बारे में बाहर बात न करें। लेकिन यह मेल भी लीक हो गया, जिससे विवाद और बढ़ गया। ऑपइंडिया ने इस मामले में प्रोफेसर निशांत चोकसी से उनका पक्ष जानने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

प्रोफेसरों का एनजीओ से कनेक्शन

ऑपइंडिया की एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया था कि HSS विभाग के कुछ प्रोफेसर विवादास्पद एनजीओ से जुड़े हैं, जो आदिवासी क्षेत्रों और खास तौर पर नर्मदा के विस्थापितों के बीच काम करते हैं। इनमें प्रोफेसर निशांत चोकसी का नाम सामने आया, जो एक ऐसे एनजीओ से जुड़े हैं, जिसके संचालकों में फादर फर्नांड डुराई जैसे लोग शामिल हैं। इस एनजीओ ने प्रोफेसर चोकसी की कुछ किताबें भी प्रकाशित की हैं।

RTI के जवाबों में विरोधाभाष

मई 2025 में एक एक्टिविस्ट ने RTI के जरिए IIT गाँधीनगर से प्रोफेसर निशांत चोकसी के एनजीओ से संबंधों के बारे में जानकारी माँगी। जून 2025 में संस्थान ने जवाब दिया कि उनके पास कोई ऐसी जानकारी नहीं है कि प्रोफेसर चोकसी किसी एनजीओ से जुड़े हैं।

आरटीआई के जवाब की कॉपी

लेकिन यह जवाब चौंकाने वाला था, क्योंकि 12 जनवरी, 2025 को IIT गाँधीनगर के HSS विभाग के आधिकारिक X हैंडल से एक पोस्ट की गई थी। इस पोस्ट में बताया गया था कि प्रोफेसर निशांत चोकसी और रिसर्च स्टाफ कल्पेश राठवा ने नर्मदा घाटी के विस्थापितों की संस्कृति और भाषा पर किताबें लिखी हैं, और इनका प्रकाशन आदिलोक नाम के एनजीओ ने किया है।

अब सवाल यह है कि अगर संस्थान को प्रोफेसर के एनजीओ से संबंधों की कोई जानकारी नहीं थी, तो यह पोस्ट कैसे की गई? यह विरोधाभास IIT गाँधीनगर की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।

कश्मीर पर विवादास्पद सेमिनार

जनवरी 2021 में IIT गाँधीनगर के HSS विभाग ने एक सेमिनार आयोजित किया था, जिसमें यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्दर्न कोलोराडो की प्रोफेसर अत्थर जिया को बुलाया गया था। सेमिनार का विषय था, “एथनो-नेशनलिस्ट-नियोकॉलोनियल डेवलपमेंट, जेंडर डिस्क्रिमिनेशन और द केस ऑफ कश्मीर।” इस विषय में कश्मीर को भारत से अलग दिखाने की कोशिश की गई थी।

‘नियोकॉलोनियल’ का मतलब है आधुनिक उपनिवेशवाद, जिसमें एक शक्तिशाली देश या संगठन किसी कमजोर क्षेत्र की आंतरिक नीतियों में हस्तक्षेप करता है। इस सेमिनार में कश्मीर को भारत के ‘कब्जे’ वाले क्षेत्र के रूप में पेश करने की कोशिश की गई, जबकि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है।

प्रोफेसर अत्थर जिया खुद एक विवादास्पद व्यक्ति हैं, जो कश्मीर को ‘कब्जे वाला’ क्षेत्र कहती हैं और भारत-विरोधी प्रचार में शामिल रही हैं। जब RTI में इस सेमिनार के बारे में सवाल पूछा गया, तो IIT गाँधीनगर ने जवाब दिया कि अत्थर जिया को सिर्फ ‘जेंडर इश्यू’ पर बोलने के लिए बुलाया गया था और उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर उनका चयन हुआ था। लेकिन यह जवाब संतोषजनक नहीं था, क्योंकि सेमिनार का विषय स्पष्ट रूप से कश्मीर और भारत को अलग-अलग दिखाने की कोशिश करता था।

IIT गाँधीनगर की गतिविधियों पर गंभीर सवाल

इन सभी घटनाओं ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। लोग पूछ रहे हैं कि क्या सरकारी फंड से चलने वाले शिक्षण संस्थानों में प्रोफेसर इस तरह की टिप्पणियाँ कर सकते हैं? क्या वे एक खास विचारधारा को बढ़ावा देकर प्रोपेगेंडा का हिस्सा बन सकते हैं?

IIT गाँधीनगर टैक्सपेयर्स के पैसे से चलता है। अगर यहाँ के प्रोफेसर इस तरह की गतिविधियों में शामिल हैं, तो वहाँ पढ़ने वाले छात्रों पर इसका क्या असर पड़ेगा? क्या IIT गाँधीनगर में एक खास वैचारिक माहौल बनाया जा रहा है, जो छात्रों को प्रभावित कर सकता है? खास तौर पर तब, जब HSS विभाग पहले भी इस्लामिक रिसर्च और एनजीओ से जुड़े विवादों में फँस चुका है।

इन सवालों का जवाब अभी तक नहीं मिला है। न ही संस्थान की ओर से इन मामलों में कोई ठोस कार्रवाई हुई है। लेकिन प्रोफेसर अमित अरोड़ा के पोस्ट्स और HSS विभाग के पुराने विवादों ने IIT गाँधीनगर की कार्यप्रणाली और शैक्षिक माहौल पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह देखना बाकी है कि इन विवादों का समाधान कैसे होता है और क्या संस्थान कोई कदम उठाएगा।



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