बांग्लादेश अर्थव्यवस्था

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्तापलट हुए एक वर्ष पूरा होने को है। हसीना की जगह पर मुहम्मद यूनुस बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज हैं। वह ‘अंतरिम सरकार’ के ‘मुख्य सलाहकार’ हैं। इस एक वर्ष में बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ तेजी से बढ़ा है। हिन्दुओं और बाक़ी अल्पसंख्यकों का भी जीना मुहाल हो गया है। लेकिन इन सबसे इतर बांग्लादेश एक और फ्रंट पर भी फेल हो रहा है। यह फ्रंट है अर्थव्यवस्था का। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को बीते एक वर्ष में अराजकता के चलते बड़े नुकसान झेलने पड़े हैं।

तख्तापलट आंदोलन ने किया अरबों का नुकसान

शेख हसीना और आवामी लीग को बांग्लादेश की सत्ता से बेदखल करने के लिए जून-जुलाई से हिंसा चालू हो गई था। इस दौरान बांग्लादेश भर में पहले बंद बुलाए गए। फैक्ट्रियों पर ताले डलवाए गए। पूरे देश में हिंसा हुई और पुलिस को तक निशाना बनाया गया। इस दौरान वह फैक्ट्रियाँ भी निशाने पर रहीं, जिनके मालिक आवामी लीग से जुड़े हुए थे। इस दौरान बांग्लादेश अर्थव्यवस्था के केंद्र ढाका और चटगाँव आदि पूरी तरह बंद रखे गए और यहाँ भी खूब बवाल हुआ।

2 महीने से ज्यादा चले इस बवाल के चलते बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को 10 बिलियन डॉलर (₹85 हजार करोड़) का नुकसान हुआ। यह बांग्लादेश की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग 2%-2.5% तक था। बांग्लादेश में इस हँगामे के दौरान कपड़ा फैक्ट्रियाँ बंद हुईं, इससे हजारों लोग बेरोजगार हुए। एक रिपोर्ट कहती है कि इस दौरान बांग्लादेश में लगभग 1.3 लाख कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वालों को अपनी नौकरी खोनी पड़ी। इसके अलावा इस दौरान कपड़ा फैक्ट्रियाँ बंद होने के चलते बांग्लादेश के निर्यात भी गोता लगा गए।

एक और रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश में जुलाई-अगस्त तक के इस हंगामे के चलते 800 मिलियन डॉलर (₹7000 करोड़) के आयातों का नुकसान हुआ। इसी दौरान ₹32 हजार करोड़ के से भी अधिक विदेशी आर्डर बांग्लादेशी कपड़ा निर्माताओं के हाथ से निकल गए। यह ऑर्डर उन देशों में गए जहाँ स्थिरता थी। बड़ी मात्रा में कपड़ो के ऑर्डर भारत और विएतनाम जैसे देशों में गए। इससे बांग्लादेश में बेरोजगारी तो हुई ही, उसको विदेशी मुद्रा का नुकसान भी हुआ।

आंदोलन के बाद भी हालात सही नहीं

आंदोलन के दौरान जहाँ बांग्लादेश को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ तो वहीं आंदोलन के बाद भी कोई हालात नहीं बदले। एक साल के भीतर बांग्लादेश की इकॉनमी संघर्ष कर रही है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था वर्तमान में काफी धीमे बढ़ रही है। बांग्लादेश में GDP वृद्धि डर 2024-25 में 4% से भी नीचे आ गई जबकि इससे पहले के सालों में यह औसतन 6.5% रही थी। बांग्लादेश को आर्थिक मोर्चे पर सफल देश माना जाने लगा था।

बांग्लादेश की सबसे तेज आर्थिक वृद्धि प्रधानमंत्री शेख हसीना के दौर में ही हुई। 2010-24 के बीच बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो गई। जहाँ 2010 में यह (लगभग) 1300 डॉलर (₹1.12 लाख) से 2600 डॉलर (₹2.25 लाख) के पास पहुँच गई थी। बांग्लादेश को नए एशियन टाइगर का ख़िताब दिया जाने लगा था। लेकिन यह आर्थिक वृद्धि का सिलसिला 2024 में आकर रुक गया। बांग्लादेश की आर्थिक प्रगति को इस्लामी हिंसा और कट्टरपंथ की नजर लग गई।

मई, 2025 में आई एक रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश में वर्तमान में बेरोजगारी ऐतिहासिक ऊँचे स्तर पर है। यह अक्टूबर-दिसम्बर 2024 की तिमाही में 4.63% के स्तर पर पहुँच गए। इस दौरान बांग्लादेश में 27 लाख से अधिक लोग बेरोजगार थे। इसके पीछे का सीधा कारण बांग्लादेश में हुई हिंसा और उसके बाद आई अस्थिरता समझ आता है। बांग्लादेश में सरकारी नौकरियाँ भी यूनुस सरकार ने नहीं निकाली हैं। इससे बड़ी संख्या में फैक्ट्रियाँ बंद हुईं तो लोग बेरोजगार हुए।

इसके अलावा बांग्लादेश में अंतरिम सरकार होने के चलते कई गतिविधियाँ रुकी हुई हैं। यह स्थिति आगे और गंभीर हो सकती है। बेरोजगारी का यह आँकड़ा 5% तक पहुँच सकता है, यह आंशका जताई गई है। बांग्लादेश में तख्तापलट के पहले हुई हिंसा के चलते बाहरी निवेशकों का भी विश्वास भी डगमगाया है। यह बांग्लादेश के लिए चिंता का सबब है। बांग्लादेश की इ समस्या में और भी बढ़ावा विएतनाम जैसे देश हैं, जो कपड़ों से लेकर बाकी सामानों में उसे कई बाजारों में पटखनी दे रहे हैं।

भारत से रिश्ते बिगाड़ कुछ नहीं हुआ हासिल

भारत से रिश्ते बिगाड़ने के चलते बांग्लादेश को आर्थिक मोर्चे पर नुकसान भी झेलना पड़ा है। भारत ने मई, 2025 में बांग्लादेश से आने वाले रेडिमेड कपड़ों, प्रोसेस्ड फ़ूड और फ्रूट ड्रिंक्स आदि पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। भारत ने बांग्लादेश से आने वाले प्लास्टिक और लकड़ी के सामान पर भी कई तरह के प्रतिबन्ध लगाए थे। भारत ने कहा था कि वह अब बांग्लादेश से आने वाले कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, बेक्ड सामान, स्नैक्स, चिप्स और कन्फेक्शनरी सामान को असम, मेघालय, त्रिपुरा-मिजोरम और पश्चिम बंगाल में घुसने नहीं देगा।

भारत द्वारा लगाए इन प्रतिबन्धों के चलते बांग्लादेश को वार्षिक तौर 770 मिलियन डॉलर (₹6500 करोड़+) का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया था। यह बांग्लादेश के भारत को कुल निर्यातों का लगभग 42% बनता है। भारत व्यापार के मामले में बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा पार्टनर है। हालाँकि, इसकी शुरुआत बांग्लादेश की तरफ से हुई थी। बांग्लादेश ने अप्रैल, 2025 में भारत मछली, कपड़े समेत कई उत्पादों के आयात पर रोक लगा दी थी। उसने रास्ते के लिए भी भारत से 1.8 टका प्रति टन का शुल्क लेना चालू कर दिया था।

हिंसा, अराजकता और लोकतंत्र के गिरावट का रहा एक साल

बांग्लादेश जहाँ आर्थिक मोर्चे पर यूनुस सरकार के एक वर्ष के दौरान गोते लगा रहा है तो वहीं इसी समय में हिंसा भी जम कर हुई है। लोकतंत्र का भी गला यूनुस सरकार ने घोंटा है। बांग्लादेश में तख्तापलट के एक वर्ष के भीतर हिन्दुओं और बाक़ी अल्पसंख्यकों पर 2400 से अधिक हमले हुए हैं। इनमें कई हमले बहुचर्चित रहे हैं। हाल ही में एक हिन्दू महिला का BNP के एक नेता घर में घुस कर रेप किया था और इसका वीडियो भी वायरल कर दिया था।

इस्लामी कट्टरपंथियों को तो छोडिए, बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार ने खुद ढाका में रेलवे की जमीन पर बता कर एक पुराना हिन्दू मंदिर ढहा दिया। हिन्दुओं के लिए जिन्होंने आवाज उठाई, उनका भी इस एक वर्ष में बुरा हाल किया गया। बांग्लादेश में हिन्दुओं पर जारी अत्याचार के चलते चटगाँव में बड़ा प्रदर्शन हुआ। इसका नेतृत्व संत चिन्मय दास ने किया। चिन्मय दास से चिढ़े इस्लामी कट्टरपंथियों ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा लगा दिया। उनको महीनों तक सुनवाई भी नहीं मिली। उनके वकील तक पर हमला हुआ।

जब आखिर में उनको जमानत भी मिली तो फिर इस्लामी कट्टरपंथी भड़के और उन्होंने जमानत पर रोक लगवा दी। इसके अलावा मोहम्मद यूनुस सरकार विपक्ष का दमन भी कर रही है। वह लोगों की स्मृतियों से तक उसे मिटा देना चाहती है। मोहम्मद यूनुस सरकार ने बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर रहमान के पैतृक आवास को टूटने दिया। दंगाइयों ने उस धानमंडी घर की ईंट-ईंट तक तोड़ दी, जिससे बांग्लादेश को आजादी मिली।

यह सब इसलिए होने दिया गया क्योंकि इसका कनेक्शन शेख हसीना से है। गुरु रबीन्द्र नाथ टैगोर के घर को तोड़ा गया। मोहम्मद यूनुस सरकार देखती रही। सत्यजित रे का घर भी गिरते-गिरते बचा। इस पर भी मोहम्मद यूनुस सरकार ने बेशर्म रवैया दिखाया। कहानी यहीं तक नहीं रुकती बल्कि शेख मुजीब से जुड़ा हर एक चिन्ह मिटाने का प्रयास लगातार किया गया। चाहे उनकी जयंती पर होने वाले समारोह को रोका जाना हो या फिर नोटों पर से उनका फोटो हटाना।

बांग्लादेश की सरकार इस विरासत मिटाने का हर प्रयास कर रही है। मोहम्मद यूनुस की सरकार के इन क़दमों के पीछे उसका इस्लामी कट्टरपंथ का एजेंडा है, जो मुजीब को नहीं देखना चाहता। यह सब करने के बाद के बाद मोहम्मद यूनुस बिना चुने ही बांग्लादेश को हमेशा के लिए अपने शासन तले रखना चाहते हैं। मोहम्मद यूनुस को जब सत्ता सौंपी गई थी, तब ही उसका कोई संवैधानिक आधार नहीं था। उन्हें अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में लाया गया था।

मोहम्मद यूनुस को सत्ता पर काबिज हुए 1 वर्ष हो गया है। लेकिन चुनाव का नाम लेते ही वह बिदक जाते हैं। हाल ही में बांग्लादेश में इसी को लेकर एक संकट तक पैदा हो गया था। आखिर में मोहम्मद यूनुस ने 2026 के मध्य तक चुनावों की बात किसी तरह कही। उनके इन सब क़दमों से लगता है कि वह स्वयं ही बांग्लादेश के बिना चुने तानाशाह बनना चाहते हैं।

Source link

Search

Categories

Recent Posts

Tags

Gallery