आज का युवा वर्ग, जिसे हम जेनरेशन Z (Gen-Z) कहते हैं, इस बदलती हुई तेज रफ्तार डिजिटल दुनिया में जीता है। प्यार अब चिट्ठियों और मुलाकातों का नहीं, बल्कि इंस्टाग्राम लाइक्स, टिन्डर स्वाइप्स और सिचुएशनशिप्स जैसी चीजों का हिस्सा मात्र बन कर रह गया है।
रिश्ते होने के बावजूद भी लोगों को अकेलापन महसूस होता है। कभी छोटी सी अनबन से रिश्ते टूट जाते हैं, कभी आपस का प्रेम हिंसा में बदल जाता है। आज के समय में रिश्तों को लेकर भावनात्मक समझ की बहुत कमी दिखती है।
दिल्ली विश्वविद्यालय ने इन सब बातों को देखते हुए और इस जरूरत को ध्यान में रखते हुए एक नया पाठ्यक्रम शुरू किया है, जिसे ‘नेगोशिएटिंग इंटिमेट रिलेशनशिप’ नाम दिया गया है। जिसमें रिश्तों को बेहतर ढंग से समझने, उनकी सीमाएँ तय करने, सहमति को पहचानने और बेहतर कम्यूनिकेशन पर जोर दिया जाएगा।
यह पहल इसलिए भी बेहद जरूरी है क्योंकि हाल के वर्षों में कोमल, महक और हाल ही में निकिता और मुस्कान जैसे मामलों ने साबित कर दिया है कि जब रिश्तों में समझ नहीं होती, तो प्यार भी हिंसा में बदल सकता है और सही-गलत की समझ को भी खत्म कर सकता है।
रिश्तों में बढ़ती हिंसा
आज का समाज एक बहुत ही खतरनाक मोड़ पर आ गया है, जहाँ प्यार जैसा खूबसूरत रिश्ता भी नफरत, ईर्ष्या और हिंसा में बदलता जा रहा है। हाल के दिनों में दिल्ली में कोमल, विजयलक्ष्मी और महक जैसी युवतियों की हत्या उनके ही साथियों ने कर दी, जिससे समाज दहल उठा।
इससे पहले श्रद्धा वाकर का मामला भी देश को हिला चुका था। लेकिन यह केवल लड़कों द्वारा की जा रही हिंसा तक सीमित नहीं है। निकिता और मुस्कान जैसे मामलों ने यह साबित कर दिया है कि लड़कियाँ भी अब असफल रिश्तों में हिंसा पर उतर आ रही हैं।
मुस्कान, जो एक विवाहित महिला थी, उस पर अपने पति की हत्या का आरोप है, और निकिता के केस में भी प्रेमी की जान चली गई। दूसरी ओर, ऐसे कई लड़के भी सामने आए हैं जो प्रेम में असफल होकर आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं।
यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर हम रिश्तों को समझ क्यों नहीं पा रहे? रिश्तों में संवाद की कमी, अस्वीकृति को न सह पाने की आदत, और भावनात्मक परिपक्वता की कमी आज के युवाओं को इस हद तक ले जा रही है कि वे उस इंसान को, जिससे कभी बेइंतहा प्यार करते थे, मार डालते हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में होने वाली हत्याओं का तीसरी सबसे बड़ी वजह उनके टूटे प्रेम संबंध थे। यह आँकड़ा एक चेतावनी है कि अब रिश्तों को समझना, सीमाएँ तय करना और न को स्वीकार करना केवल भावनात्मक नहीं बल्कि सामाजिक सुरक्षा का मुद्दा बन चुका है।
हमें यह समझना होगा कि किसी के इनकार को अपनी हार न समझें, न ही किसी इंसान को अपनी ‘मिल्कियत’ समझें। प्यार में बराबरी, सहमति और सम्मान जरूरी है। जब रिश्ते खत्म हों तो भी इंसानियत बची रहनी चाहिए। हमें युवाओं को बात-चीत करना, इमोशनल रूप से मजबूत बनना और जरूरत पड़ने पर मानसिक मदद लेना सिखाना होगा, तभी हम इस समाज को रिश्तों की हिंसा से बचा सकते हैं।
रिश्तों की शिक्षा
आज के समय में रिश्तों को समझना और उन्हें बेहतर बनाना बेहद ज़रूरी हो गया है। बढ़ते तनाव, टूटते रिश्ते और गलतफहमियों के इस दौर में दिल्ली विश्वविद्यालय ने एक सराहनीय कदम उठाया है। यहां मनोविज्ञान विभाग ने ‘रिश्तों की शिक्षा’ पर एक पाठ्यक्रम शुरू किया है।
यह कोर्स सभी विषयों के स्नातक छात्रों के लिए खुला है। इसका उद्देश्य सिर्फ रिश्तों की जानकारी देना नहीं, बल्कि छात्रों को संवाद, सम्मान और सीमाओं को समझने व अपनाने की कला सिखाना है।
भारत में यह अपनी तरह की पहली पहल है, लेकिन समय की माँग को देखते हुए इसकी जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। आजकल युवाओं को रिश्तों में सही व्यवहार, सहमति का महत्व और भावनात्मक समझ की शिक्षा मिलना बेहद जरूरी है।
दूसरे देशों की बात करें तो अमेरिका की हार्वर्ड एक्सटेंशन स्कूल में ऐसा ही एक कोर्स ‘द साइकालजी ऑफ क्लोज रिलेशनशिप्स’ के नाम से पढ़ाया जाता है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे Coursera, edX और Udemy पर भी रिश्तों से जुड़े कई कोर्स मिलते हैं।
वहीं, यूके में स्कूली स्तर पर भी रिश्तों और भावनाओं की शिक्षा दी जाती है। यह दिखाता है कि रिश्तों की शिक्षा अब एक वैश्विक जरूरत बन चुकी है और दिल्ली विश्वविद्यालय का यह कदम सही समय पर सही दिशा में लिया गया एक अहम शुरुआत है।
डिजिटल दुनिया में रिश्तों की समस्या
आज जब हर चीज एक क्लिक पर है, तो रिश्ते भी तेजी से बनते और टूटते हैं। सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स ने प्यार को आसान बना दिया है, लेकिन इसमें गहराई कहीं खो गई है। लोग दूर चले जाते है, बिना कोई वजह बताए और रिश्ता खत्म कर देते हैं। इन सभी का असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।
युवा खुद को अकेला पाते है और बेबस महसूस करते हैं। बिना किसी बातचीत के रिश्ते बनाना और बिना कुछ बताए उसको खत्म कर देना, आज कल के समय की आम बात हो गई है। इसलिए यह कोर्स युवाओं को डिजिटल रिश्तों को समझाने में मदद करेगा।
रिश्तों का असली आधार
इमोशनल इंटेलीजेंस (EQ) का मतलब है अपनी और दूसरों की भावनाओं को समझना, उसे व्यक्त करना साथ ही उस पर जवाब देना। एक रिपोर्ट के अनुसार EQ जितना ज्यादा होता है, उतना ही रिश्तों में संतुलन, सहानुभूति और समझदारी रहती है। आज के रिश्तों में EQ की कमी दिखती है।
लोग अपनी भावनाओं को पहचान ही नहीं पाते, इसलिए वे अक्सर गुस्से, ईर्ष्या या असुरक्षा से रिश्तों को बिगाड़ देते हैं। इस कोर्स से युवाओं को EQ को बढ़ाने में मदद मिलेगी, जिससे वे न सिर्फ बेहतर साथी बनेंगे बल्कि ज्यादा समझदार इंसान भी बनेंगे।
भारत जैसे देश में प्यार केवल दो लोगों का मामला नहीं होता। जाति, धर्म, लिंग और परिवार का भी दखल इसमें बहुत मायने रखती है। सोनम रघुवंशी का मामला इसका बड़ा उदाहरण है, जिसमें लड़की को उसकी मर्ज़ी के खिलाफ शादी करने को मजबूर किया गया और बाद में उस पर हत्या का आरोप लगा।
कई राज्यों में लिव-इन संबंधों को लेकर कठोर नियम बनाए जा रहे हैं, जैसे उत्तराखंड का रजिस्ट्रेशन कानून। इस कोर्स को इन सामाजिक चुनौतियों के प्रति भी संवेदनशील होना होगा, ताकि छात्र समझ सकें कि सच्चा प्रेम तब ही संभव है, जब समाज और कानून भी उस पर यकीन करे।
इस कोर्स से समाज को पहुँचेगा फायदा
दिल्ली विश्वविद्यालय का यह पाठ्यक्रम केवल किताबों तक सीमित नहीं है, यह एक भावनात्मक क्रांति की शुरुआत है। यह युवाओं को न सिर्फ रिश्तों की समझ देगा, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य, आत्म-सम्मान और सामाजिक जीवन को भी बेहतर बनाएगा। यह कोर्स रिश्तों को लेकर एक नई सोच विकसित करेगा जहाँ प्रेम का मतलब केवल आकर्षण नहीं, बल्कि सम्मान, सहमति और संवाद होगा।
आज के समय में जब रिश्ते गहराई के बजाय केवल सतह पर टिके हैं, जब हिंसा प्रेम के नाम पर हो रही है और जब समाज प्यार करने वालों को डराने की कोशिश करता है, ऐसे में इस कोर्स से युवा बहुत कुछ सीख सकते है, जो उन्हे बेहतर इंसान और साथी बनने में मदद करेगा।