बिहार में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के बाद संशोधित वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट जारी कर दिया है। नए ड्राफ्ट में लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं। वह वोटर हटाए गए हैं जिनकी या तो मौत हो चुकी या फिर वह दिए गए पते पर मिले नहीं।
इस SIR प्रक्रिया में बिहार के मुस्लिम बहुल जिले किशनगंज में 1.45 लाख मतदाता के नामों को नई सूची से हटा दिया गया है। यह आँकड़ा जिले के कुल मतदाताओं की संख्या का करीब 11.8% है। विधानसभा चुनावों में जहाँ 4-5% वोटों की संख्या पर हार-जीत तय हो जाती है, वहाँ इस आँकड़े के महत्व को समझना कोई बड़ी बात नहीं है।
गौरतलब है कि मौजूदा वक्त में किशनगंज में मुस्लिमों की आबादी करीब 70% है और यहाँ अवैध घुसपैठ बड़ी समस्या है। यह जिला पश्चिम बंगाल से सीमा भी साझा करता है। यह तेजी से डेमोग्राफी बदलाव की बात भी पहले सामने आ चुकी है।
किशनगंज में बचे कितने वोटर?
पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे इस जिले में 4 विधानसभा क्षेत्र हैं। चुनाव आयोग के आँकड़ों से पता चलता है कि SIR की प्रक्रिया किए जाने से पहले 24 जून 2025 को जिले में मतदाताओं की संख्या 12,31,910 थी। इस प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग को 10,86,242 गणना प्रपत्र ही प्राप्त हुए। यानी अब जो नया ड्राफ्ट चुनाव आयोग ने जारी किया है उसमें 1,45,668 मतदाताओं के नाम कट गए हैं। यानी वोटर लिस्ट से 11% से अधिक वोटर कम हो गए हैं।
SIR से पहले ही शुरू हुआ फर्जी वोटर बनाने का खेल?
चुनाव आयोग द्वारा SIR की प्रक्रिया शुरू किए जाने से पहले ही किशनगंज में नए निवास प्रमाण पत्र बनवाने वालों लोगों की कई गुना तक बढ़ गई थी। इस अप्रत्याशित बढ़ोतरी को वोटर लिस्ट में गड़बड़ी किए जाने की आशंका से भी जोड़कर देखा जा रहा था।
बिहार के उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने भी कुछ हफ्तों पहले दावा किया था कि किशनगंज में 2025 में जनवरी से मई तक हर महीने औसतन 26 हजार से 28 हजार तक आवेदन निवास प्रमाण पत्र के लिए आ रहे थे लेकिन जुलाई के 6 दिनों में ही निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिए 1.28 लाख से अधिक आवेदन आ गए।
सम्राट चौधरी ने यह भी बताया कि पैन कार्ड, आधार कार्ड और पासपोर्ट जैसे दस्तावेजों में समय और प्रमाण लगते हैं जबकि निवास प्रमाण पत्र आसानी से बन जाता है। उन्होंने इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा था।
किशनगंज में 100 की आबादी पर 126 आधार कार्ड
किशनगंज में फर्जी वोटर बनाए जाने से जुड़ा शक केवल निवास प्रमाण पत्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि कुछ दिनों पहले सामने आए आधार कार्ड सैचुरेशन के आँकड़ों से भी ऐसे कई सवाल खड़े हुए थे।
बिहार के कई मुस्लिम बहुल ज़िलों में आधार कार्ड सैचुरेशन 100% से भी ज्यादा था और किशनगंज में यह आँकड़ा 126% था। यानी यहाँ 100 लोगों की आबादी पर 126 आधार कार्ड जारी किए गए हैं।
आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से देखें तो किशनगंज की आबादी 20,26,541 है लेकिन वहाँ 21,31,172 आधार कार्ड बनाए जा चुके हैं। मतलब यहां आबादी से 1 लाख से भी ज्यादा आधार कार्ड बनाए गए।
जाहिर है कि ये आँकड़े बताते हैं कि या तो फर्जी आधार कार्ड बनाए जा रहे हैं या अवैध घुसपैठियों को आधार कार्ड जारी किए गए हैं। किशनगंज की सीमा नेपाल से लगी हुई है और जिस सीमांचल क्षेत्र में यह स्थित है उसमें लंबे समय से अवैध घुसपैठ की समस्या रही है।
किशनगंज में बड़ी समस्या है अवैध घुसपैठ
पश्चिम बंगाल की सीमा पर बसा किशनगंज देश की आजादी के वक्त हिंदू बहुल जिला हुआ करता था लेकिन आजादी के बाद के दशकों में यहां की डेमोग्राफी तेजी से बदली है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, किशनगंज में मौजूदा वक्त में मुस्लिम की आबाद करीब 70% है।
सम्राट चौधरी तक यह दावा कर चुके हैं कि किशनगंज जैसे जिलों में अवैध घुसपैठियों की संख्या बहुत अधिक है।
किशनगंज से बांग्लादेश की दूरी भी बहुत ज्यादा नहीं है और मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि जब से बांग्लादेश में शेख हसीना को सत्ता से हटाया गया है, तब से अवैध घुसपैठ में तेज़ी आ गई है।
जुलाई महीने में ही किशनगंज में अलग-अलग जगहों पर 4 बांग्लादेशियों को पकड़ा गया है। ये लोग अवैध घुसपैठ कर यहां पहुँचे और लोगों के घरों में काम कर यहीं स्थाई तौर पर बसने का प्लान बना रहे थे। यहाँ बसने के लिए बांग्लादेशी अपना नाम तक बदल लेते हैं और फर्जी कागजात बनवाते हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, SIR की प्रक्रिया के दौरान भी किशनगंज में ऐसे बहुत लोग मिले जो नेपाल, बांग्लादेश या म्यांमार से यहाँ आए थे और अब इन लोगों ने यहीं पर आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज बनवा लिए हैं।