कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया

इंदिरा गाँधी की अगुवाई में कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए 21 महीने लंबे आपातकाल की 50वीं वर्षगाँठ से पहले कर्नाटक सरकार एक नया कानून ला रही है। इसका नाम है कर्नाटक मिसइन्फॉर्मेशन एंड फेक न्यूज (प्रतिबंध) बिल, 2025।

बताया जा रहा है कि इस कानून का मकसद सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और गलत जानकारी फैलाने पर रोक लगाना है। इस बिल के तहत अगर कोई व्यक्ति ऐसी जानकारी साझा करता है जिसे सरकार झूठी या भ्रामक मानती है, तो उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा और उसे जेल भी हो सकती है।

यह कदम कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए 21 महीने की इमरजेंसी की 50वीं वर्षगाँठ से पहले उठाया जा रहा है। इस बिल के जरिए राज्य सरकार को यह अधिकार मिल जाएगा कि वह तय कर सके कि कौन सी जानकारी फर्जी है और जिसके आधार पर कानूनी कार्रवाई कर सके।

इस प्रस्तावित बिल के तहत अगर कोई व्यक्ति ऐसी जानकारी फैलाता है जो जनस्वास्थ्य, सुरक्षा, शांति या चुनावों की निष्पक्षता के लिए खतरा बनती है, तो उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है।

इस कानून के तहत दोषी पाए जाने पर 2 साल की न्यूनतम सजा हो सकती है, जिसे बढ़ाकर 5 साल तक किया जा सकता है, साथ में जुर्माना भी लगेगा। गंभीर मामलों में सजा 7 साल तक की जेल या ₹10 लाख तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति प्रतिबंधित जानकारी को फैलाने में मदद करता है, तो उसे भी 2 साल तक की सजा हो सकती है।

किसी भी ‘झूठी सामग्री’ को ब्लॉक करने और प्रतिबंधित करने के लिए छह सदस्यीय प्राधिकरण

विधेयक के मसौदे में सोशल मीडिया पर फर्जी समाचार और भ्रामक जानकारी को रोकने के लिए एक छह सदस्यीय सोशल मीडिया नियामक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा।

यह प्राधिकरण सोशल मीडिया पर किसी भी ऐसी सामग्री को प्रतिबंधित, ब्लॉक या हटाने का अधिकार रखेगा जिसे वह गलत, भ्रामक या हानिकारक मानता है। इसे यह सुनिश्चित करने की पूरी शक्ति दी जाएगी कि ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर फर्जी समाचार या हानिकारक सामग्री का प्रसार न हो।

इस प्राधिकरण में छह सदस्य होंगे: कन्नड़ और संस्कृति मंत्री जो पदेन अध्यक्ष होंगे, विधान सभा और विधान परिषद से एक-एक सदस्य, राज्य सरकार द्वारा नियुक्त सोशल मीडिया कंपनियों के दो प्रतिनिधि, और एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी जो सचिव के रूप में कार्य करेंगे।

प्रस्तावित विधेयक के तहत विशेष न्यायालय स्थापित किए जाएँगे

इस विधेयक के तहत राज्य सरकार को कर्नाटक के अंदर और बाहर रहने वाले लोगों के खिलाफ भी फर्जी या भ्रामक जानकारी फैलाने पर कार्रवाई करने के लिए व्यापक अधिकार दिए गए हैं।

इसके प्रावधानों के अनुसार, आरोपित लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेष न्यायालय बनाया जाएगा। यह विशेष न्यायालय गलत जानकारी फैलाने वाले सोशल मीडिया मध्यस्थों, प्रकाशकों, प्रसारकों या किसी अन्य व्यक्ति को रोकने और उन पर नियंत्रण रखने के निर्देश दे सकेगा।

कॉन्ग्रेस, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का इतिहास और आपातकाल

बता दें कि कॉन्ग्रेस पार्टी पर बार-बार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के आरोप लगे हैं और अब वह ऐसा विधेयक ला रही है जिससे भविष्य में सेंसरशिप और राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका बढ़ जाती है।

आपातकाल के दौरान दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया गया था, लाखों लोगों को जेल में डाला गया और समाचार पत्रों पर प्री-सेंसरशिप लागू की गई थी। इसे भारतीय लोकतंत्र पर एक गंभीर हमला माना गया है।

अब कर्नाटक सरकार का प्रस्तावित विधेयक सरकार को यह अधिकार देता है कि वह अपनी पसंद के अनुसार किसी भी बयान या सामग्री को गलत बताकर उस पर कार्रवाई कर सके, जिससे निष्पक्ष अभिव्यक्ति पर खतरा बढ़ जाता है।

ये भी मालूम हो कि कॉन्ग्रेस पार्टी ने कई मौकों पर मीडिया और फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की है। 2018 में कॉन्ग्रेस ने ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ फिल्म पर रोक लगाने की माँग की थी क्योंकि उसमें यह दिखाया गया था कि सोनिया गाँधी सरकार को नियंत्रित करती थी।

वही राहुल गाँधी ने ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म का समर्थन किया, जो उस समय भाजपा-अकाली सरकार पर आधारित थी। उन्होंने फिल्म ‘मर्सेल’ का भी समर्थन किया जिसमें नोटबंदी की आलोचना की गई थी और दावा किया कि मोदी सरकार इस फिल्म को दबाने की कोशिश कर रही है।

कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा पत्रकारों को निशाना बनाए जाने के भी कई उदाहरण हैं। मई 2022 में पवन खेड़ा ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी के खिलाफ मामला दर्ज करवाया क्योंकि उनके चैनल ने कॉन्ग्रेस सरकार से जुड़ी खबरें दिखाई थी।

हाल ही में कॉन्ग्रेस-शासित तेलंगाना में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा कि जो उनके और उनके परिवार के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करेगा, उसे नंगा करके घुमाया जाएगा। यह बयान तब आया जब दो महिला पत्रकारों को एक किसान का इंटरव्यू लेने पर हिरासत में लिया गया, जिसने सरकार की आलोचना की थी।

कुल मिलाकर इस लेख में ये सारी जानकारी पाठकों को इसलिए दी जा रही है ताकि पता रहे कि कैसे कॉन्ग्रेस पार्टी बार-बार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने की कोशिश करती रही है और अब नया विधेयक भी उसी दिशा में एक कदम हो सकता है।

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