वाराणसी के जगतगंज इलाके में एक धार्मिक स्थल पिछले 42 वर्सों से विवाद के चलते बंद पड़ा था। इसे अब दोबारा श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है। यह स्थल जहाँ एक ओर से सिखों के पवित्र गुरुद्वारे के रूप में जाना जाता है और दूसरी ओर से हिंदू समुदाय के लिए बड़े हनुमान मंदिर के रूप में श्रद्धा का केंद्र रहा है।
1984 के दंगों के दौरान इस जगह को प्रशासन द्वारा सील कर दिया गया था। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल, सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप नारायण सिंह की मध्यस्थता और दोनों पक्षों की सहमति के बाद अब इसे फिर से खोल दिया गया है। सोमवार (21 जुलाई 2025) को परिसर के दरवाजे पर लगे जंग लगे ताले हटने के बाद सिख और हिंदू समुदाय के लोगों में खुशी की लहर है।

मंदिर और गुरुद्वारे का इतिहास
रिपोर्ट के अनुसार, इस जगह का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व दोनों समुदायों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अनुसार, सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर करीब दो सौ साल पहले जब काशी आए थे, तब वे नीचीबाग क्षेत्र (जहाँ वर्तमान में गुरुद्वारा है) में रुके थे।
वे अपने अनुयायियों से मिलने के लिए कई बार जगतगंज भी आए थे। इसलिए यह भूमि सिख समुदाय के लिए पूजनीय मानी जाती है। समय के साथ यहाँ एक गुरुद्वारा भी स्थापित हुआ। वहीं हिंदू समुदाय द्वारा यहाँ श्री बड़े हनुमान मंदिर की स्थापना की गई थी। दोनों धार्मिक स्थल कई सालों से अस्तित्व में रहे और लोगों की आस्था का केंद्र बने रहे।
क्यों बंद किया गया था धार्मिक स्थल?
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की 31 अक्टूबर 1984 को उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। जगतगंज में स्थित यह स्थल गुरुद्वारा और मंदिर दोनों के लिए एक स्थान था।
इसलिए प्रशासन ने किसी भी सांप्रदायिक तनाव या टकराव को रोकने के उद्देश्य से इस स्थल को सील कर दिया। उस समय मंदिर और गुरुद्वारा दोनों का पूरा तरह से निर्माण नहीं हुआ था। जिले में बढ़ते तनाव को देखते हुए, प्रशासन ने इस जगह को पूरी तरह बंद कर दिया ताकि कोई हादसा न हो।
विवाद कैसे बढ़ा और क्या-क्या हुआ?
समय बीतने के साथ, इस जमीन के मालिक हक और कब्जे को लेकर दोनों समुदायों के बीच विवाद गहराता चला गया। जिसके बाद मंदिर प्रबंध समिति और गुरुद्वारा प्रबंध समिति, दोनों ने ही उस जगह को लेकर अपना-अपना दावा किया।
यह विवाद लोकल कोर्ट में पहुँच गया, जहाँ यह मामला कई दशकों तक लंबित रहा। तीन हजार से साढ़े तीन हजार वर्गफीट भूमि को लेकर चल रहे इस विवाद में समय-समय पर अस्थायी निर्माण होते रहे, जिससे विवाद बढ़ता गया। दोनों पक्षों के बीच बातचीत की कई कोशिशें हुईं, लेकिन सफल नहीं हो पाईं। इस दौरान धार्मिक भावनाएँ भी गहराती रहीं, जिससे विवाद बढ़ता गया।
लगभग दो महीने पहले स्वतंत्रता सेनानी बाबू जगत सिंह के वंशज और सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप नारायण सिंह ने एक बार फिर दोनों पक्षों को सुलह के लिए तैयार किया। इसके बाद दोनो पक्षों में कई बार बातचीत भी हुई।
इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर यह प्रक्रिया और तेज हुई। आखिरकार श्री बड़े हनुमान मंदिर समिति के व्यवस्थापक श्याम नारायण पांडे और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष सरदार करन सिंह सभरवाल के बीच सहमति बनी। दोनों ने यह तय किया कि भूमि को बराबर-बराबर बाँट दिया जाएगा और दोनों समुदाय अपनी-अपनी आस्था के अनुसार गुरुद्वारा और मंदिर का निर्माण करेंगे।
वाराणसी की गंगा-जमुनी तहजीब एक बार फिर दुनिया के सामने एक आदर्श बनकर उभरी है, जहाँ इस ऐतिहासिक समझौते के बाद दोनों पक्षों ने अदालत में सुलहनामा दाखिल किया और जिला प्रशासन से जगह को फिर से खोलने की अनुमति माँगी।
जिसके बाद वाराणसी के अतिरिक्त नगर मजिस्ट्रेट देवेंद्र कुमार की निगरानी में आवश्यक जाँच-पड़ताल पूरी हुई। सोमवार (21 जुलाई 2025) को ताले तोड़े गए और जगह को दोनों समुदायों के लिए खोल दिया गया।
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के उपाध्यक्ष परमजीत सिंह अहलूवालिया ने इसे सिख समुदाय के लिए ऐतिहासिक क्षण बताया और कहा कि जल्द ही यहाँ भव्य गुरुद्वारा बनेगा, जहाँ दुनिया भर से सिख श्रद्धालु दर्शन के लिए आएँगे। वहीं मंदिर समिति भी इस जगह पर बड़े हनुमान जी के भव्य मंदिर के निर्माण की तैयारी में है।