भारत सरकार ने भारतीय वायुसेना (IAF) के लिए छह स्वदेशी एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AWACS) विमानों के निर्माण को मंज़ूरी दे दी है। यह प्रोजेक्ट 20,000 करोड़ रुपए की लागत वाली एक बड़ी रक्षा परियोजना है, जिसे DRDO एयरबस और भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर तैयार करेगा।
ये विमान भारतीय वायुसेना की निगरानी, कमांड और कंट्रोल क्षमताओं को नई ताकत देंगे। रिपोर्टस के अनुसार इस परियोजना को AWACS इंडिया कार्यक्रम या नेत्रा MK-2 कहा जा रहा है। इसके तहत एयर इंडिया के बेड़े से प्राप्त छह एयरबस A321 विमानों को अत्याधुनिक निगरानी विमानों में बदला जाएगा।
इन विमानों में पृष्ठीय पंख के ऊपर एक बड़ा रडार एंटीना लगाया जाएगा, जो 360 डिग्री रडार कवरेज देगा। यह प्रणाली दुश्मन के विमानों, जमीनी राडार और अन्य खतरों का लंबी दूरी से पता लगाने और ट्रैक करने में सक्षम होगा। इसमें AESA (Active Electronically Scanned Array) रडार तकनीक का इस्तेमाल होगा, जो दुनिया की सबसे उन्नत रडार तकनीकों में से एक है।
#BREAKING:
DRDO’s ₹20,000 crore project to build 6 indigenous Airborne Warning & Control System (AWACS) aircraft on Airbus A321 platforms.
DRDO’s CABS to develop AESA radar & mission systems
Cleared by the Cabinet Committee on Security (CCS)
Reports @2025Nihal… pic.twitter.com/G2QZZpACZP— The New Indian (@TheNewIndian_in) July 17, 2025
नेत्रा MK-2 विमान में आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस (ELINT), संचार इंटेलिजेंस (COMINT), मल्टी-मिशन ऑपरेटर स्टेशन और सक्रिय शोर रद्दीकरण जैसी उन्नत क्षमताएँ भी होंगी। DRDO इस पूरी प्रणाली को डिजाइन और विकसित कर रहा है, जबकि विमान के सैन्य बदलावों की जिम्मेदारी फ्रांस या स्पेन में एयरबस की सुविधाओं पर किया जाएगा।
इसके तहत यात्री विमानों की सीटें हटाई जाएँगी, आगे के हिस्से को मज़बूत किया जाएगा, अतिरिक्त विद्युत इकाई लगाई जाएगी और मिशन कंसोल इंस्टॉल किए जाएँगे। यह पहली बार होगा जब भारत में एयरबस A321 जैसे विमान को इतनी जटिल सैन्य भूमिका के लिए बदला जा रहा है।
अभी भारतीय वायुसेना इजराइल के सहयोग से बनाए गए तीन IL-76 ‘फाल्कन’ AWACS और कुछ सीमित स्वदेशी नेत्रा विमान (Emb-145 प्लेटफॉर्म पर) का उपयोग करती है। लेकिन IL-76 विमानों में बार-बार तकनीकी समस्याएँ आती रही हैं, जिससे भारत को अपने निगरानी नेटवर्क को मजबूत करने की जरूरत महसूस हुई।
AWACS प्रणाली हवा में उड़ते हुए कमांड सेंटर की तरह काम करती है, जो दुश्मन के हमलों की पहले से चेतावनी देती है और युद्ध के दौरान अपने लड़ाकू विमानों को सही दिशा में गाइड करती है। यह परियोजना चीन और पाकिस्तान जैसी सीमाओं पर चौकसी को और बेहतर बनाएगी।
नेत्रा MK-2 AWACS से जुड़ीं 10 खास बातें
- 360 डिग्री रडार कवरेज: नेत्रा MK-2 में एक बड़ा रडार एंटीना होगा, जो 360 डिग्री निगरानी देगा। यह दुश्मन के विमान, मिसाइल और जमीनी ठिकानों को सैकड़ों किलोमीटर दूर से पकड़ सकता है।
- स्वदेशी AESA रडार: इसमें DRDO का बनाया GaN-बेस्ड AESA रडार होगा, जो 500 किमी से ज्यादा दूरी तक छोटे-बड़े खतरों को ट्रैक करेगा, जैसे ड्रोन और स्टील्थ विमान।
- हवा में कमांड सेंटर: यह विमान उड़ता हुआ कंट्रोल रूम है, जो युद्ध के दौरान IAF के लड़ाकू विमानों को गाइड करेगा और रियल-टाइम जानकारी देगा।
- एयरबस A321 का इस्तेमाल: एयर इंडिया के 6 A321 विमानों को सैन्य जरूरतों के लिए बदला जाएगा। ये विमान बड़े, भरोसेमंद और लंबी उड़ान के लिए मुफीद हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक और संचार खुफिया: इसमें ELINT और COMINT सिस्टम होंगे, जो दुश्मन की रेडियो सिग्नल और बातचीत को पकड़कर खुफिया जानकारी जुटाएँगे।
- आधुनिक मिशन कंसोल: विमान में मल्टी-मिशन ऑपरेटर स्टेशन होंगे, जो कई तरह के ऑपरेशनों को एक साथ मैनेज करने में मदद करेंगे।
- स्व-रक्षा की क्षमता: इसमें रडार वार्निंग रिसीवर और काउंटर मेजर्स डिस्पेंसिंग सिस्टम होंगे, जो मिसाइल हमलों से विमान को बचाएँगे।
- आत्मनिर्भर भारत का कदम: यह प्रोजेक्ट DRDO और भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर बन रहा है, जो मेक इन इंडिया को बढ़ावा देगा और विदेशी निर्भरता कम करेगा।
- निर्यात की संभावना: नेत्रा MK-2 की तकनीक इतनी उन्नत है कि भविष्य में इसे अन्य देशों को बेचा जा सकता है, जिससे भारत की रक्षा इंडस्ट्री को फायदा होगा।
- 2026-27 में शामिल होने की उम्मीद: पहला विमान 2026-27 तक IAF को मिलेगा, जो चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर निगरानी को और मजबूत करेगा।
इस प्रोजेक्ट के 3 साल में पूरा होने की उम्मीद है और पहला विमान 2026-27 तक भारतीय वायुसेना को सौंपा जा सकता है। इससे भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो जाएगा जिनके पास स्वदेशी रूप से विकसित हवाई चेतावनी प्रणाली है। साथ ही यह ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। भविष्य में यह तकनीक निर्यात के लिए भी रास्ते खोल सकती है।