पूर्व राज्यसभा सांसद तरलोचन सिंह ने 1984 के सिख दंगों को कॉन्ग्रेस की प्रायोजित साजिश बताया, जबकि 2002 के गुजरात दंगों को गोधरा कांड के बाद लोगों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया करार दिया। उन्होंने कहा कि 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में 59 कारसेवकों की हत्या के बाद भड़की हिंसा में सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।

राज्यसभा के पूर्व सांसद और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष सरदार तरलोचन सिंह ने अपने बयान में साफ कहा है कि 2002 में गुजरात में जो कुछ हुआ, वह ‘स्वाभाविक प्रतिक्रिया’ थी, जबकि 1984 के सिख दंगे पूरी तरह ‘सरकार प्रायोजित साजिश’ थे। उन्होंने कॉन्ग्रेस पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि दिल्ली में सिखों पर जो हुआ, वह पहले से तय था, लेकिन गुजरात में गोधरा कांड के बाद जो हिंसा भड़की, उसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।

मोदी का साहसिक फैसला

तरलोचन सिंह ने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय बड़ा कदम उठाया था। गोधरा अग्निकांड में मारे गए 59 कारसेवकों के शवों को गाँव ले जाने की माँग उठ रही थी। लेकिन मोदी ने इसकी अनुमति नहीं दी और वहीं अंतिम संस्कार का आदेश दिया। अगर ये शव गाँव पहुँच जाते तो पूरा गुजरात जल उठता।

तरलोचन ने कहा, “मोदी जी ने गुजरात को बचा लिया। इस फैसले ने दंगों को सीमित रखा और हालात बेकाबू नहीं होने दिए।”

पूर्व सांसद ने जोर देकर कहा कि गुजरात दंगे वह त्वरित प्रतिक्रिया थी उस घटना के होने के बाद। उन्होंने कहा, “मैं उस समय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष था और सबसे पहले गुजरात पहुँचा। मैंने जाँच की और एक बुकलेट भी लिखी। उसमें साफ लिखा कि दिल्ली दंगे प्रायोजित थे, जबकि गुजरात दंगे लोगों की सामान्य प्रतिक्रिया थे। सरकार का इसमें कोई रोल नहीं था।” तरलोचन सिंह ने बताया कि उस बुकलेट की 500 कॉपियाँ खुद मोदी ने छपवाकर बांटने का आदेश दिया था।

मुस्लिम नेताओं के साथ बैठक और दिल्ली बनाम गुजरात

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष सरदार तरलोचन सिंह ने यह भी खुलासा किया कि उन्होंने 30 बड़े मुस्लिम नेताओं और मोदी की बैठक कराई थी। तीन घंटे चली उस मीटिंग में मोदी ने सभी नेताओं की बातें सुनीं और उनकी माँगें मान लीं। उन्होंने महिलाओं के लिए सिर्फ महिला अधिकारियों वाले थाने खोलने जैसे फैसले भी किए।

तरलोचन सिंह ने सबसे बड़ा अंतर बताते हुए कहा, “दिल्ली का दंगा प्रायोजित था, गुजरात स्वाभाविक। दिल्ली में कॉन्ग्रेस सरकार के संरक्षण में सिखों का कत्लेआम हुआ, जबकि गुजरात में गोधरा कांड के बाद लोगों की प्रतिक्रिया सामने आई। मोदी ने हालात संभाले और पूरे राज्य को जलने से बचाया।”

गोधरा कांड

27 फरवरी 2002 का दिन भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। उस दिन गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगा दी गई। इस कोच में अयोध्या से लौट रहे कारसेवक सवार थे।

अचानक भीड़ ने ट्रेन पर हमला किया और डिब्बे पर पेट्रोल डालकर आग के हवाले कर दिया। इस भयावह घटना में महिलाओं और बच्चों समेत 59 कारसेवकों की दर्दनाक मौत हो गई।

गोधरा कांड की खबर फैलते ही पूरे गुजरात में तनाव की लहर दौड़ गई। अहमदाबाद, वडोदरा, पंचमहल और अन्य जिलों में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। कई दिनों तक चले इन दंगों में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों को अपने घर छोड़ने पड़े। अदालतों ने इस मामले में सख्त सजा भी सुनाई और सुप्रीम कोर्ट तक ने दोषियों की सजा बरकरार रखी।

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