“राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की एकता और
उन्नति के लिए आवश्यक है।”
महात्मा गाँधी
हिंदी भारत की सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी और भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। देश में भाषा को लेकर बेशक विवाद होते हों लेकिन हिंदी को हमेशा एक ऐसी भाषा के तौर पर विकसित किए जाने का प्रयास होता रहा है जो भारत को एकता के सूत्र में जोड़ सके।
14 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस?
आजादी के बाद भारत का अपना संविधान बनाया जाना था और उसी दौर में भाषा को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई थी। राजभाषा विभाग की त्रैमासिक पत्रिका ‘राजभाषा भारती’ के अप्रैल-जून 1995 के अंक के मुताबिक, 14 सितंबर 1946 को संविधान सभा की नियम समिति मे यह फैसला हुआ कि संविधान सभा का कामकाज हिंदुस्तानी या अंग्रेजी में किया जाना चाहिए।
इसके बाद जब 14 जुलाई 1947 को जब संविधान सभा का सत्र शुरू हुआ, तब दूसरे ही दिन यह संशोधन आया कि हिंदुस्तानी के स्थान पर हिंदी शब्द रखा जाए। 16 जुलाई को इस पर विचार शुरू हुआ और मतदान के दौरान हिंदी के पक्ष में 63 वोट और हिंदुस्तानी के पक्ष में 32 वोट पड़े।
बहुभाषी होने के चलते कई समस्याएँ भी आ रही थीं। इस बीच 2 सितंबर 1949 को संविधान सभा के सदस्य एनजी आयंगर और केएम मुंशी की सहमति से एक फॉर्मूला पेश किया गया। इसमें कहा गया कि हिंदी को संघ की आधिकारिक भाषा और देवनागरी को उसकी लिपि मना जाए। साथ ही, अदालतों, विधेयकों और अधिनियमों आदि की भाषा अंग्रेजी में ही रखने की बात कही गई थी।
इस बार वाद विवाद चलता रहा, उधर संविधान सभा में भाषा संबंधी उपबंधों को लेकर चर्चा होनी थी। यह चर्चा 12 सितंबर से 14 सितंबर तक चली। 12 सितंबर को मुंशी-आयंगर फॉर्मूले से जुड़े संशोधन पेश किए गए।
13 तारीख की बहस में श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे सदस्यों ने भाग लिया और 14 सितंबर 1949 को शाम 6 बजे तक हिंदी को भारत की राजभाषा बनाने की स्वीकृति दे दी गई। संविधान निर्माताओं ने तय किया कि अनुच्छेद 343 के तहत देवनागरी में लिखी गई हिंदी भाषा, भारत की राजभाषा होगी।
1953 में पहली बार 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने का फैसला लिया गया था और तब से यह सिलसिला अनवरत जारी है।
संविधान में हिंदी की स्थिति?
संविधान के भाग 17 में राजभाषा का जिक्र किया गया है। इसके अध्याय 1 (संघ की भाषा) के तहत अनुच्छेद 343 (1) में कहा गया है, “संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।”
वहीं, संविधान के अनुच्छेद 351 में हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश की बात कही गई है। इसमें लिखा है, “संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके…उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।”
इसके अलावा अनुच्छेद 120 में ‘संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा’ को लेकर कहा गया है कि भाग 17 में किसी बात के होते हुए भी अनुच्छेद 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए संसद में कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जाएगा। वहीं, अनुच्छेद 210 में कहा गया है, “भाग 17 में किसी बात के होते हुए भी, किंतु अनुच्छेद 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य के विधान-मंडल में कार्य राज्य की राजभाषा या राजभाषाओं में या हिंदी में या अंग्रेजी में किया जाएगा।”
हिंदी को कैसे आगे बढ़ा रही है मोदी सरकार?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूँ तो खुद गुजराती भाषी हैं लेकिन उन्होंने हिंदी को ना केवल देश में आगे बढ़ाने के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर उसका सम्मान बढ़ाने के लिए कई काम किए हैं। किसी के हस्ताक्षर उसकी पहचान होते हैं और पीएम मोदी अपने साइन हिंदी में ही करते हैं।
आज दुनिया के कई राष्ट्राध्यक्ष सोशल साइट्स पर भारत से जुड़े संवाद के लिए हिंदी का इस्तेमाल करते हैं। संयुक्त राष्ट्र भी पिछले कई वर्षों से हिंदी में लोगों को जानकारी दे रहा है।
भारतीय भाषाओं की समृद्धि को लेकर पीएम मोदी का लगातार आग्रह रहा है। पिछले दिनों भी स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन के दौरान उन्होंने लाल किले से कहा था, “हमारी भाषाएँ जितनी विकसित होंगी, हमारी सभी भाषाएँ जितनी समृद्ध होगी, हमारे नॉलेज के सिस्टम को भी उतना ही बल मिलने वाला है।”
वैश्विक मंचों पर हिंदी को बढ़ावा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के बाद से देश के भीतर तो हिंदी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने पर जोर दिया ही है। इसके साथ ही वह संयुक्त राष्ट्र, जी-20 सम्मेलन या विदेशों में प्रवासी सम्मेलन हों, उन्होंने वैश्विक मंचों पर हिंदी में अपनी बात रही है।
सितंबर 2014 में जब वह पहली बार बतौर प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित कर रहे थे तो उन्होंने हिंदी में ही अपना भाषण दिया। दुनिया के तमाम राष्ट्राध्यक्षों के सामने वह मजबूती से हिंदी में अपनी बात रखते नजर आते हैं।
दुनियाभर में हिंदी को लेकर लोगों का जुनून बढ़ रहा है। दुनिया की कई बड़ी और नामी यूनिवर्सिटीज़ में हिंदी पढ़ाई जा रही है। हाल ही में रूस के मंत्री कॉन्स्टेंटिन मोगिलेव्स्की ने माना था कि उनके देश में हिंदी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है।
नई शिक्षा नीति से हिंदी को बढ़ावा
मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति (2020) के तहत हिंदी को विस्तार देने की कोशिश की है। इस नीति में तीन भाषाओं का फॉर्मूला दिया गया है। नीति में इस फॉर्मूले को इस तरह डिजाइन किया गया है कि इसमें तीन में से दो भारतीय भाषाओं के सीखने पर जोर रहे। इस फॉर्मूले के तहत हिंदी का दायरा और बढ़ गया है। इसमें क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के अलावा हिंदी को जगह मिलने की अधिक संभावनाएँ हैं।
हिंदी में मेडिकल-इंजीनियरिंग की पढ़ाई
मोदी सरकार ने प्रोफेशनल कोर्सेज को भी हिंदी भाषा में पढ़ाने पर जोर दिया है। जिसके तहत सरकार द्वारा मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी भाषा में कराई जा रही है। मध्य प्रदेश के जबलपुर में देश का पहला हिंदी-माध्यम MBBS कॉलेज स्थापित किया जा रहा है और यह संस्थान 2027–28 शैक्षणिक सत्र से शुरू होने की उम्मीद है।
‘केंद्रीय हिंदी समिति’ का पुनर्गठन और ‘हिंदी शब्द सिंधु’ शब्दकोश का निर्माण
सरकारी स्तर पर ‘केंद्रीय हिंदी समिति’ का पुनर्गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता पीएम मोदी स्वयं कर रहे हैं। इस समिति ने हिंदी साहित्य को बढ़ावा देते हुए ‘हिंदी शब्द सिंधु’ शब्दकोश का निर्माण शुरू किया, जो दुनिया की सबसे बड़ी डिक्शनरी बनने जा रही है।
2024 में गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी दिवस पर ‘भारतीय भाषा अनुभाग’ की स्थापना की घोषणा की, जो हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय स्थापित करेगा। इसके अलावा विभिन्न शहरों में राजभाषा सम्मेलनों के आयोजन के जरिए हिंदी को संपर्क भाषा बनाने की दिशा में लगातार काम किया जा रहा है।
डिजिटल तरीके से हिंदी सीखने की सुविधा
मोदी सरकार ने डिजिटल युग में भी हिंदी सीखने को आसान बनाने के लिए लर्निंग इंडियन लैंग्वेज विद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (लीला) प्लैटफॉर्म लॉन्च किया है। इस पर लोग खेल-खेल में हिंदी भाषा सीख रहे हैं और यह नए लोगों को हिंदी के पास लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके अलावा ‘भाषिनी’ AI प्लेटफॉर्म भी लॉन्च किया गया है, यह लाइव अनुवाद की सुविधा के जरिए हिंदी को अन्य भाषाओं से जोड़ रहा है।
2024 में सरकार ने जारी किया था स्मारक डाक टिकट
पिछले वर्ष हिंदी भाषा को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाए जाने की 75वीं वर्षगाँठ के मौके पर ‘हीरक जयंती’ मनाई गई थी। इस मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था। इसे देश को एकजुट करने और विविध भाषाई समुदायों की सेवा करने में हिंदी की स्थाई भूमिका को श्रद्धांजलि बताया गया था।
ग्लोबल होती हिंदी
आज दुनिया भर में हिंदी भाषा की धूम मच रही है। एथ्नोलॉग की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है, जिसमें 609 मिलियन से अधिक वक्ता शामिल हैं। यह आँकड़ा भारत की बढ़ती सॉफ्ट पावर को भी दिखाता है।
दक्षिण एशिया के अलावा, हिंदी अब अमेरिका, मॉरीशस, फिजी, नेपाल और खाड़ी देशों में भी गूँज रही है। अमेरिका में करीब 6 लाख लोग हिंदी बोलते हैं, जहाँ यह 11वीं सबसे लोकप्रिय भाषा है। फिजी में हिंदी आधिकारिक भाषा का दर्जा रखती है। वहीं, मॉरीशस, नेपाल, कनाडा, ब्रिटेन में भी हिंदी भाषियों की संख्या बढ़ रही है।
डुओलिंगो लैंग्वेज रिपोर्ट 2024 के मुताबिक, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हिंदी सीखने वालों की संख्या में शानदार बढ़ोतरी दर्ज की गई है। विश्वभर के युवा भारत की सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने के लिए हिंदी को अपना रहे हैं।
2011 की जनगणना बताती है कि भारत में हिंदी समझने और बोलने वाले लोगों की संख्या करीब 60 करोड़ हैं। भारत के बाहर भी बड़ी संख्या में लोग हिंदी बोलते समझते हैं। हालाँकि, गैर हिंदी भाषी राज्यों द्वारा मुख्यत: राजनीतिक हमलों के तहत हिंदी सीखने को थोपने की साजिश बताने की कोशिश की जाती है।
वो लोग ये भूल जाते हैं कि जिन पर वह हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं, वे खुद गैर हिंदी भाषी हैं। उनके लिए भाषा संवाद का एक माध्यम है और देश में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा होने के नाते हिंदी ही संवाद की भाषा बनने के लिए मौजूदा समय में सबसे उपयुक्त दिखाई देती है। हिंदी को विरोध के नजरिए से देखने के बाद संवाद स्थापित करने के लिए एकता के सूत्र के तौर पर देखे जाने की जरूरत है।
गौर करने वाली बात ये भी है कि आजादी के पहले से लेकर अब तक हिंदी को राष्ट्र की भाषा बनाने के लिए आग्रह करने वाले बहुत लोग गैर हिंदी भाषी रहे हैं। केशव वामा से लेकर महात्मा गाँधी तक और सुभाष चंद्र बोस से लेकर माधव सदाशिव गोलवलकर तक, गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों से आने वाले लोगों ने हिंदी को आगे बढ़ाया है।
कलकत्ता में जन्मे महर्षि अरविंद ने तो यहाँ तक कहा था,
“भारत के विभिन्न प्रदेशों के बीच हिंदी प्रचार के द्वारा एकता स्थापित करने वाले लोग सच्चे भारतबंधु हैं।”