सोमवार (21 जुलाई, 2025 को संसद का मॉनसून सत्र चालू हो गया है। यह सत्र 21 जुलाई 2025 से 21 अगस्त, 2025 तक चलेगा। 32 दिनों वाले इस सत्र में 21 बार संसद की बैठक होगी। विपक्ष के हंगामे के चलते संसद का पहला दिन ही कामकाज के मामले में ठप हो गया। पहले प्रश्न काल के दौरान व्यवधान हुआ तो 12 बजे तक लोकसभा की कार्यवाही रोकी गई, फिर हंगामे के चलते लोकसभा की कार्यवाही 2 बजे तक रोक दी गई।
संसद में हंगामा और कार्यवाही रुकना कोई विचित्र बात नहीं है। दुनिया भर की सांसदों में यह होता है। लेकिन लगातार पूरे-पूरे दिन संसद ना चलने देना और पहले बैठकों में सहमति बनाने के बाद भी डेडलॉक पैदा करना भारत के विपक्ष की आदत बन गई है। अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग पहले ही बता देते हैं कि संसद का सत्र चालू होने से पहले या तो कोई रिपोर्ट आएगी या कोई ऐसा मुद्दा उठेगा जिस पर हंगामा होगा, इसके बाद संसद सत्र बर्बाद होगा।
कार्यवाही रुकना यानी करोड़ों की बर्बादी
मॉनसून सत्र का पहले ही दिन हंगामा भरा होना कोई शुभ संकेत नहीं है। यह सत्र 32 दिन चलने वाला है और इसमें 21 दिन संसद की बैठक होगी। नियमानुसार, हर दिन संसद के दोनों सदन 6 घंटे काम करते हैं। यह समय घट-बढ़ भी सकता है।
लेकिन 21 दिन भी संसद चले और 6 घंटे भी काम करे तो इस पर भारी-भरकम खर्च होता है। यह खर्च जनता के पैसे का होता है, जिसे हम टैक्स कहते हैं। लोकसभा के पूर्व महासचिव PDT आचार्य ने कई वर्षों पहले बताया था कि संसद का एक मिनट चलाने पर भी ₹2.5 लाख का खर्च होता है।
इसमें सांसदों की तनख्वाह, बिजली-पानी के बिल समेत बाकी खर्च शामिल होते हैं। यह खर्च अभी तक काफी बढ़ गया होगा। लेकिन ₹2.5 लाख खर्च आज भी प्रति मिनट माना जाए, तो इस मॉनसून सत्र पर सैकड़ों करोड़ खर्च होने वाले हैं।
सीधी गणित के हिसाब से इस संसद सत्र पर ₹2.5 लाख/मिनट के हिसाब से ₹189 करोड़ खर्च होने हैं। 21 दिन में संसद 126 घंटे चलने वाली है। यानी इसकी कार्रवाई 7560 मिनट चलेगी। इन 7560 मिनटों को ₹2.5 लाख से गुना करे तो यह ₹189 करोड़ की धनराशि खर्च होगी।
संसद के खर्च इसके अलावा और भी होते हैं, जैसे सांसदों को संसद सत्र के दौरान आने का हर दिन का ₹2500 भत्ता भी मिलता है। ऐसे में यह खर्च बढ़ता ही है, देश के लोकतंत्र के मंदिर पर खर्च हो, इससे किसी को ऐतराज नहीं है, लेकिन जिस तरह से इस सत्र की शुरुआत हुई है उससे अच्छे आसार नहीं लगते।
सरकार इस सत्र के पहले हुई सर्वदलीय बैठक में कह चुकी है कि वह ऑपरेशन सिंदूर समेत सभी मुद्दों पर बात करने को तैयार है। विपक्ष की माँग थी कि इस दौरान बिहार में चुनाव आयोग की पुनरीक्षण प्रक्रिया पर बात हो और एअर इंडिया हादसे को लेकर भी बात हो।
सरकार ने इसके लिए भी हामी भरी थी। हालाँकि, पहला दिन ही हंगामे की भेंट चढ़ा दिया गया। ऐसे में यह आशंका और गहरी हो जाती है कि इस बार भी जनता ठगी सी रह जाएगी और लगभग ₹200 करोड़ को सिर्फ तख्तियों और हंगामों में सिमटता देखेगी।
पहले के सत्र भी हो चुके बर्बाद
यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब संसद का सत्र शुरू होने से पहले ही उसे बर्बाद करने की ठान ली गई हो। विपक्ष ने इस बार मॉनसून सत्र मुद्दा बिहार में चुनाव आयोग की प्रक्रिया और ऑपरेशन सिंदूर तथा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान बनाए हैं लेकिन इससे पहले भी हर बार संसद सत्र को बर्बाद करने की पटकथा लिख ली जाती है।
विपक्ष ने पेगासस स्नूपिंग के आधारहीन आरोपों के लेकर राफेल और अडानी-हिंडनबर्ग तक के मुद्दे उठाए हैं। यह मुद्दे संसद क सत्र बर्बाद करने में बड़ा कारण रहे हैं। बजट सत्र 2023 को बर्बाद करने के लिए कॉन्ग्रेस और विपक्ष ने अडानी के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा प्रकाशित हिट जॉब वाली रिपोर्ट मुद्दा उठाया था और पूरा सत्र बर्बाद कर दिया था।
इसी सत्र के पहले BBC की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बनाई प्रोपेगेंडा डाक्यूमेंट्री को लेकर भी बवाल विपक्ष ने किया था। 2023 के ही शीत सत्र के पहले एप्पल फोन की नोटिफिकेशन पर बवाल विपक्ष ने मचाया था। हालाँकि, यह मुद्दा बड़ा बनता लेकिन एप्पल ने सफाई दे दी।
इससे भी 2021 में मॉनसून सत्र के पहले पेगासस की स्टोरी को लेकर बवाल मचाया गया था और दावा किया गया था कि सरकार स्नूपिंग में लिप्त है। यह कहानी बाद में झूठी निकली लेकिन संसद का सत्र बर्बाद हो गया। इसमें भी जनता का अरबों रुपया बर्बाद हुआ।
2021 में राहुल गाँधी ने राफेल विमान खरीद में घोटाले का कथित मामला उठाया। यह विदेशी मीडिया में कुछ रिपोर्ट्स आने के बाद उठाया गया था। इसको लेकर 2021 में संसद के सत्र हंगामे भरे रहे। राफेल मामले में हवा-हवाई दावे संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक नहीं टिक पाए। लेकिन संसद का समय बर्बाद होता गया।
इस दौरान जिस समय का उपयोग देश में नए कानून की चर्चा, पुराने कानूनों में सुधार करने और जनता के प्रश्न उठाने के लिए होना चाहिए था, उसका उपयोग विपक्ष ने तख्तियाँ उछालने और हंगामा मचाने में किया। विपक्ष ने इस दौरान कई मौकों पर डेडलॉक की स्थिति पैदा की और संसदीय काम जहाँ का तहाँ लटक गया।
क्यों चिंताजनक है यह ट्रेंड?
संसद को चलाना पक्ष और विपक्ष दोनों की बराबर की जिम्मेदारी होती है। संसद का कम दिनों चलना और कम काम करना चिंताजनक इसलिए भी है कि इससे व्यवस्था के दूसरे हिस्सों को प्रभाव बढ़ाने का मौक़ा मिलता है। एक रिपोर्ट बताती है कि जहाँ पहली लोकसभा (1952-57) साल में 135 दिन बैठी तो वहीं 17वीं लोकसभा (2019-24) मात्र 55 दिन चली।
इससे भी चिंताजनक यह ट्रेंड है कि इन 17वीं लोकसभा का लगभग 50% समय हंगामे और बवाल की भेंट चढ़ गया। इससे जहाँ एक ओर जनता का पैसा बर्बाद होता है तो वहीं दूसरी तरफ महत्वपूर्ण विधेयकों पर तक चर्चा नहीं हो पाती।
ऐसे में विपक्ष को सिर्फ हंगामे की जगह अपने तर्क और सबूत के आधार पर संसद में सरकार को घेरने की नीति बनानी चाहिए ना कि कार्यवाही पर ही ग्रहण लगा देना चाहिए। इससे जनता का विश्वास बढ़ेगा ही, देश का लोकतंत्र मजबूत होगा और सरकारी पैसे की बर्बादी रुकेगी।













