बांग्लादेश

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्तापलट हुए एक वर्ष पूरा होने को है। इस एक वर्ष में बांग्लादेश में बहुत कुछ बदल चुका है। बांग्लादेश का यह एक वर्ष का सफ़र हिन्दुओं के उत्पीड़न से लेकर विपक्ष का मुंह बंद करने तक और पहचान बदलने का रहा है। इस दौरान लोकतंत्र के नाम पर हंगामा करके सत्ता में आए मोहम्मद यूनुस खुद तानाशाह बनने की कगार पर हैं। बिना चुनाव के सत्ता पर बैठे मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश की आर्थिक नैया भी डुबाई है।

बांग्लादेश में जून-जुलाई से छात्रों के नाम पर चालू हुए प्रदर्शन असल में एक रिजीम चेंज ऑपरेशन था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था कि कैसे शेख हसीना को सत्ता से हटाया जाए। छात्र आंदोलन के मुखौटे का सच तो तभी सामने आ गया था जब इस आंदोलन ने हिंसक रूप लिया था। 5 अगस्त, 2025 को आखिरकार दंगाइयों के चलते शेख हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी थी। वह भारत आ गईं थीं। उनके पीछे इस्लामी कट्टरपंथियों ने सत्ता हथिया ली थी और इसका मुखौटा मोहम्मद यूनुस को बना दिया।

जबसे शेख हसीना सत्ता से बाहर हुई हैं, तब से बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों को हिन्दुओं को मारने का लाइसेंस मिला हुआ है। हिन्दू महिलाओं का घर में घुस कर रेप हो रहा है, उनके वीडियो बनाए जा रहे हैं और वायरल किए जा रहे हैं। मोहम्मद यूनुस की सरकार ही हिन्दू मंदिरों को गिरा दे रही है। हिन्दू साधु-संत गिरफ्तार हो रहे हैं और उनकी सुनवाई तक नहीं हो रही है। यह सब कुछ 1 वर्ष में ही मोहम्मद यूनुस ने अपने नाम कर लिया है।

1 साल में हिन्दुओं पर 2000+ हमले

शेख हसीना के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन में भी हिन्दू ही निशाना थे। इस्लामी कट्टरपंथी लगातार सत्ता विरोधी हिंसा के दौरान हिन्दू पुलिस और सुरक्षाकर्मी निशाना बनाए गए। ASI संतोष साहा को बीच सड़क मार कर लटका दिया गया। उनके शव के साथ तक बर्बरता हुई। शव को उदाहरण बनाया गया कि बाकी हिन्दू भी डरे रहें। जब बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता चली गई तो यह हमले और तेज हो गए।

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लिए काम करने वाली संस्था बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद ने जुलाई में दी गई एक रिपोर्ट में बताया था कि 4 अगस्त, 2024 से 30 जून, 2025 के बीच अल्पसंख्यकों पर 2400 से अधिक हमले हुए। इनमें से लगभग 2000 हमले तो 4 अगस्त, 2024 से 20 अगस्त, 2024 के बीच हुए जबकि 100 से अधिक घटनाएँ बाकी 2024 में हुई। 2025 में भी यह सिलसिला थमा नहीं है। 2025 में 300 से अधिक हमले अल्पसंख्यकों पर हुए हैं।

अधिकांश अल्पसंख्यक विरोधी हमलों का शिकार हिन्दू ही हैं क्योंकि वह बांग्लादेश में सबसे बड़ी माइनॉरिटी हैं। और यह सिर्फ आँकड़ों की बात नहीं है। बांग्लादेश में हिन्दू विरोधी हिंसा का सबसे पहला शिकार महिलाएँ हो रही हैं। हाल ही में बांग्लादेश में BNP के नेता फजोर अली ने एक हिन्दू महिला का घर में घुस कर रेप किया था। उसका वीडियो भी वायरल किया था। इसके बाद केस वापस तक लेने का भी दबाव बनाया। इसी तरह एक और नाबालिग का रथ यात्रा से वापस आते समय रेप किया गया।

जिस समय यह लेख मैं लिख रहा हूँ, तभी एक हिन्दू दुकानदार की हत्या की बात बांग्लादेश में सामने आई है। मोहम्मद आबिर ने यह हत्या गला रेत कर की। इससे पहले बांग्लादेश में मंदिरों पर हमलों की असंख्य घटनाएँ सामने आई। इस्लामी कट्टरपंथियों को तो छोडिए, बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार ने खुद ढाका में रेलवे की जमीन पर बता कर एक पुराना हिन्दू मंदिर ढहा दिया। हिन्दुओं के लिए जिन्होंने आवाज उठाई, उनका भी इस एक वर्ष में बुरा हाल किया गया।

बांग्लादेश में हिन्दुओं पर जारी अत्याचार के चलते चटगाँव में बड़ा प्रदर्शन हुआ। इसका नेतृत्व संत चिन्मय दास ने किया। चिन्मय दास से चिढ़े इस्लामी कट्टरपंथियों ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा लगा दिया। उनको महीनों तक सुनवाई भी नहीं मिली। उनके वकील तक पर हमला हुआ। जब आखिर में उनको जमानत भी मिली तो फिर इस्लामी कट्टरपंथी भड़के और उन्होंने जमानत पर रोक लगवा दी। मैं जो बता रहा हूँ, वह चर्चित मामले हैं। ना जाने कितने हिन्दुओं की पीड़ा सामने तक नहीं आ पाई है।

हिन्दुओं पर हमले को लेकर बांग्लादेश की महम्मद यूनुस सरकार का रवैया भी महा बेशर्मों की तरह रहा है। वह पहले तो मानने से इनकार करती रही कि बांग्लादेश में हिन्दुओं को इस्लामी कट्टरपंथ का निशाना बनाया जा रहा है। इसके बाद उसने बेहरमी बेशर्मी से तर्क पेश किया कि असल में यह हमले हिन्दुओं पर इसलिए नहीं हो रहे क्योंकि बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ पैर पसार चुका है, बल्कि इसलिए हो रहे हैं कि वह कथित तौर पर अवामी लीग के समर्थक थे। बांग्लादेश में सिर्फ हिन्दू ही एक पीड़ित नहीं हैं।

विपक्ष का भी यूनुस सरकार ने किया दमन

शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन करने वालों का कहना था कि देश में लोकतंत्र की हालत खराब है। मोहम्मद यूनुस ने भी कई बार यही बात दोहराई। लेकिन विडंबना यह है कि मोहम्मद यूनुस के सत्ता में आने के बाद लोकतंत्र को ताखे में सजा कर रख दिया गया है। मोहम्मदद यूनुस की सरकार ने अपना सबसे पहला लक्ष्य अवामी लीग का खात्मा बनाया था। एक वर्ष के भीतर आवामी लीग के हजारों नेता गिरफ्तार किए जा चुके हैं।

सत्ता बदलते ही यूनुस सरकार ने 1100 से अधिक मामले आवामी लीग के 300+ नेताओं पर ठोंके थे। शेख हसीना के अलावा जो भी आवामी लीग के नेता तख्तापलट के समय बांग्लादेश से नहीं निकल पाए थे, उन्हें गिरफ्तार किया गया। चाहे वह पूर्व मंत्री दीपू मोनी हों या फिर अनिसुल हक़। आवामी लीग के किसी नेता को नहीं छोड़ा गया। एक अभियान चला कर आवामी लीग को तोड़ने का प्रयास किया गया। इसको ऑपरेशन डेविल हंट का नाम दिया गया। इसक इसके अंतर्गत 1000+ लोग गिरफ्तार हुए, इनमें से अधिकांश आवामी लीग से थे।

मोहम्मद यूनुस ने आवामी लीग पर प्रतिबन्ध लगा दिया। उसकी रैलियाँ नहीं आयोजित होने दी और यहाँ तक कि कार्यकर्ताओं की हत्याओं के सैकड़ों प्रयास हुए। जगह-जगह आवामी लीग के दफ्तरों में ताले लटकाए गए।

विरासत मिटाने का भी हो रहा प्रयास

बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार सिर्फ विपक्ष को दबाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि वह लोगों की स्मृतियों से तक उसे मिटा देना चाहती है। मोहम्मद यूनुस सरकार ने बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर रहमान के पैतृक आवास को टूटने दिया। दंगाइयों ने उस धानमंडी घर की ईंट-ईंट तक तोड़ दी, जिससे बांग्लादेश को आजादी मिली। यह सब इसलिए होने दिया गया क्योंकि इसका कनेक्शन शेख हसीना से है। गुरु रबीन्द्र नाथ टैगोर के घर को तोड़ा गया। मोहम्मद यूनुस सरकार देखती रही।

सत्यजित रे का घर भी गिरते-गिरते बचा। इस पर भी मोहम्मद यूनुस सरकार ने बेशर्म रवैया दिखाया। कहानी यहीं तक नहीं रुकती बल्कि शेख मुजीब से जुड़ा हर एक चिन्ह मिटाने का प्रयास लगातार किया गया। चाहे उनकी जयंती पर होने वाले समारोह को रोका जाना हो या फिर नोटों पर से उनका फोटो हटाना। बांग्लादेश की सरकार इस विरासत मिटाने का हर प्रयास कर रही है। मोहम्मद यूनुस की सरकार के इन क़दमों के पीछे उसका इस्लामी कट्टरपंथ का एजेंडा है, जो मुजीब को नहीं देखना चाहता।

तानाशाह बनने की तरफ अग्रसर हैं मोहम्मद यूनुस

यह सब करने के बाद के बाद मोहम्मद यूनुस बिना चुने ही बांग्लादेश को हमेशा के लिए अपने शासन तले रखना चाहते हैं। मोहम्मद यूनुस को जब सत्ता सौंपी गई थी, तब ही उसका कोई संवैधानिक आधार नहीं था। उन्हें अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में लाया गया था। यह नहीं पता चल पाया कि यह अंतरिम सरकार है कौन। खैर, वह जब सत्ता आए थे तो यह उम्मीद जताई गई थी कि पहले की तरह बांग्लादेश में अब चुनाव होंगे।

मोहम्मद यूनुस को सत्ता पर काबिज हुए 1 वर्ष हो गया है। लेकिन चुनाव का नाम लेते ही वह बिदक जाते हैं। हाल ही में बांग्लादेश में इसी को लेकर एक संकट तक पैदा हो गया था। आखिर में मोहम्मद यूनुस ने 2026 के मध्य तक चुनावों की बात किसी तरह कही। उनके इन सब क़दमों से लगता है कि वह स्वयं ही बांग्लादेश के बिना चुने तानाशाह बनना चाहते हैं।

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